गणेशोत्सव करीब ही है। बड़े मनोयोग और श्रद्धा से लोग गणपति को घर लाते हैं। दस दिन तक विराजने वाले गणपति की पूजा आराधना करते हैं। वैसे इस उत्सव को बाल गंगाधर तिलक ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए और भारतीयों को एकता के सूत्र में बांधने के लिए शुरू किया था जोकि अब उत्सव के रूप में देश में कई जगहों पर बड़े उत्साह के साथ मनाया जाने लगा है। वैसे तो गणपति के विषय में बहुत सी कथाएं प्रचलित है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि गणपति का विसर्जन क्यों किया जाता है? पुराणों में एक कथा प्रचलित है कि वेद व्यास जी ने गणेश चतुर्थी से महाभारत की कथा दस दिन तक लगातार सुनाई थी और इस कथा को गणेश जी ने अक्षरशः लिखा था। दस दिन बाद जब वेदव्यास जी ने आंखें खोली तो पाया कि दस दिन की अथक मेहनत से गणेश जी का तापमान बहुत अधिक बढ़ गया है तो वेदव्यास जी ने तुरंत गणेश जी को एक कुंड में ले जाकर ठंडा किया। इसीलिए गणेश जी की स्थापना करके चतुर्दशी को उन्हें शीतल किया जाता है।
ऐसा भी माना जाता है लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण करने के लिए अपनी इच्छाएं गणपति जी के कान में कह देते हैं और फिर इसी मूर्ति को अनंत चतुर्दशी के दिन बहते जल या नदी में विसर्जित कर देते हैं ताकि गणपति मूर्ति के रूप से मुक्त होकर निराकार रूप में देवलोक जा सके और लोगों द्वारा की गई प्रार्थना को वहां के देवताओं को सुना सके। कहा जाता है कि लोगों की प्रार्थना सुनकर गणपति जी बहुत गर्म हो गए, जिसके लिए उन्हें चतुर्दशी के दिन जल में ठंडा किया जाता है।
ये बात तो उनके विसर्जन की हुई लेकिन क्या आप जानते हैं कि “गणपति बप्पा मोरिया” क्यों कहा जाता है? गणपति के नाम के पीछे का शब्द मोरिया “मयूरेश्वर” का स्वरूप माना जाता है और कहा जाता है कि सिंधू नामक दानव से बचाने के लिए देवताओं ने गणेश जी का आह्वान किया था। सिंधु का संहार करने के लिए गणेश जी ने मोर को अपना वाहन बनाया और छह भुजाओं वाला अवतार धारण किया। इस अवतार की पूजा “गणपति बप्पा मोरिया” से होती है। यूं तो गणेश भगवान के बहुत से नाम है और बहुत सी कहानियां प्रचलित है लेकिन उनके बारह नाम ज्यादा प्रचलित है और इन्हीं नामों से उन्हें पूजा जाता है। सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोधर, विकट, विध्नविनाशक, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र, गजानन।
मूषक वाहन मूषक हंसता णपति का एक नाम लंबोदर भी है। गणपति को लंबोदर क्यों कहा जाता है? इस बारे ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान शंकर अपनी पत्नी पार्वती को जीवन और मृत्यु के रहस्य की बातें बता रहे थे और उनके बीच की बातें कोई और ना सुन ले इसके लिए उन्होंने कैलाश पर्वत के एक गुप्त स्थान पर गए वहां जाकर वो पार्वती जी को उन्हें जीवन और मृत्यु के रहस्य समझाने लगे और गणपति जी को उन्होंने द्वारपाल के रूप में तैनात कर दिया ताकि कोई अंदर ना आ सके। कुछ समय बाद देवताओं की टोली भगवान शंकर से मिलने आई लेकिन गणपति जी ने मिलने नहीं दिया। गणपति के व्यवहार से इंद्र को बहुत क्रोध आ गया और देखते ही देखते दोनों में युद्ध छिड़ गया। युद्ध में गणेश जी ने इंद्र को हरा दिया लेकिन युद्ध करते-करते उन्हें थकान और भूख लग आई थी। तब उन्होंने ढेर सारे फल खाए और गंगाजल पिया। ज्यादा भूख लगने के कारण वह खाते गए और पानी पीते गए जिससे उनका उदर बड़ा हो गया। जब शंकर जी की नजर गणेश जी पर पड़ी तो उनके लंबे उदर को देखकर उन्होंने उनको लंबोदर कहकर पुकारा। तब से उनका नाम लंबोदर हो गया।
“मूषिक वाहन मोदकहस्त, चमरकर्ण विलम्बित सूत्र। वामन रूप मदेश्वरपुत्र, विघ्न विनायक पाद नमस्ते।।” हे भगवान विनायक! आप सभी बाधाओं को हरने वाले हैं भगवान शिव जी के पुत्र हैं और आप वाहन के रूप में मूषकराज को लिए हुए हैं आप अपने हाथ में लड्डू लिए हुए हैं और विशाल कान, लंबी सूंड लिए हुए हैं पूरी श्रद्धा से आपको नमस्कार करता हूं। प्रियंका वरमा माहेश्वरी गुजरात