आम इंसान अक्सर संवेदनशील होते है, वह अपने पसंदीदा कलाकार, लेखक, रमतवीर या चाहे कोई भी प्रसिद्ध व्यक्ति के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े हुए होते है। खासकर फ़िल्म इंडस्ट्री और क्रिकेट जगत से जुड़ी हर कड़ी से आम इंसान का लगाव शिद्दत वाला दिखता है। कुछ समय पहले सुशांत सिंह राजपूत की मौत ने समाज के हर वर्ग को और समस्त फ़िल्म इन्डस्ट्री को झकझोर कर रख दिया था। हर कोई अंदाज़ा लगाते अपने तर्क लगा रहे थे स्यूसाइड या मर्डर? आज तक गुत्थि नहीं सुलझी, केस बंद भी हो गया और सब भूल भी गए। दुनिया में ऐसे असंख्य हादसे होते है पर अपने चहिते एक्टर या क्रिकेटर को लेकर लोग कितने भावुक होते है ये बात ये हीरो लोग जो भगवान बने बैठे है ये खुद नहीं समझते, नहीं जानते की उनकी छोटी से छोटी हरकत उनके चाहने वालों के दिमाग पर गहरी छाप छोड़ जाती है। इसीलिए अपनी साफ़ सुथरी छवि से लेकर परिवार का रहन-सहन और बच्चों के संस्कार तक ऐसे होने चाहिए कि आम इंसान के लिए मिसाल बन जाए।
पर जिनको समाज का एक वर्ग अपना आदर्श समझते है वो सितारे समाज के प्रति कितने गैरज़िम्मेदार होते है। अपने काम में मशरूफ रहते अपनी ज़िम्मेदारी से हाथ उपर कर लेते है। इनके लिए पैसा सबकुछ है, बच्चों को पैसे दे दिए बात ख़त्म।
हमारे देश में क्रिकेटर और हिरो लोगों को भगवान की तरह पूजने वालों की कमी नहीं, उनकी बात आते ही दोस्त दोस्त से लड़ जाता है। हिन्दु मुस्लिम आपस में भीड़ जाते है। ये कैसी सोच है लोगों की? क्या लगते है ये आपके, उनकी वजह से अपनों से रिश्ता खराब कर लेते हो।
आजकल की पीढ़ी के पास अपना रोल मोडल नहीं है। कोई देश भक्त, कोई शहीद, कोई लेखक या कोई नेता जिनकी संघर्षमय और शानदार ज़िंदगी से इन्स्पायर होते आगे बढ़ सके। तो बसफिल्मी हीरो या क्रिकेटरों को अपना आइडियल समझ लेते है। या तो फिर फेसबुक या इन्स्टा पर कोई कारनामा करता है तो वो महान बन जाता है। आज आर्यन खान की बेल को एक वर्ग में जश्न की तरह मनाया जा रहा है, पर लोग समझते नहीं ये जश्न नहीं संस्कार और संस्कृति की हार है। आर्यन को उसकी गलती का एहसास दिलाने की बजाय कहा जा रहा है की बच्चा है, ऐसा कौनसा गुनाह कर दिया, क्या ये बात दूसरे बच्चों को ऐसी हरकत करने के लिए उकसाने वाली साबित नहीं होगी? हर कोई नशा करने के लिए ललचाएगा की ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा चार दिन लाॅक अप में रहेंगे फिर बैल पर छूट जाएंगे। शाहरुख खान और गौरी को अपने बेटे को लाइन पर लाने के लिए थोड़ी सख़्ती बरतकर पनिसमेंट देनी चाहिए ताकि आगे जाकर गलत करने से पहले दो बार सोचे। बच्चों को इतनी समझ देनी चाहिए की पिता ने कमाई दौलत और इज्जत को संभाल बरकरार रखते उसे आगे ले जाना चाहिए, नांकि पैसों के मद में गलत काम करते परिवार पर बदनामी का धब्बा लगाना चाहिए।
पर हीरो या क्रिकेटर अपनी एशो आराम सभर ज़िंदगी में मस्त होते है। उनकी हाईफाई लाइफ़ और बेबाक बयानों का असर उनके चाहने वालों पर क्या पड़ेगा वो ये नहीं सोचते। लोग उन्हें भगवान की तरह पूजते है और उन्हें स्टार के बिरूद से नवाजकर सर आँखों पर बिठाते है। सिर्फ़ इसलिए कि उनके पास पैसा, ग्लैमर और सफ़लता की चकाचौंध है। सच तो ये है की इतना सब होने के बावजूद उनके जीवन में ना ठहराव है ना शांति है। एशो आराम या अवसाद के चलते वो या उनके बच्चें ड्रग जैसी नशीली और जानलेवा चीज़ों के आदी होते जा रहे है।
समाज के प्रति भी उनकी कुछ ज़िम्मेदारीयां होती है ये बात भूल जाते है। ये नहीं सोचते की उनकी हर छोटी बड़ी हरकत से लेकर उनका बोलना तक उनके चाहकों के मानस पर असर करता है। सफ़लता के साथ समझदारी और ज़िम्मेदारी भी जरूरी है। खुद को अगर समाज में आदर्श स्थापित करना है तो आचार-विचार और वर्तन में सहजता और शालीनता अनिवार्य है।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगुलूरु, कर्नाटक)