पवन कुमार गुप्ताः रायबरेली। उत्तर प्रदेश नगर निकाय चुनाव का बिगुल बजने ही वाला था, परंतु सब कुछ धीमा पड़ गया और अब तो आरक्षण को लेकर नेताओं की चिंताएं बढ़ती ही जा रही हैं। साथ ही पुराना कार्यकाल भी समाप्त हो गया है और नेता कुर्सी पर बैठने के लिए उत्सुक हो रहे हैं। कुछ ऐसे भी नेता हैं जिनके संघर्ष का अब परिणाम आना बाकी है, इसलिए वह अधिक बेचौन हैं। नगर निकाय का कार्यकाल समाप्त होने के बाद नगर में अव्यवस्थाएं भी होने लगी हैं, गलियों में गंदगी की भरमार और गली, चौराहों पर बेवजह की तमाम प्रचार प्रसार की होर्डिंगे भरे पड़े हैं। रायबरेली जिले के पिछले निकाय चुनाव में महिलाओं की भागीदारी अधिक रही है और निर्वाचित भी हुईं थीं। परंतु अब निकाय चुनाव के आगाज की देरी में नेताओं की धड़कनें धीमी पड़ रही हैं। नेताओं की सारी तैयारियां अधूरी पड़ गई हैं, अब ऐसी स्थिति में नेता अपना राजनैतिक भविष्य कैसे आगे बढ़ाएंगे यह उनके लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है। नेताओं के इस चिंता की झलक इसलिए भी दिखाई पड़ती है कि जो नेता एवं दावेदार निकाय चुनाव को लेकर काफी उत्सुक दिखाई पड़ रहे थे और हर पहर मतदाताओं की आवश्यकता पूरी करने में लगे हुए थे वह अब उनसे धीरे-धीरे फासला भी बना रहें हैं। अखबार की सुर्खियों से भी पीछा छुड़ा रहे हैं, हालांकि प्रचार प्रसार की होर्डिंग गांव, गलियों और नगर के चौराहों पर जरूर टांग रखी है।
खैर, निकाय चुनाव की औपचारिक घोषणा अब तक भले ही न हुई हो लेकिन सभी राजनैतिक पार्टियों ने अपनी बिसात बिछानी शुरू कर दी है। स्थानीय नेता भी लगातार संघर्ष कर रहे हैं और जनसंपर्क भी। अब इंतजार सिर्फ बिगुल बजने का है।