मथुरा। उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी द्वारा जारी फरमान शिक्षा विभाग के लिए नया प्रयोग की तरह इस्तेमाल हो रहा हैं। निजी शिक्षण संस्थान से जुड़े अर्पित जादौन ने कहा कि इन आदेशों पर ब्यूरोक्रेसी मानमाने फैसले ले रही है। जिसका खामियाजा बेसिक शिक्षा उठा रहा है। शिक्षकों को जहां मर्जी वहां ड्यूटी लगा दी जाती है। पढ़ाने के अलावा बेसिक शिक्षकों को ढेर सारी बेगारी करनी पड़ती है। संसाधनों के अभाव में सरकारी तुगलकी फरमानों का भी अनुपालन करना पड़ता है। शाम को आदेश आता है, सुबह आदेश पलट जाता है। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों के हालत किसी से छुपी नहीं है। बच्चों को बहुत कुछ फ्री में प्राप्त करने भोजन खिलवाने निःशुल्क बेग, किताबें दिए जाने के बाद भी बच्चों की संख्या के लिए ये स्कूल तरस रहे हैं। प्रतिवर्ष बच्चों की संख्या कम होती जा रही है। इसकी तरफ न तो विभागीय मंत्री का ध्यान है और न ही विभाग के अफसरों का यदि बच्चे पर ड्रेस नहीं है, तो उसका दंड अध्यापक को दिया जाता है। उसका वेतन बाधित कर दिया जाता है। जबकि पैसा अभिभावकों के खाते में आता है। इस प्रकार बच्चों के बैंक खातों को आधार से लिंक करने की जिम्मेदारी भी अध्यापकों की है। सरकारी योजना में अगर किसी व्यक्ति को लाभान्वित नहीं होते हैं। इसका सारी जिम्मेदारी अध्यापकों की है। कुछ दिन पहले महानिदेशक ने तुगलकी फरमान जारी करके चेहल्लुम और जन्माष्टमी की छुट्टी के दिन भी काम करने के निर्देश जारी किए, बाद में विरोध हुआ तो इस तुगलकी फरमान को वापस ले लिया गया। चंद्रयान तीन चांद पर उतरा उसकी लैंडिंग दिखाने के लिए उत्तर प्रदेश के बेसिक स्कूलों को आदेशित किया गया था। चंद्रयान लैंडिंग बच्चों को दिखाने के लिए स्कूलों को 5ः15 बजे खोला जाए और लैंडिंग और प्रधानमंत्री के भाषण के बाद ही बंद किया जाए। आदेश अध्यापकों का मानना जरूरी था। चंद्रयान-3 की लैंडिंग दिखाने के लिए न तो ग्राम प्रधान थे और न ग्राम सचिव और न ही विभाग ने एलइडी या अन्य सामग्री की व्यवस्था की गई थी। सवाल यह है कि जब बच्चों को चंद्रयान-3 की लैंडिंग दिखाई थी तो विभाग ने व्यवस्था क्यों नहीं की थी। बच्चों को घर पर देखने से भी वंचित कर दिया गया। प्रधान या सचिव को इसको दिखाने की कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। बिजली के बिलों में ऐतिहासिक बढ़ोतरी की गई है। इस प्रकार सर्व शिक्षा अभियान को विद्यालय पूरा कर पाएगा यह विभाग को सोचना पड़ेगा। नये नये प्रयोगों को तत्काल प्रभाव से रोकना होगा। जिससे बच्चों की नई पौध तैयार करने में विद्यालय को कुछ मदद मिले।