आज विश्व पर्यावरण दिवस पर सोशल मीडिया पर पेड़ पौधे लगाते लोगों की तस्वीरें खूब पोस्ट हुई। क्या ये सभी लगाए पेड़ बच जाएंगे। जवाब में आओ यही कहेंगे नहीं। क्योंकि आज हम कोई भी दिवस आता है उसे औपचारिक तौर पर मना लेते हैं। दिवस की सार्थकता तभी होती है जब धरातल पर काम होता है। मात्र अखबार में फ़ोटो व न्यूज़ देना ही हमारा उद्देश्य नहीं होना चाहिए। आज धरती का तापमान कितना बढ़ता जा रहा है। पेड़ कटते जा रहे हैं। सड़कों का जाल बिछ रहा है मगर साथ ही हज़ारो पेड़ काट दिए जाते हैं। धूल धुंआ के सिवाय क्या बचा है अब। हर ओर प्रदूषण ही प्रदूषण। वायु प्रदूषण ,ध्वनि प्रदूषण असहनीय हो गया है। बढ़ते वाहनों की रेलमपेल ने जीवन नारकीय कर दिया है। वायु प्रदूषण बढ़ते कल कारखानों की चिमनियों से निकले जहरीले धुएं ने बस्तियों में अनेक रोग फैला दिए हैं। प्लास्टिक प्रदूषण से सब दुखी है। मूक पशु इन्हें खाकर मर रहे हैं। पवित्र नदियां गंगा यमुना क्षिप्रा नर्मदा आदि सभी मैली हो गई है। कचरे के ढेर ही ढेर हैं नदियों के किनारे बसे बड़े महानगरों के बुरे हाल हैं। करोड़ो रूपये जिन नदियों को साफ करने के लिए खर्च किये लेकिन आज भी ये गंदी ही है।
लगातार अनावश्यक रूप से वनों की कटोती व बढ़ता शहरीकरण औधोगिकरण से प्रदूषण बढ़ा है। इससे विषैला कचरा मिट्टी हवा व पानी सभी प्रदूषित हो गया है। सार्वजनिक स्तर पर आज सामाजिक जागरूकता फैलाने की आवश्यकता है।
आधुनिक युग मे तकनीकी प्रगति को प्राथमिकता दी जा रही है इसलिए आज मनुष्य जीवन का तरीका अनुशासन भूलता जा रहा है। वट पीपल नीम जो सबसे ज्यादा ऑक्सीजन देते है उन्हें काटा जा रहा है। भला प्राणवायु कैसे मिलेगी। शास्त्रों में इनके पूजन का विधान इसलिए बताया कि ये जीवनदायिनी पेड़ हैं। हर घर मे तुलसी होना चाहिए। कई पौधे औषधियां देकर हमे निरोग रखते हैं।
पेड़ों से ठंडी छाया फल फूल मेवे मिलते हैं पेड़ों को जब हम पत्थर मारते है न तो बदले में वे हमें फल ही देते हैं पेड़ बड़े उपकारी होते हैं ये धरती माँ का श्रृंगार होते हैं।
आज किसानों के पास खेती की जमीन नहीं है खेतों में बहुमंजिला इमारतें बन गई है। खेत कॉन्क्रीट के जंगल हो गए। खाने के लिए अन्न कहाँ पैदा होगा सोचिये। हमारे पुराने जल स्रोत सुख गए कुएं बावड़ी सभी कचरे से भर गए।
आज वायु प्रदूषण के कारण धरती का तापमान बढ़ रहा है । सूर्य से आने वाली गर्मी के कारण पर्यावरण में कार्बनडाई आक्साइड मीथेन नाइट्रस आक्साइड का प्रभाव कम नहीं होता जो कि हानिकारक है।अम्लीय वर्षा के खतरे बढ़ रहे हैं। बारिश के पानी मे सल्फर डाई आक्साइड नाइट्रोजन आक्साइड जैसी विषैली गैस घुलने की संभावना है। इससे हमारी फसलें पेड़ों भवनों ऐतिहासिक ईमारतों को नुकसान पहुंच सकता है।आज दमा खाँसी अंधापन त्वचा रोग आदि वायु में अवांछित गैसों के कारण हो रहे हैं।
आज हम कृषि में कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं जिससे मृदा प्रदूषण बढ़ गया है। हम सब्जी फल आदि केमिकल युक्त खा रहे हैं। बाजार में पके फल सभी कच्चे फलों को केमिकल से पका कर बेचे जा रहे है जिससे बीमारियां हो रही है। हमारी खेतों की मिट्टी प्रदूषित हो गई है। मृदा की उपज में भी अंतर आया है।ठोस कचरे के कारण खेतों में प्रदूषण बढा है।
जल प्रदूषण की बात की जाय तो राजधानी दिल्ली का 57 फीसदी कचरा आज यमुना में फेंका जा रहा है। दिल्ली के 50 प्रतिशत लोगों को ही उचित सीवरेज प्रणाली से जोड़ा गया है।
गंगा नदी में प्रति 100 मिलीलीटर जल में 60000 फ्रेकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया होते हैं जो मानव स्वास्थ्य हेतु हानिकारक हैं।गंगा में प्रतिदिन 1 बिलियन लीटर कच्चे अनुपचारित सीवेज को प्रवाहित किया जाता है।
आज औधोगिक कचरे व सीवेज के उपचार के लिए आगे आने की जरूरत है।नदियों के किनारे साफ सफाई तभी होगी जब हम सरकार का सहयोग करेंगे। सांसे हो रही है कम आओ पेड़ लगाएं हम कहने से काम नहीं चलेगा आज जरूरत है प्रत्येक भारतीय एक पेड़ लगाकर उसे बड़ा करे उसकी आजीवन रक्षा करें। 1992 में ब्राजील में 174 देशों का पृथ्वी सम्मेलन हुआ था जिसका उद्देश्य था पर्यावरण संरक्षण। इसके बाद 2002 में जोहान्सबर्ग में फिर समनेलन हुआ। ऐसे सम्मेलन होते रहना चाहिए जिससे विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण की रणनीति तैयार कर उसे कार्यरूप दिया जा सके।
भारत की पवित्र नदी गंगा की सफाई के लिए सरकार द्वारा नमामि गंगे योजना शुरू की गई जिसमें 18 से 48 माह के मध्य काम पूरे होंगे। इसमें 200 करोड़ रुपये की 26 परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है। नमामि गंगे कार्यक्रम में 20,000 करोड़ रुपये की लागत में 7272 करोड़ नए कार्यक्रम हेतु मंजूर हुए हैं। आज गंगा फिर भी साफ नहीं है। विचारणीय प्रश्न यह है कि क्या आज हम जागरूक रहकर इन नदियों के प्रदूषण को खत्म नहीं कर सकते।
यमुना हो या नर्मदा सभी नदियों को बचाना हम सभी का कर्तव्य है। आइये पर्यावरण बचाने के लिए एक कदम आप भी बधाएँ आओ मिलकर पर्यावरण को बचाएं।
-राजेश कुमार शर्मा” पुरोहित (शिक्षक एवम साहित्यकार)