कानपुर, महेंद्र कुमार। प्रकृति की वंदना का पर्व छठ यूं तो भारत के पूर्वांचल इलाके में ही मनाया जाता था लेकिन ग्लोबल होती दुनिया और संस्कृतियों के संगम के दौर में छठ पर्व अब सम्पूर्ण भारतवर्ष में मनाया जाने लगा है। हिन्दू पंचांग के अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष में मनाये जाने वाला यह एक ऐसा पर्व है। जिसमें उगते सूरज के साथ डूबते सूरज की भी वंदना की जाती है और जल अर्पित किया जाता है। छठ का यह पर्व साल में दो बार मनाया जाता है पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में। चैत्र में मनाये जाने वाले पर्व को चैती छठ और कार्तिक में मनाये जाने वाले को कार्तिक छठ कहते है।
दीपावली के बाद मनाए जाने वाले इस महापर्व का हिंदू धर्म में विशेष स्थान है। पौराणिक मान्याताओं के अनुसार छठ मैया सूर्य देवता की बहन है और सूर्य की उपासना से वह प्रसन्न होती है। लोगों का मानना है कि सच्चे मन से पूजा करने वालों की छठ मैया सभी मनोकामनायें जरूर पूर्ण करती है। पूजा को लेकर शहर में कई जगह लोगों के लिए तालाब नुमा गढ्ढे और नहर व नदी के किनारे घाट बनाये गए है। वहीं लोगों ने भी पहले से ही नहरों और तालाबों के किनारे अपनी अपनी पूजा की जगह आरक्षित कर ली है। छठ के रोज इन घाटों की छठा देखने लायक होती है, हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ इस महापर्व को मनाने के लिए तालाब या नहरों पर इकट्ठा होते है, जहां व्रती महिलायें अपने बच्चों व् पूरे परिवार की सुख समृद्धि, शांति व लम्बी उम्र के लिए छठ मैया की पूजा करती है।