कानपुर नगर, महेंद्र कुमार। भूख क्या होती है ये तो बस वो मासूम ही समझ सकते है जिनका बचपन रोजाना सड़कों पर करतब दिखा 2 जून की रोटी कमाने में ही गुजर रहा है। जिस उम्र में बच्चे के कंधो पर स्कुल का बस्ता होता है, उस उम्र में इन मासूमों पर परिवार का बोझ लद जाता है और उसे पूरा करने के लिए ये रोज मौत को गले लगा, सड़कों पर करतब दिखाकर अपने परिवार का पेट पालने को मजबूर हो जाते है। ऐसा नजारा आपको शहरो में रोज कही न कही जरूर देखने को मिल जायेगा। जहां अपने जीवन यापन के लिए ये मासूम रोज अपनी ज़िंदगी को खतरे में डालते नजर आ जायेंगे। हर पल हादसे का खतरा जानते हुए भी रस्सी पर चलकर करतब दिखाते ये वो बच्चे होते है जिनका बचपन खिलौने से खेलते नहीं बल्कि मौत से खेलते बीतता है। ये बच्चे रोजाना अपना बचपन भूल जिम्मेदारियों को बोझा उठाये सड़को पर करतब दिखा लोगो का मनोरंजन करते है और बदले में तमाशा देख रहे लोग जो पैसे देते है उनसे अपनी रोटी का जुगाड़ करते है।
शहर की सड़को में यह तस्वीरें अब आम हो चली है। जगह-जगह इस तरह से मासूम जिंदगीयां रस्सियों पर झूलती आसानी से नजर आ जाएगी। दरअसल यह नट जाति के लोग होते है और पीढ़ियों से इसी तरह ही करतब दिखा कर अपना और अपने परिवार को पेट पालते चले आ रहे। 2 जून की रोटी जुटाने के लिए यह इस तरह के करतब शहर के अलग-अलग क्षेत्रों में बरसो से कर अपने परिवार को चला रहे है। तमाशा देख रहे कुछ लोगों का मानना है कि इस तरह की तस्वीरें बदलनी चाहिए और तस्वीरें तब ही बदलेगी जब लोग इन्हे पैसे देने बंद कर देंगे ताकि इस तरह के तमाशे बंद हो पाए। अब ऐसे में सवाल यह उठता है की क्या सिर्फ करतब के बदले इन्हे पैसे न देने से ही सब कुछ सही हो जायेगा और ये मासूम भी अन्य बच्चों की ही तरह रस्सी पर झूलने के बजाय स्कूलों के बैग टाँगे नजर आयंगे? और क्या कोई ऐसा उपाय है जिनसे इन मासूमों का भविष्य उज्व्वल हो सके।