प्रयागराज, वी. डी. पाण्डेय। प्रयागराज के आरटीओ आफिस में हर काम का सुविधा शुल्क का दाम तय है चाहे डीएल बनवाना हो, परमिट बनवाना हो या स्कूलों में खुलेआम डग्गामार वाहनों को बेधड़क चलवाना हो।
योगी सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद परिवहन विभाग पूरी तरह से भ्रष्टाचार के कीचड़ में कमल खिला रहा है लेकिन जिले में बैठे जिम्मेदारों के कानों पर जू तक नहीं रेग रही है।
आरटीओ साहब का सीयूजी न0 कई महीनों से बंद पड़ा है आरटीओ के न0 को स्कूल में चलने वाले वाहनों पर भी लिखा गया है जिसका कोई मतलब नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय के गाईड लाइन को धता बताकर बेधड़क बेखौफ डग्गामार वाहन रोड पर फर्राटे भर रहे है, नाबालिक युवकों के हाथ में मासूमो की जान सौप कर परिवहन विभाग कान में लीड लगाकर मासूमों को लाने ले जाने का काम कर रहे चालकों को कोई भी जिम्मेदार पूछने वाला नहीं है।
बिना पीले रंग से पोती गाड़िया स्कूलों में लगायी गयी है। मासूमों की जान जोखिम में डालकर स्कूल संचालक और अधिकारी रोड पर सरपट दौडा रहे वाहन। एक कहावत है ’सैंया भये कोतवाल तो डर काहेका’
एआरटीओ और आरटीओ को स्कूलों से मासूमों से कोई लेना देना नहीं है चाहे कोई मरे या जिए इनको तो एसी में बैठकर मलाई खाने से मतलब है।
दलाल चला रहे है आरटीओ आफिस अधिकारी सो रहे है कुंभकर्णी नीद। सीयूजी न0 क्यो बंद है, सर्वोच्च न्यायालय के गाईड लाइन का पालन क्यों नही करवाया जा रहा है, अभिभावक मोटी फीस देकर रोने को मजबूर क्यो है, आखिर स्कूल संचालक कानून का पालन क्यों नहीं करते इन तमाम सवालों के जबाब नहीं दे पा रहे है इस विभाग के आलाधिकारी, अधिकारियो का इस बारे में कहना है हम कार्यवाही कर रहे है। यदि कार्यवाही कर रहे है तो क्या है जो स्कूल से सड़क तक कानून को जेब में रखकर घूम रहे है। मतलब साफ है ’हाथी के दो दात होते है खाने के और दिखाने के और अब देखना है जिम्मेदारो की नींद समय रहते टूटती है या कुछ घरों के चिरागों को बुझाने के बाद, क्योकि यहा आग लगने पर कुआ खोदने की आदत सी पड़ गयी है। जब कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो कुछ दिन तक एलर्ट मोड में जहा कुछ समय बीता फोन बंदकर कुंभकरण की तरह सो जाते है।