Wednesday, January 22, 2025
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समाज में नैतिकता और अनुशासन : शिक्षा व तकनीकी संतुलन की जरूरत

आज का समाज नैतिक मूल्यों, अनुशासन और पारिवारिक संस्कारों के पतन की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है। विशेषकर युवाओं में हिंसा, अनुशासनहीनता और गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार की घटनाएं बढ़ रही हैं, जो चिंता का विषय है। हाल ही में हुई विद्यालय की घटनाएं इस बात का प्रमाण हैं कि नैतिक शिक्षा, पारिवारिक मूल्यों और तकनीकी संसाधनों के अनुशासनात्मक उपयोग पर विशेष ध्यान देना अनिवार्य हो गया है। लिखा भी गया है कि
विद्या ददाति विनयं विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वात् धनमाप्नोति धनात् धर्मं ततः सुखम्॥
अर्थात्- विद्या विनय सिखाती है, विनय से योग्यता आती है, योग्यता से धन और धन से धर्म व सुख प्राप्त होता है।
श्लोक के भावार्थ को ध्यान में रखते हुए कहें तो विद्यालय केवल शिक्षा देने का स्थान नहीं है, बल्कि यह बच्चों में नैतिकता और जिम्मेदारी की भावना विकसित करने का केंद्र भी है। शिक्षक और अभिभावक बच्चों को सही और गलत के बीच फर्क समझाने में एक प्रमुख भूमिका निभाएं। नई शिक्षा नीति (2020) में भी नैतिक शिक्षा और जीवन कौशल को प्राथमिकता दी गई है। छात्रों के नैतिक और व्यावहारिक विकास के लिए यह दिशा दिखाती है कि शिक्षा का उद्देश्य केवल करियर निर्माण नहीं, बल्कि चरित्र निर्माण भी होना चाहिए।
यदि ध्यान दें तो परिवार बच्चे के व्यक्तित्व का पहला स्कूल है। माता-पिता बच्चों के व्यवहार पर ध्यान दें और समय रहते अनुशासनहीनता या आक्रामकता को सुधारने का प्रयास करें। बच्चों के साथ समय बिताना और उनके भीतर संस्कारों को रोपित करना आवश्यक है।
संवाद एक ऐसा माध्यम है जो न केवल व्यक्ति और समाज के बीच की दूरी को कम करती है, बल्कि यह आपसी समझ, सहमति और समाधान का भी मार्ग प्रशस्त करता है। आज के समय में विद्यालय और परिवार के बीच संवाद की कमी ऐसी घटनाओं का कारण बनती जा रही है। आवश्यकता है शिक्षकों और अभिभावकों को बच्चों के साथ खुलकर संवाद करने की ताकि उनके मन में जमा तनाव और असंतोष को समझा जा सके। नई शिक्षा नीति 2020 भी शिक्षक-अभिभावक संवाद पर जोर देती है, जिससे बच्चे के समग्र विकास को सुनिश्चित किया जा सके।
अनुशासनहीनता और हिंसक व्यवहार के लिए सख्त दंड लागू होना चाहिए ताकि अन्य छात्रों को भी इससे सबक मिले। इसके साथ ही विद्यालय प्रशासन को कड़े अनुशासनात्मक नियम लागू करने चाहिए। साइबर और कानूनी जागरूकता भी छात्रों और अभिभावकों के बीच बढ़ाई जानी चाहिए।
तकनीकी प्रगति ने हमारे जीवन को आधुनिक और सुविधाजनक बना दिया है। आज हर क्षेत्र, चाहे वह शिक्षा हो, स्वास्थ्य हो या संचार, तकनीकी साधनों का प्रभाव स्पष्ट है। परंतु तकनीक का अनुचित उपयोग एक बड़ा खतरा भी बनकर उभर रहा है। यह न केवल सामाजिक ताने-बाने को कमजोर कर रहा है, बल्कि भावनात्मक, मानसिक और शारीरिक समस्याओं को भी जन्म दे रहा है।
तकनीकी उपकरणों का अनुचित उपयोग न केवल शिक्षा को बाधित करता है, बल्कि हिंसात्मक और आपराधिक गतिविधियों को भी बढ़ावा देता है। गैजेट्स जैसे मोबाइल फोन या लैपटॉप को विद्यालय में लाने पर प्रतिबंध लगाया जाए। केवल शैक्षणिक उपयोग के लिए गैजेट्स विद्यालय प्रशासन के नियंत्रण में होने चाहिए। इसके साथ ही छात्रों को इंटरनेट और गैजेट्स के सही उपयोग के बारे में जागरूक करना चाहिए।
नैतिक शिक्षा, अनुशासन और संस्कारों का विकास बच्चों के उज्जवल भविष्य और समाज की सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है। तकनीकी उपकरणों का सही और नियंत्रित उपयोग सुनिश्चित करना, पारिवारिक संवाद और विद्यालय के अनुशासन को सुदृढ़ करना, और नई शिक्षा नीति 2020 के नैतिक एवं व्यावहारिक दिशा-निर्देशों का पालन करना; यह सब मिलकर एक स्वस्थ और सुरक्षित समाज के निर्माण में सहायक होगा। “सा विद्या या विमुक्तये” अर्थात्- सच्ची शिक्षा वही है, जो जीवन में सही मार्ग दिखाए और मुक्त करे।
-विकास मिश्र, शोधार्थी, दर्शन एवं संस्कृति विभाग, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा