कुछ बातों का ग्लैमर इतना ज्यादा रहता है कि हम अंधे हो जाते हैं और जब आंख खुलती है तब तक सब कुछ खत्म हो चुका होता है। मैंने कभी नहीं सोचा था कि अनिरुद्ध के साथ मेरे रिश्ते ऐसे हो जाएंगे कि हमारा एक दूसरे को देखना भी नागवार गुजरेगा। मैं अनिरुद्ध के प्रेम में बिल्कुल अंधी हो चुकी थी। मुझे उसकी हर बात, हर अदा, हर अंदाज पसंद आता था। वो बात करता था तो उसके चेहरे से नजर हटाने का मन नहीं होता था। उसका…उसका ड्रेसिंग सेंस गजब का था। कौन से मौके पर क्या पहनना है, उसे बखूबी पता था। हर समय वो हंसता खिलखिलाता रहता था। बातों का जादूगर था वो। वो छोटी-छोटी सी बातों पर मेरी तारीफ करते रहता था। कुल मिलाकर बात यह थी कि मुझे उसका साथ बहुत अच्छा लगता था। हमलोगों के ख्यालात अलग थे मगर फिर भी हम दोनों को एक दूसरे का साथ बहुत अच्छा लगता था। हम दोनों ही आईटी सेक्टर में काम करते थे लिहाजा वक्त भी साथ में ज्यादा गुजरता था।
यूं अनिरुद्ध थोड़ा उच्श्रृंखल स्वभाव का था, जो मन में आता था वह बोल देता था और जो ठान लेता था वही करता था लेकिन मुझे यह सब कभी गलत नहीं लगा। दो साल से हम दोनों एक दूसरे को डेट कर रहे थे, लेकिन मैंने एक बात नोटिस की कि अनिरुध बहुत महत्वाकांक्षी था। उसका इरादा था कि उसका करियर अच्छे से सेट हो जाए फिर बाद में वह शादी के बारे में सोचेगा और मैं अनिरुध के सेट होने का इंतजार कर रही थी।
अनिरुद्ध:- “माया क्या कर रही हो चलो कॉफी पीने चलते हैं। थोड़ा फ्रेश लगेगा।”
माया:- “हां…. आ रही हूं पांच मिनट में।”
अनिरुद्ध:- “ओके !” कुछ समय बाद दोनों ऑफिस की कैंटीन में कॉफी पीने चले गए।
माया:- “अनिरुद्ध! तुमने आगे के बारे में क्या सोचा है?”
अनिरुद्ध:- “मतलब? किस बारे में?”
माया:- “देखो! हम दोनों को साथ साथ दो साल हो गए हैं तो तुमने शादी के बारे में कुछ सोचा है ?”
अनिरुद्ध:- “देखो माया! मेरा कैरियर अभी सेट नहीं हो पाया है। मान लो कि हम शादी कर भी लेते हैं तो इतने कम पैसों में अच्छी लाइफ नहीं जी पाएंगे और एक स्टैंडर्ड लाइफ के लिए अच्छी जाब का होना बहुत जरूरी है और मैं यहां इस छोटे शहर में नहीं रहना चाहता हूं। मैं कई कंपनियों में इंटरव्यू दे रहा हूं, सिलेक्ट होते ही यहां से चला जाऊंगा।”
माया:- “और मैं!”
अनिरुध:- “अरे! तुम्हें कैसे छोड़ सकता हूं तुम्हें तो लेकर ही जाऊंगा। थोड़ा सेट हो जाऊं फिर शादी भी कर लेंगे।”
माया उदास हो गई पता नहीं कितना समय लगेगा इसको सेट होने में और मैं यहां अकेली कैसे रहूंगी! बड़े शहर में बड़े आकर्षण होते हैं, अगर कोई और पसंद आ गई तो मैं क्या करूंगी? अनिरुद्ध दूसरे शहर ना जा पाए माया इस सोच विचार में डूब गई।
दिन गुजरते जा रहे थे और अनिरुद्ध अपने काम के प्रति बहुत सिंसीयर हो गया था और इधर माया इस सोच में डूबी थी कि क्या करूं कि अनिरुद्ध बाहर जाने का विचार छोड़ दे। कुछ दिनों बाद अनिरुद्ध ने खुश होकर माया को बताया कि पुणे की एक कंपनी में उसका सिलेक्शन हो गया है और एक हफ्ते में उसे वहां ज्वाइन करना है। अनिरुद्ध खुशी से फूला नहीं समा रहा था। उसकी दिली इच्छा पूरी हो गई थी।
अनिरुद्ध:- “माया! बहुत बड़ी कंपनी है, उसमें मेरा केबिन अलग होगा। अब मेरी तरक्की के रास्ते खुल गए हैं। तुम देखना अब मैं कैसे दौड़ता हूं।”
माया:- “और मैं? मैं अकेली कैसे रहूंगी?”
अनिरुद्ध:- “परेशान क्यों होती हो! कुछ समय बाद आकर तुम्हें ले जाऊंगा। मुझे वहां सेट तो होने दो।”
माया:- “ठीक है।”
अनिरुद्ध खुशी-खुशी अपनी पैकिंग में लग गया और माया भारी मन से अनिरुद्ध को एयरपोर्ट पर छोड़कर आई। उसका मन बेचैन था। उसका बस चलता तो वह भी अनिरुद्ध के साथ चली जाती।
कुछ दिनों से माया थोड़ी चिड़चिड़ी हो गई थी। वो ठीक से खाना नहीं खा रही थी और उसकी आंखों के नीचे काले घेरे नजर आने लगे थे।
मां:- “क्या बात है माया बड़ी उदास रहती हो आजकल? सब ठीक तो है ना, कोई बात है तो मुझे बताओ?”
माया:- “मां! मेरे ऑफिस में एक लड़का है जिसे मैं पसंद करती हूं। अभी पुणे में उसकी नई जॉब लगी है तो वह पुणे गया है। बस यही बात है।”
मां:- “ओह! कब से जानते हो एक दूसरे को?”
माया:- “करीब दो साल होने को आ रहे हैं। वह अपने अच्छे कैरियर की तैयारी कर रहा है और उसे गए हुए चार पांच दिन हो गये है लेकिन उससे ठीक से बात नहीं हो पा रही है।”
मां:- “कोई बात नहीं! नई जगह, नए लोग, नया माहौल उसे सेट होने में वक्त तो लगेगा ही। फिर अब आगे का तुम दोनों का क्या विचार है?”
माया:- “अनिरुद्ध ने कहा था कि वहां सेट होने के बाद जब यहां आएगा तब शादी करेगा।”
मां:- “ठीक है। जब वह आएगा तब उससे मिलवाना। परिवार देखेंगे कैसा है फिर सोचेंगे इस बारे में और अभी यह बात किसी से मत करना समझी।”
माया:- “जी!”
माया ने अनिरुद्ध को फोन लगाया रिंग बजकर बंद हो गई कॉल रिसीव नहीं हुई। दो बार और लगाया लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुई। वो मन में उल्टे सीधे विचार लेकर सो गई। अगले दिन सुबह उठते ही उसने फिर से अनिरुद्ध को फोन लगाया। नींद में भरी हुई अनिरुद्ध की आवाज आई।
अनिरुद्ध:- “हेलो! कौन बोल रहा है?”
माया:- “मैं बोल रही हूं! अब तुम मेरी आवाज भी नहीं पहचान पा रहे हो। कल फोन क्यों नहीं उठाया तुमने।”
अनिरुद्ध:- “कल दोस्तों के साथ पार्टी में था तो बहुत लेट हो गया था। मैं बाद में तुमसे बात करता हूं और फोन रख देता है।”
ऑफिस जाने के लिए तैयार होते समय अनिरुद्ध ने माया को फोन किया।
अनिरुध:- “हेलो! माया! हां यार उसे समय मैं बहुत नींद में था। कल ड्रिंक ज्यादा हो गई थी तो सर में दर्द हो रहा था। बोलो क्या बात है? तुम ठीक तो हो ना?”
अनिरुद्ध:- हां मैं ठीक हूं! और तुम्हारा काम कैसा चल रहा है।”
माया:- “ठीक ही है, मैंने मम्मी को सब बता दिया है और वह तुमसे मिलना चाहती हैं।”
अनिरुध:- “मिलना चाहती हैं? क्यों?”
माया:- “हमारी शादी के सिलसिले में।”
अनिरुद्ध:- “मैंने तुमसे कहा था कि मैं अभी शादी के बारे में नहीं सोच रहा हूं। मुझे वक्त चाहिए, अभी तो मैं ठीक से सेट भी नहीं हो पाया हूं।”
माया:- “कितना वक्त चाहिए तुम्हें?”
अनिरुद्ध:- “यह कैसे बता सकता हूं मैं? फिलहाल अभी तो मैं शादी के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हूं।”
माया:- “मेरे घरवाले बहुत ज्यादा लंबे समय तक इंतजार नहीं करेंगे।”
अनिरुद्ध:- “अब तुम सोच लो आराम से! मुझे ऑफिस जाना है, लेट हो रहा है.. बाद में बात करते हैं और वह फोन रख देता है।”
माया सोच विचार में पड़ जाती है फिर वह अपनी मां से बात करती है और बताती है कि अनिरुद्ध अभी शादी नहीं करना चाहता है कुछ साल।
मां:- “इतना ज्यादा समय तो हम लोग नहीं रुक सकते। तुम्हारी बुआ एक रिश्ता लेकर आई है, अच्छा परिवार है। लड़का भी अच्छा कमाता है। सी ए है, ज्यादा बड़ा परिवार भी नहीं है, बहन की शादी हो गई है। वह लोग तुम्हें देखने के लिए आने वाले हैं।”
माया:- “क्या? आपने मुझे कुछ बताया भी नहीं और मुझसे पूछा भी नहीं?”
मां:- “बेटा एक ही रिश्ता देखकर हां तो नहीं कर देंगे, फिर तुम्हारा अनिरुद्ध कहां आ रहा है और इतने साल तो हम लोग इंतजार भी नहीं कर सकते अगर लड़का अच्छा लगा और वह लोग तुम्हें पसंद कर लेते हैं तो तुम्हारा रिश्ता पक्का कर देंगे।”
माया परेशान हो जाती है उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें अगले दिन शाम को मां ने बताया कि संडे को लड़के वाले आ रहे हैं तुमसे मिलने तो तुम तैयार हो जाना। माया कुछ बोली नहीं।
आखिर संडे का दिन आ गया और वह लोग दोपहर के खाने पर आमंत्रित थे। लड़के का नाम विकास था और वह देखने में खूबसूरत था। लड़की के माता-पिता भी बहुत मिलनसार थे। हंसी मजाक से माहौल जरा हल्का हो गया था और सभी लोग सहज होकर बातचीत कर रहे थे। बातचीत के दौरान विकास की मां ने माया से बातचीत की, “बेटा ज्यादा तो क्या पूछना बस यही बता दो कि घर के कामकाज आते हैं क्या? खाना बना लेती हो?
माया:- “जी जानती हूं।”
विकास की मां:- “आफिस में काम कैसा चल रहा है?”
माया:- “जी…काम अभी नया-नया है पर सीख रही हूं।”
विकास की मां:- देखो बेटा तुम्हारी नौकरी से हमें कोई दिक्कत नहीं है। आजकल लड़कियों का अपने पैरों पर खड़े होना जरूरी है। पहनने ओढ़ने पर भी कोई पाबंदी नहीं है। जो मन हो वह पहनो बस मर्यादा का ख्याल रखो। विकास और घर को संभाल लो, इतना ही चाहते हैं हम। बहन जी हमें आपकी बेटी पसंद है। अरे विकास तुम्हें कुछ पूछना हो या बात करनी हो तो कर लो।”
माया उठकर अंदर चली जाती है। सब हंसने लगते हैं। माया मन ही मन परेशान थी कि क्या करें। रात में उसने अनिरुद्ध को फोन लगाया और सारी बातें बतायी।
अनिरुद्ध:- “तुम क्या चाहती हो यह बताओ? मैंने तुम्हें मेरे मन की बात बता दी है अब तुम बताओ कि क्या करना है?”
माया:- “मैं तुम्हारे पास आ जाऊं?”
अनिरुद्ध:- “क्या? क्या कह रही हो? इस तरह घर से भागना सही नहीं है। तुम्हारी नौकरी, परिवार सब छूट जाएगा।”
माया:- “लेकिन मैं तुम्हें भी तो नहीं खोना चाहती हूं और थोड़े वक्त तक मम्मी नाराज रहेगी फिर मान जायेगी।”
अनिरुद्ध:- “देख लो तुम और ठीक से सोच विचार कर लो फिर कोई कदम उठाओ। आने से पहले खबर करना स्टेशन आ जाऊंगा।” और वो फोन रख देता है।
बहुत सोच विचार कर माया अनिरुद्ध के पास जाने का मन बना लेती है और वो तैयारी करने लगती है। अपने लैपटॉप के बैग में कुछ कपड़े रखती है और ऑफिस चली जाती है। वहां से ट्रेन पड़कर अनिरुद्ध के पास पुणे आ जाती है। वह अपनी मां को मैसेज करती है कि वह पुणे जा रही है अनिरुद्ध के पास। उसे विकास से शादी नहीं करनी है।
मां सदमे में आ जाती है और सिर पकड़कर सोफे पर बैठ जाती है। उसकी रुलाई छूट जाती है अपनी बेटी की ऐसी हरकत पर।
पुणे स्टेशन पर अनिरुद्ध उसे लेने आता है दोनों बहुत गर्मजोशी से गले मिलते हैं। रास्ते भर माया शहर का नजारा देखते रहती है। बड़ी-बड़ी इमारतें, टैक्सी, दुकानों की चकाचौंध, लोगों के पहनावे सब कुछ बहुत अलग सा था उसके शहर से। एक बिल्डिंग के पास टैक्सी रुकी। अनिरुद्ध ने दसवीं मंजिल पर लिफ्ट रोकी और फ्लैट का दरवाजा खोला।
माया:- अनिरुद्ध कितने ऊपर आ गए हैं हम लोग सब कुछ छोटा-छोटा सा दिख रहा ह। इतना ऊपर रहते हो तुम!” अनिरुद्ध हंसा और बोला, “आओ अंदर चलो, थक गई होगी। फ्रेश हो जाओ चेंज कर लो फिर खाना खाते हैं।”
माया फ्रेश होने चली गई। वह बहुत खुश थी सब कुछ सपने जैसा लग रहा था। जब वह बाहर आई तब अनिरुद्ध खाने की तैयारी कर रहा था। दोनों ने साथ में खाना खाया फिर अनिरुद्ध ने पूछा कि आइसक्रीम खाओगी क्या?” माया ने हामी भरी तो अनिरुद्ध दो प्यालों में आइसक्रीम लेकर माया के पास आ गया दोनों पास में बैठे और एक दूसरे को आइसक्रीम खिलने लगे।
अनिरुद्ध ने अपनी पहचान के बल पर माया को नौकरी दिलवा दी। अब माया भी व्यस्त हो गई। दोनों काम पर निकल जाते हैं और शाम होने के बाद ही घर वापस आते। शुरू शुरू में माया अनिरुद्ध का बहुत ख्याल रखती थी। उसका नाश्ता, खाना, कपड़े वगैरह सभी चीजों का ध्यान रखती थी। एक तरह से वह पूरा घर संभालने लगी थी। इस वजह से अनिरुद्ध घर के प्रति और ज्यादा लापरवाह हो गया था। धीरे धीरे उसने घर की तरफ ध्यान देना बिल्कुल ही बंद कर दिया था। शुरू शुरू में माया को यह सब अच्छा लगता था लेकिन धीरे-धीरे वह परेशान होने लगी। काम से थक कर घर आने पर सब अस्त-व्यस्त देखकर वह चिढ़ जाती थी और गुस्से में सब काम करती। कभी-कभी अनिरुद्ध पर भी चिढ़ जाती थी। कुछ दिनों तक ऐसा ही चलता रहा। एक दिन अनिरुद्ध के सर में दर्द हो रहा था, वो फोन पर किसी से बात कर रहा था। माया ने उसे अपने जूते सही जगह पर रखने को कहा, टॉवल बाहर सुखाने को बोला और कहा कि अपना रूम सही से रखा करें। अनिरुद्ध गुस्से से चिल्लाने लगा।
अनिरुद्ध:- “देखो माया मैं काफी समय से देख रहा हूं तुम हर बात में टोका-टाकी करने लगी हो। मुझे जैसे रहना होगा मैं रहूंगा, तुम अपना देखो। क्या मैं तुमसे किसी चीज की उम्मीद करता हूं नहीं ना फिर मेरे पीछे मत पड़ा करो।”
माया:- “तो क्या घर ऐसे ही गंदा रहने दूं। मैं भी ऑफिस से आकर थक जाती हूं। फिर रोज के सारे काम मुझसे अकेले नहीं होते हैं तुम भी मदद कर दिया करो।”
अनिरुद्ध:- “तो किसने कहा कि करो यह सब काम। तुम तुम्हारा देखो, मेरा काम मत किया करो और अगर तुम्हें मेरे साथ रहने में दिक्कत है तो अपने लिए अलग घर देख लो।”
माया यह सुनकर सन्न रह गई। उसे सपने में भी यह आशा नहीं थी कि अनिरुद्ध उससे ऐसा कहेगा जिसके लिए वह घर छोड़कर आई थी, जिसके लिए उसने खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया था आज उसने ऐसी बात कह दी। उसे भरोसा नहीं हो रहा था। उसका मन टूट गया वह चुपचाप अपने कमरे में आ गई। रोते-रोते रात में बहुत देर से नींद आने के कारण सुबह देर से आंख खुली, देखा कि अनिरुद्ध जा चुका था और किचन बिखरा हुआ था। माया को समझ में नहीं आ रहा था कि वह किचन साफ करें या ऑफिस जाने की तैयारी करें। सर में तेज दर्द हो रहा था। सब काम छोड़कर वह ऑफिस चली गई। शाम को जब वह घर आई तो अनिरुद्ध कहीं बाहर जाने की तैयारी में था। माया ने उसे रोक कर कहा, “कल वीकेंड है कहीं बाहर चलते हैं, बहुत दिनों से हम कहीं बाहर नहीं गए हैं।”
अनिरुद्ध:- “इस बार नहीं, मेरा दोस्तों के साथ पहले से ही प्रोग्राम फिक्स हो गया है। पहले बोल देती तो कुछ सोचता। मुझे लेट हो जाएगा तुम सो जाना।”
माया दुखी हो गई और बेमन से घर का सारा काम समेटा और अपने लिये खाने में मैगी बनाई। मुंह में एक कौर डालते ही रोना आ गया। क्या सपने लेकर आई थी और क्या जीवन जी रही हूं मैं और अब वापस भी किस मुंह से जाऊं अपने घर पर। अगले दिन सुबह उसने अनिरुद्ध से कहा कि, “मैं अकेली घर पर क्या करूंगी सारा दिन, मुझे भी चलना है तुम्हारे साथ।”
अनिरुद्ध:- “इस बार हम लड़के ही जा रहे हैं बाहर कोई लड़की साथ में होती तो तुमको भी ले चलता। तुम अपनी सहेलियों के साथ माल वगेरह घूम आओ।
माया:- “सुनो अनिरुद्ध…!”
अनिरुद्ध:- “प्लीज अब ज्यादा टोका टाकी मत करो। तुम देख लो तुम्हें क्या करना है, वैसे भी तुम्हें घर के काम ज्यादा पसंद है।”
मैं कुछ कह नहीं पाई। दोपहर के खाने में मैंने मेरे लिए खिचड़ी चढ़ा दी। घर की साफ सफाई के लिए मेड रख ली थी। मुझसे मैनेज नहीं हो पा रहा था सब कुछ अकेले। मैं सोफे पर बैठ गई और मेड का इंतजार करने लगी।
अगले दिन ऑफिस जाते समय अनिरुद्ध के जोर से चिल्लाने की आवाज आई।
अनिरुद्ध:- “माया! मेरे फोन का चार्जर कहां है? मिल नहीं रहा, कितनी बार कहा है कि मेरे कमरे में मत आया करो, मेरी चीजों से छेड़छाड़ मत किया करो।”
माया:- “वह पलंग के साइड ड्राअर में रखा है और अगर अंदर रख दिया तो क्या हो गया?”
अनिरुद्ध:- “नहीं! मेरी चीजों को हाथ मत लगाया करो, मुझे मिलती नहीं। कपड़े ढूंढने में आधा घंटा लग जाता है मुझे! रुमाल मोजे पता नहीं कहां रख देती हो। दो दिन से घड़ी नहीं मिल रही है।”
माया:- “सब सही तरीके से तो रख दिया है, थोड़ा आंखें खोल कर देखोगे तो सब दिख जाएगा।”
अनिरुद्ध:- “मुझे नहीं देखना, मेरा समय खराब मत करो, जाओ यहां से और रात को मैं लेट आऊंगा, मेरा इंतजार मत करना।”
माया:- “क्यों कहां जा रहे हो और खाना तो घर पर ही खाओगे ना?”
अनिरुद्ध:- “अभी कुछ पता नहीं मुझे।”
अनिरुद्ध अपने काम और ऑफिस में इतना बिजी रहता था कि वह माया की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं दे पाता था। उसे बस अपना कैरियर दिखता था उसे आगे बढ़ने की धुन सवार थी, जिसके लिए वह लोगों से मुलाकात और कॉन्टेक्ट्स बनाने में व्यस्त रहता था। माया यह सोचकर पुणे आई थी कि दोनों मिलकर अपनी एक नई दुनिया बनाएंगे और साथ ही अपना कैरियर भी आगे बढ़ाएंगे लेकिन वह बिल्कुल अकेली होती जा रही थी और आए दिन दोनों के बीच झगड़े भी बढ़ते जा रहे थे। एक दिन माया ने अनिरुद्ध को अपनी किसी दोस्त से बात करते हुए सुन लिया।
अनिरुद्ध:- “यार मैं परेशान हो गया हूं माया से, हर समय टोका-टाकी करते रहती है। अकेले रहता था तो ठीक था। यह बंधन नहीं चाहिए मुझे। अपना सब कुछ छोड़कर यहां चली आई है वो। क्या करूं मैं? पत्नी बनकर रहना था तो जहां मां शादी कर रही थी वहीं कर लेती। मैंने तो पहले ही कहा था कि मैं अभी शादी करने के मूड में नहीं हूं। समझ में नहीं आ रहा है कि इससे कैसे पिंड छुड़ाऊं।”
यह सुनकर माया के पैरों के नीचे से जमीन खिसक गई। जिसके लिए मन में इतना प्रेम लेकर आई थी उसके मन में उसके लिए ऐसे विचार थे। उसका मन एक मिनट भी रुकने का नहीं हो रहा था। वह तुरंत इस घर से चली जाना चाहती थी लेकिन वह कहां जाती। वो यहां किसी को जानती भी नहीं थी। उसकी रुलाई छूट पड़ी उसने ऑफिस से छुट्टी ली और सोचने लगी कि आगे क्या करूं?
हतप्रभ सी माया अपने कमरे में आ गई और फूट-फूट कर रोने लगी।
कई बार उसके मन में आत्महत्या करने का भी ख्याल आया फिर मन कड़ा करके उसने अपनी मां को सब बता देने का फैसला किया। मां की डांट मार जो भी होगा झेल लेगी लेकिन इस नरक से निकल जाएगी। अगले दिन सुबह उसने अपनी मां को फोन किया।
माया:- “हेलो मम्मी! मैं माया बोल रही हूं!”
मां:- “हां… मालूम है! बोलो क्या हुआ? सारे अरमान पूरे हो गए तुम्हारे?”
जवाब में माया रोने लगी तो मां बेचैन हो गई।
मां:- “क्या हो गया बेटा! पूरी बात बताओ।”
माया ने धीरे-धीरे सारी बातें मां को बताई।
मां:- “कोई बात नहीं! घर आ जाओ अभी समय है सब ठीक हो जाएगा। नहीं तो इस तरह पूरा जीवन बर्बाद हो जाएगा।”
माया अनिरुद्ध के नाम एक लेटर छोड़कर स्टेशन की ओर चल पड़ी। ट्रेन में बैठकर वह अनिरुद्ध के साथ बिताया हुआ पुराना वक्त याद करने लगी और सोचते सोचते वह वर्तमान जीवन से तुलना करने लगी। उसका मन वितृष्णा से भर गया। वह यह सब एक बुरे स्वप्न की तरह भूल जाना चाहती थी लेकिन यादें आसानी से पीछा नहीं छोड़ती। घर आकर वो मां के पास बहुत रोई।
माया:- “मां! मैंने आपकी बात नहीं सुनी। उन लोगों के सामने आपका सम्मान गिरा दिया। मुझे माफ कर दो।”
मां:- “कोई बात नहीं! विकास से शादी करोगी?”
माया:- “क्या? मुझे कुछ समय दो आप। अभी मेरा मन शांत नहीं है मगर क्या अभी भी उन्हें कुछ मालूम नहीं है?”
मां:- “मैंने बात संभाल ली थी और कह दिया था कि एक कंपनी में इंटरव्यू चल रहा था, वहां पर ट्रेनिंग के लिए गई है, अचानक से जाना हो गया। सभी से यही बात कही है। अब पुरानी बातों को छोड़ो और नई जिंदगी शुरू करो।”
माया मां के गले लग कर जोर-जोर से रोने लगी।
मां:- “देखो बेटा यह सुनने में अच्छा लगता है कि वो लिव इन में रह रहा है या रह रही है लेकिन इसके दुष्परिणाम भी तो सोचना चाहिए। अगर वो तुमसे शादी नहीं करता और तुम एक बच्चे की मां बन जाती तो क्या होता? सोचा है कभी? उस बच्चे को किसका नाम देती? और उन बच्चों का भविष्य क्या होता? सिर्फ मौज मजे के लिए बनाये गये रिश्तों में हम आखिर में सिर्फ ठगे से रह जाते हैं। बदनामी अलग से होती है। लिव इन सिर्फ जिम्मेदारी से भागना है.. जिन्हें परिवार नहीं चाहिए, बच्चे नहीं चाहिए, रिश्ते नहीं चाहते वो लोग ही इस तरह के कदम उठाते हैं। पारिवारिक सपोर्ट से की गई शादी में फिर एक बार गुंजाइश रहती है रिश्तों को बचाने की। इसलिए ऐसे कदम बहुत सोच समझकर उठाने चाहिए।” माया ने अपनी मां की बात पर हामी भरी और माफी मांगी। उसने विकास से शादी के लिए हां कह दिया और वो अपना अतीत एक बुरे स्वप्न की तरह भूल जाना चाहती थी।
-प्रियंका वर्मा महेश्वरी