Wednesday, November 27, 2024
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यज्ञोपवीत संस्कार के अवसर पर बटुकों को नियम और सिद्धांत पर दी दीक्षा

हाथरस। सनातन के सत्य का प्रतीक यज्ञोपवीत (जनेऊ) के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान संपादित नहीं हो सकता। इसलिए सनातन में यह प्रतिष्ठित है कि यज्ञोपवीत रहित व्यक्ति किसी धार्मिक कार्य करने का अधिकारी नहीं है।यह उद्गार नगर विद्वान उपेंद्रनाथ चतुर्वेदी यज्ञोपवीत अनुष्ठान संपन्न कराने के दौरान व्यक्त किए। बरसाना और ब्रजद्वार में संपन्न हुए सामुहिक यज्ञोपवीत संस्कार के आयोजन अवसरों पर आचार्य उपेन्द्र नाथ जी महाराज ने जनेऊ (यज्ञोपवीत) के विषय में बारीकी से नियमों वरणन करते हुए यज्ञोपवीतिय संस्कृति के संबंध में मार्मिकता से बताया। इस अवसर पर बटुकों को यज्ञोपवीत प्रदान करते दीक्षा संस्कार कराया। साथही गायत्री पूजन के साथ वैदिक रीति के संबंध में मार्मिक वर्णन किया। वैदिक विधि द्वारा संपादित पूजन-अर्चन के साथ आचार्य उपेन्द्र नाथ  महाराज ने यज्ञोपवीत के नियम और आवश्यकता के विषय में बारीकी से यज्ञोपवीत संस्कार पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि यज्ञोपवीत रहित व्यक्ति किसी भी धार्मिक कार्य को करने का अधिकारी नहीं होता है। यज्ञोपवीत सनातन धर्म का प्रतीक और अति आवश्यक अंग है। इस अवसर बटुकों को यज्ञोपवीत धारण कराते हुए यज्ञोपवीत के नियम और इसके संस्कारों संग्रहित करने की दीक्षा भी चतुर्वेदी ने बटुकों को दी। दीक्षा ग्रहण करने के बाद गुरु और शिष्य परंपरा का एक अनुठा दृश्य दृष्टव्य हुआ। सभी बटुकों ने गुरु महाराज को गुरुदक्षिणा बतौर सामर्थ्यनुसार उपहार भेंट कर सतयुगी परंपरागत नीति अनुपालन किया। इस अवसर पर स्थानीय सनातनियों के अलाव पूरे भारत व देश-विदेश से भी पधारे सनातन प्रेमियों समागम दिखाई दिया।