कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। दिन-प्रतिदिन जल स्तर में हो रही कमी में सुधार हेतु भूजल संचयन उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि के दृष्टिगत ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति के माध्यम से पौधों को सीधे विभिन्न प्रकार के संयंत्रों, पाइप, तकनीकों को अपनाकर उनकी उम्र, आवश्यकतानुसार जल उपलब्ध कराकर गुणवत्तायुक्त उत्पादन जल एवं ऊर्जा की बचत में योगदान करना माइक्रोइरीगेशन का मुख्य उद्देश्य हैै। प्रदेश में प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजनान्तर्गत ‘पर ड्राॅप मोर क्राॅप’ के अन्तर्गत ड्रिप एवं स्प्रिंकलर सिंचाई को किसानों के लिए उपयोगी बनाया जा रहा है। इस पद्धति को अपनाते हुए किसान कम पानी से अधिक उपज करते हुए अपनी आय में वृद्धि कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना- ‘पर ड्राॅप मोर क्राॅप’ (माइक्रोइरीगेशन) का कार्यक्षेत्र उ0प्र0 के समस्त जनपद हे किन्तु प्रदेश के अतिदोहित क्रिटिकल एवं सेमीक्रिटिकल जनपदों के विकास खण्डों में प्राथमिकता पर इसे लागू करते हुए क्रियान्वयन किया जा रहा है। आज विभिन्न क्षेत्रों में जल की आवश्यकता बढ़ रही है, धरती से जल का दोहन लगातार हो रहा है। बढ़ती हुयी जनसंख्या का सीमित जल संसाधनों के द्वारा आवश्यक खाद्य सामग्री उपलब्ध कराना भी आवश्यक है। ऐसी स्थिति में फसलों के उत्पादन में कृषक माइक्रोइरीगेशन अपनाकर कम जल से अधिक फसलों का उत्पादन कर सकते हैं।
ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति अपनाने से किसानों को बड़ा लाभ है। इस पद्धति से केवल पौधों में पानी देने से पानी की बचत पौधांे को पानी देने के लिए मेड़ व नालियाँ बनाने की जरूरत नहीं पड़ती है। इस तरह फसल के पौधों को सीधे पानी मिलने से फसल की गुणवत्ता एवं पैदावार में वृद्धि होती है। जड़ों में पानी देने से खर-पतवार पर प्रभावी नियन्त्रण, उर्वरक की बचत, ऊँची-नीची भूमि में पौधों की सिंचाई भली-भाँति होती है। पौधों में लगने वाले कीट व अन्य रोगों की उचित रोकथाम होती है। सिंचाई कार्य में कम समय में सिंचाई होती है, जिससे किसान अन्य कार्यों में समय का उपयोग कर सकते हैं। ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति प्रदेश के कम वर्षा व बुन्देलखण्ड क्षेत्र के किसानों के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध हो रही है।
ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति अपनाने के लिए कृषकों पर पड़ रहे व्यय भार को कम करने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा लघु एवं सीमान्त कृषकों को ईकाई लागत के सापेक्ष 90 प्रतिशत एवं अन्य कृषकों को 80 प्रतिशत अनुदान देने की व्यवस्था की गयी है। प्रदेश के अतिदोहित, क्रिटिकल एवं सेमीक्रिटिकल 261 विकासखण्डों में माइक्रोइरीगेशन पद्धति किसानों द्वारा अपनाते हुए वर्ष 2018-19 में 55074 हेक्टेयर भूमि की विभिन्न फसलों की सिंचाई की गई है। प्रदेश में 2019-20 में 57400 हेक्टेयर भूमि में ड्रिप/स्प्रिंकलर सिंचाई पद्धति के माध्यम से सिंचाई कराये जाने का लक्ष्य रखा गया है। प्रदेश के किसानों को इस सिंचाई पद्धति की जानकारी देने के साथ ही कृषि उपज में बड्ढोत्तरी कराकर उन्हें लाभान्वित किया जा रहा है।