उनकी स्वायत्तशासी का स्वीकार करो पितृसत्ता के पक्षधरों, अपनी लकीरों में खुद खुशियाँ भरना सीख गई है, आज की नारी प्रताड़ित होते देहरी के भीतर आँसू बहाना भूल गई है। था एक ज़माना जब महिलाएं कमज़ोर, बेबस, लाचार कहलाती थी। किसी और के तय किए हुए दायरे में सिमटी आज़ादी को तरसती, कोई भी निर्णय लेने से डरती हर हाल में जी लेती थी। तलाक और सेप्रेशन जैसे शब्दों से परहेज़ करती जैसे पति और ससुराल वालें रखें रह लेती थी। पर आज की लड़की मुखर हो गई है ज़िंदगी जीने का द्रष्टिकोण ही बदल लिया है। दहलीज़ के बाहर कदम धरने की फिराक में सदियों की जद्दोजहद से जूझते ख़्वाहिशों को परवाज़ देने कि हिम्मत बटोर ली है। नहीं घबराती अब ज़िंदगी की चुनौतियों से मर्द की प्रतिस्पर्धी बनकर उभर रही है।
पुरुष के पदचिन्हों पर नहीं चलती अब, खुद की अलग पगदंड़ी का निर्माण कर लिया है। हौसलों को अपना शृंगार बना लिया है और पढ़ लिखकर अपने आपको सक्षम बना लिया है। आज की नारी ने हीन भावना को त्याग कर परावलंबी होना छोड़ दिया है। ज़िंदगी को गौरवान्वित करते अपने पैरों पर खड़े होना सीख गई है। घर परिवार की सिमित क्षितिज से बाहर निकलकर चार पैसे कमाना तो सीख ही गई है, साथ में अपने बलबुते पर माँ-बाप और बच्चों का भरण-पोषण करने की काबिलियत भी पा ली है। हर अन्याय का विद्रोह करते अब प्रताड़ना का प्रतिकार करते मुँह तोड़ जवाब देकर खुद को रक्षती आगे बढ़ रही है। त्याग की मूर्ति बनकर रीढ़ को नहीं छिलवाती आज की नारी प्रेक्टिकली हर चीज़ को समझना सीख गई है। हर बड़ी कंपनी में सीईओ पद तक पहुँच कर हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही है। अब पतियों द्वारा दी जाने वाली तलाक की धमकी से घबराती नहीं, बल्कि परेशान करने वालों को खुद लात मारते आगे बढ़ जाती है। पितृसत्तात्मक की पाबंद नहीं रही, अब लडकियां लीक से हटकर खुद हर निर्णय लेते अपने जीवन का निर्माण करती है।
ना पति से तलाक होने पर दु:खी होते आँसू बहाती है, ना विधवा होने पर कुंठा होते रिवाजों से लिपटे रहती है। ज़िंदगी को आसान बनाते अपने सुख को ढूँढ लेती है। विषम परिस्थितियों में सही राह चुनना सीख गई है तो क्यूँ अब चुटकी सिंदूर के बदले किसी बादशाह की बनाई कैद में खुद को बंदी कर लें। खुद की रचाई सियासत की रानी बन गई है, तभी तो आज की महिलाएं मजबूती की मिसाल बनकर उपर उठ रही है।
(भावना ठाकर, बेंगुलूरु)#भावु