कानपुर देहात, जन सामना ब्यूरो। उत्तर प्रदेश देश का ऐसा राज्य है जहां कई श्रम अधिनियमों में वाणिज्यिक, कारखानों एवं श्रमिकों के हित में आवश्यक संशोधन किये गये हैं। प्रदेश सरकार ने उ0प्र0 दुकान एवं वाणिज्य अधिष्ठान अधिनियम 1962 के अन्तर्गत बिना कर्मचारी वाले प्रतिष्ठानों को पंजीकरण से मुक्त रखा है। इसके साथ ही ओवर टाइम के घंटे बढ़ाये गये और महिलाओं को रात में काम करने की सशर्त अनुमति दी गई है। उसी तरह कारखाना अधिनियम 1948 के अन्तर्गत शक्तिचालित प्रतिष्ठानों में 10 श्रमिकों से बढ़ाकर 20 श्रमिक तथा शक्तिरहित प्रतिष्ठानों में 20 श्रमिक से बढ़ाकर 40 श्रमिक एवं ओवर टाइम के घंटे भी बढ़ाये गये। प्रदेश सरकार ने संविदा श्रम अधिनियम में आच्छादन 20 से बढ़ाकर 50 कर्मकार किया है। किसी भी प्रतिष्ठान में कार्यरत कि सी श्रमिक के साथ यदि कोई दुर्घटना हो जाती है और उस श्रमिक के परिवार द्वारा 06 माह तक दावा न प्रस्तुत किया जाय तो ऐसी स्थिति में सरकारी अधिकारी के माध्यम से वाद दायर किये जाने की व्यवस्था करते हुए प्रदेश सरकार ने कर्मचारी प्रतिकर अधिनियम 1923 के अन्तर्गत प्राविधान किया है। उसी तरह उ0प्र0 औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947 के अन्तर्गत प्रतिष्ठान के बंदी की स्थिति में 30 दिन का प्रतिकर व छटनी की स्थिति में भी 30 दिन का प्रतिकर दिये जाने की व्यवस्था की है। इस अधिनियम के अन्तर्गत अब विवाद प्रस्तुतीकरण का समय 02 वर्ष कर दिया गया है। उसी तरह प्रदेश सरकार ने जनहित के 13 श्रम अधिनियमों में आवश्यक संशोधन भी किया है। प्रदेश सरकार ने कारखानों में 10 वर्ष की नवीनीकरण वैधता के साथ लाइसेंस जारी किये जाने की सुविधा प्रदान की है, साथ ही टेक्सटाईल एवं वस्त्र उद्योग में नियत अवधि नियोजन का प्राविधान किया है। सरकार ने नवीन निरीक्षण प्रणाली व स्वप्रमाणन की पारदर्शी व्यवस्था भी लागू की है। प्रदेश में 07 श्रम अधिनियमों के अन्तर्गत पंजीयन, लाइसेंस, नवीनीकरण व अनुमोदन की 21 सेवाओं को आॅनलाइन तथा श्रम सुविधा पोर्टल के अन्तर्गत वार्षिक रिटर्न को ऑनलाइन दाखिल करने की सुविधा प्रदान की है। संविदा श्रम अधिनियम 1970 की प्रक्रिया भी सरकार ने आटोमेटेड कर दिया है इससे संविदाकारों/प्रतिष्ठानों के पंजीयन का कार्य तत्काल सुलभ हो रहा है। प्रदेश सरकार ने स्टार्ट अप नीति के अन्तर्गत स्थापित इकाईयों को 03 वर्ष तक निरीक्षण से छूट प्रदान की है।