Saturday, November 23, 2024
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कर्बला रिश्तों का ही नहीं दोस्ती का भी इम्तहान है: शाज़ू नक़वी

ऊंचाहार, रायबरेली। नगर के रहने वाले शाज़ू नक़वी ने कर्बला की दास्तां बयां करते हुए बताया कि कर्बला रिश्तों का ही नहीं दोस्ती का भी इम्तहान है। हबीब इब्ने मज़ाहिर 75 साल के बूढ़े इंसान हैं। इमाम हुसैन के बचपन के दोस्त हैं। उनका भरा पूरा परिवार था। दौलत, इज़्ज़त सब थी। जब इमाम हुसैन का पैग़ाम मिला तो कूफे का सुरक्षा घेरा तोड़कर वह करबला पहुंचे। लोगों ने कहा इस उम्र में क्या करोगे.?
उन्होंने कहा कि कुछ न कर पाया तो उन तीरों के सामने खड़ा हो जाऊंगा जो हुसैन की तरफ चलेंगे। उन्होंने जो कहा करके दिखाया। दोस्ती के रिश्ते को निभाया और आशूर के रोज़ इमाम हुसैन की नुसरत में अपनी जान दे दी।
कर्बला के शहीदों में इमाम हुसैन के एक और साथी हैं बशीर बिन अम्र। वह किंदा क़बीले से थे। मक्का से तक़रीबन 11 किलोमीटर दूर हादरा मौत के रहने वाले थे। इमाम हुसैन के मक्का से कूफा की तरफ कूच की ख़बर मिली तो अपने बेटों को लेकर घर से निकल पड़े। रेगिस्तान के सफर थे। उन दिनों रूट मैप और जीपीएस जैसी सुविधाएं भी नहीं थीं। रास्ते में एक जवान बेटा बिछड़ गया। फिर भी जैसे-तैसे, गिरते-पड़ते, आशूर के दिन कर्बला पहुंचे। वहां अजीब मंज़र देखा। इमाम हुसैन और उनके साथी भूखे, प्यासे दुश्मनों से घिरे थे। हर तरफ मौत का हंगामा था।
ऐन लड़ाई के वक़्त किसी ने खोए बेटे की खबर आकर दी। बताया कि तुम्हारा बेटा रै के पास गिरफ्तार है। लोगों ने जाकर बेटे को छुड़ा लेने की सलाह दी। इमाम हुसैन को मसले की ख़बर हुई तो उन्होंने बशीर को अपनी बैयत और तमाम ज़िम्मेदारियों से आज़ाद कर दिया। उनसे कहा कि ष्अल्लाह तुम पर रहम करे। बेटे की जान बचाना तुम पर फर्ज़ है, इसलिए तुम जाओ।
लेकिन बशीर ने इमाम को मुसीबत में छोड़कर जाने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मैं आपको इस हाल में छोड़कर जाऊं तो जंगली दरिंदे मुझे निगल लें। आपके साथ यहां मुट्ठी भर लोग हैं। मुझे रास्ते भर हर क़ाफिले में आपकी सूरत नज़र आएगी। मैं उस ज़िल्लत के साथ कैसे ज़िंदा रहूंगा?
बशीर वापस नहीं गए। छोटे बेटे को इस ताक़ीद के साथ रवाना किया कि दाम चुकाकर भाई को रिहा कराओ और वापस यहीं आना है। इधर बेटों की वापसी से पहले कर्बला क़त्लगाह बन गई। इमाम हुसैन से पहले शहादत पाने वालों में बशीर इब्ने अम्र पेश थे।
शाज़ू नक़वी ने कहा कि हबीब और बशीर का ज़िक्र हमें याद दिलाता है कि बदतरीन मुसीबत में भी साथी को छोड़कर नहीं जाना है। ज़िंदगी में कुछ हासिल न हो मगर एक दोस्त हबीब या बशीर सा हासिल हो जाए तो फिर दुनिया की हर मुसीबत छोटी है। इसके साथ ही अपने दिल पर हाथ रखकर ख़ुद से ये सवाल ज़रूर कीजिए, हम कर्बला का तज़्किरा करते हैं। क्या हम अपने दोस्तों के लिए हबीब या बशीर जैसे हैं या उनमें शुमार हैं जो अपने मतलब और दूसरे के वक़्त से आगे नहीं सोच पाते हैं? अगर हम दूसरी वाली जमात में हैं तो मतलब यह है कि कर्बला हम समझ नहीं पाए हैं।