Tuesday, April 22, 2025
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 30)

लेख/विचार

युवा पीढ़ी देश के नेशन बिल्डर्स

युवा पीढ़ी को शिक्षाए कौशलता विकास अस्त्र से सशक्त करना भारत के भविष्य को सशक्त करना है

शिक्षा की बेहतर गुणवत्ता के साथ युवाओं की क्षमता का विस्तार वैश्विक स्तर की उच्च शिक्षा के अनुरूप करना वर्तमान नए डिजिटल भारत की ज़रूरतः किशन भावनानी

गोंदियाः वैश्विक स्तरपर किसी भी देश की संपन्नता, सफलता, उच्चस्तरीय अर्थव्यवस्था और हर क्षेत्र में मज़बूत पकड़ रखने की नींव के पहियों में से एक सबसे मज़बूत और महत्वपूर्ण आधारस्तंभ शिक्षा व कौशलता विकास है। क्योंकि शिक्षा और कौशलता विकास सफलता, संपन्नता सहित सभी क्षेत्रों की एक ऐसी चाबी है। जिससे सफलता के द्वार खुलते हैं क्योंकि शिक्षा व कौशलता ग्रहण करने के बाद ही वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, अविष्कारक सहित नवोन्मेष, नवाचारों के प्रणेता बनने की और देश सेवा कर अपने देश के विकास करने का अवसर मिलता है।

Read More »

“आज भी बेटियाँ अनमनी क्यूँ”

स्त्री संसार रथ की धुरी और परिवार की नींव है कल्पना करके देखो बिना स्त्री के संसार की, रौनक और रोशनाई विहीन पूरी कायनात दिखेगी। फिर क्यूँ बेटीयाँ अनमनी होती है जब की स्त्री के बिना संसार ही अधूरा है। जब कुदरत ने संसार रथ के दो पहिये में एक पहिया स्त्री को निर्मित किया है तो ये भेदभाव क्यूँ ? बेटा-बेटी में सदियों से हो रहा फ़र्क कब मिटेगा।आज भी हर इंसान के भीतर एक चाह पल रही होती है कि एक बेटा तो चाहिए ही, पुरुष प्रधान समाज में अवधारणा बनी हुई है कि वंश बेटों से ही चलता है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह मानसिकता बिलकुल गलत है। वंश तो बेटियां चलाती है, और वे एक नहीं, बल्कि दो-दो परिवारों का वंश चलाती है।

Read More »

“सुरक्षित हो आराम से रहो”

हिजाब विवाद हाई कोर्ट के फैसले के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा की पीएम मोदी कहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं उन्हें आशीर्वाद दे रही हैं तो बीजेपी मुस्लिम लड़कियों से हिजाब पहनने का अधिकार क्यों छीन रही है? अधिकार छीनना क्या होता है? जब महिलाओं के साथ अठारहवीं सदियों वाला व्यवहार किया जाए, बेटियों को न पढ़ने-लिखने की आज़ादी, न कहीं बाहर जाने की या घूमने फिरने की आज़ादी, न मुँह दिखाने की आज़ादी, न काम करने की या आगे बढ़ने की आज़ादी न दी जाए इसे कहते है अधिकार छीनना। भारत में अल्पसंख्यक जितने सुखी और खुशहाल है उतने शायद कुछ इस्लामिक देशों में भी नहीं होंगे। भारत लोकतांत्रिक देश है यहाँ सबको अपने तौर तरीकों से जीने की पूरी आज़ादी है। पर स्कूल कालेजों के अपने कुछ नियम होते है उसे फ़ोलौ करना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी और कर्तव्य है। कितनी नफ़रत फैला रखी है इन धर्माधिकारीयों ने, भड़काऊँ भाषणों से देश को बांट रहे है।

Read More »

बच्चों पर चढ़ा फ़िल्मी गुब्बार कितना जायज़

आजकल लोगों के दिमाग पर पर फ़िल्मों का ख़ुमार छाया हुआ है। पुष्पा दि राइज़ के गानें बलम सामी और पुष्पा के स्टेप्स और स्टाइल की नकल करते लोग विडियो पर विडियो बनाए जा रहे है। इस गुब्बार ने छोटे बच्चों को भी नहीं बख़्शा है।
सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहाँ फ़ेमश होने के लिए हर कोई अपनी कला का, अपने हुनर का विडियो बनाकर अपलोड कर देता है। किस्मत चमकी तो कई लोग ज़ीरो से हीरो भी बन जाते है, जैसे “रानू मंडल” और “बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना” वाला लड़का। आजकल आलिया भट्ट की फ़िल्म गंगुबाई काठियावाड़ी की नकल करती एक छोटी बच्ची का विडियो खूब वायरल हो रहा है। मुँह में बीड़ी दबाए अश्लील डायलाॅग और कामुक अदाओं के साथ वह बच्ची अद्दल गंगुबाई की नकल उतारती है।
उसकी बॉडी लैंग्वेज देखिए, क्या इस उम्र में बच्ची को इस तरह कामुक दिखाना ठीक है? सैकड़ों अन्य बच्चे हैं जिनका इसी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
सरकार को उन बच्चों के पैरंट्स के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेना चाहिए, जो एक ऐसी फिल्म के प्रमोशन से पैसा कमाने के लिए नाबालिग बच्चों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं, जो एक मशहूर वेश्या और उसके दलाल की बायॉपिक है। बच्ची अकेली नहीं है सोशल मीडिया पर इन रील्स और डायलॉग्स पर बच्चों के वीडियोज़ की भरमार है।
कंगना राणावत से लेकर बहुत सारे लोगों ने अपनी राय देते टिप्पणी की है। नो डाउट बच्ची की ऐक्टिंग और स्टाइल सुपर्ब है, पर यहाँ हमें कंगना की बात का सपोर्ट करना चाहिए की इतनी कम उम्र में बच्चों से ये सब करवाना और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरना बच्चों के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। बच्चें इतनी सी उम्र में सेलिब्रिटी बनने के ख़्वाब देखने लगते है, जिनका असर उनकी निज़ी ज़िंदगी पर विपरीत पड़ सकता है। कौन बनेगा करोड़पति में बच्चों वाले एपिसोड में एक बच्चा अरुणोदय आया था, जो खुद को अमिताभ बच्चन के आगे प्रस्थापित करना चाहता था। वो भी माना की ऑवर स्मार्ट था, पर ऐसी चीज़ें बच्चों की मासूमियत और बचपना छीन लेती है। उस बच्चे की बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है की उसकी अपेक्षाएं कितनी ऊँची है।  उस बच्चे के भी कई सारे विडियोज़ वायरल हुए जिसमें उसके सपने छलक रहे थे, पर मासूमियत गायब थी। ईश्वर करें उस बच्चे के सारे सपने सच हो, पर मानों जो वह सोच रहा है ऐसा कोई प्लेटफॉर्म उसे नहीं मिला, तो उसके नाजुक मन पर क्या बितेगी। हर चीज़ की एक उम्र होती है, वक्त आने पर बच्चों की रुचि समझकर उस क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहिए जिसमें वो माहिर हो।
सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस बच्ची के वायरल वीडियो पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा की कमाठीपुरा के रेड लाइट एरिया में गंगूबाई काठियावाड़ी वेश्यालय की मैनेजर थीं। वीडियो में दिखने वाली बच्ची को बेशक इस बात की जानकारी नहीं होगी कि उसे क्या पेश करने के लिए कहा जा रहा है।
प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने एक अन्य ट्वीट में कहा की मैं फिल्मफेयर से आग्रह करती हूं कि आप बच्चों को जो दिखा रहे हैं और जिस तरह के दर्शकों को आप छोटे बच्चों का उपयोग करके आकर्षित कर रहे हो उसके प्रति थोड़ा संवेदनशील रहें। बच्चों के माता-पिता को ये बात समझनी चाहिए की बच्चों को किसी चीज़ का ऑवर डोज़ न दें, जिनके वो तलबगार बन जाए। पोप्यूलारिटी ऐसा नशा है की एक बार लत लग जाए तो छूटती नहीं। ऐसी चीज़ों से बच्चों को दूर रखना चाहिए। दुनिया में सीखने लायक और बहुत कुछ है, फ़िल्मी माहौल से दूर रखकर उस पर फोकस करवा कर बच्चों का जीवन संवारिए।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलोर, कर्नाटक)

 

 

Read More »

दाता भिखारी क्यों?

कहां रह गई हैं कमी? क्यों मतदाता ही सरकारों के सामने भिखारी बने हुए हैं।
क्या और कौन हैं हम?राजा महाराजा थे तब हम प्रजा थे,उनकी सभी बातें मानना,सख्त से सख्त कायदों को भी बिना आवाज किए मानना पड़ता था।बहुत सी कहानियां थी जब राजा महाराजा के प्रजालक्षी कामों का भी उल्लेख हैं और उनके द्वारा किये गये जुल्मों सितम का भी इतिहास के पन्नों में उल्लेख हैं।लेकिन आज हम स्वतंत्र हैं,लोकतंत्र में जी रहे हैं तब हम क्यों खरीदे और बेचे जाते हैं।एक बात आजकल बहुत प्रचलित हैं।कोई नेता एक गांव में गया और किसी अक्लमंद आदमी के घर पहुंचे ,बहुत ही चिकनी चुपड़ी बातें कर के उनको मत देने की बात कर १००० रूपिए दिए।उस सयाने आदमी ने कहा कि वह उन्हें जरूर मत देगा लेकिन उसे १००० रुपिए नहीं एक गधा चाहिए।नेताजी ने सोचा वह काफी मशहूर था गांव वालों के बीच में तो उसकी वजह से और भी मत मिल सकते थे।नेताजी ने अपने गुर्गों को १००० रुपए दिए दूडवाया और गधा लाने के लिए।कुछ देर बाद वे वापस आए और नेताजी से बोले कि गधा तो ५००० रूपियों का आता हैं न कि १००० रुपए का।अब उस सयाने बंदे ने नेताजी के सामने देख मूंछों में ही मुस्कुराया और बोला कि क्या मतदार गधे से भी गए गुजरे थे जो १००० रुपए में बिक जाएं ।
क्यों ये जो खुद दलबदल को अपना धर्म समझ ने वाले क्यों हमारी कीमत क्यों लगा लें? क्यों हमे बोले कि तुम इस धर्म के हो तो तुम्हे उस दल को मत देना होगा या तुम उस जाति वालों को के साथ मिल कर इस दल को जिताओगे।तुम्हारा एनालिसिस किया जाता हैं,राज्य के किस हिस्से में तुम्हारी संख्या ज्यादा हैं और तुम्हे पटाने के लिए कौनसे हथकंडे अपनाने हैं ये तय किया जाता हैं और वो भी कोई दफ्तर या मीटिंग में नहीं खुल्लेआम सोश्यल मीडिया में ,अनेक चर्चा प्रविणों के बीच में आपके सामने चर्चा भी होती हैं और छीछालेदर भी आपके सामने होती हैं।और वोही हम देख भी लेते हैं और सह भी लेते हैं। वहीं जूठे वचन , वादे पर एतबार भी कर लेते हैं।क्यों होता हैं ऐसा ,कहां से हम इतनी ताकत लाएं कि इन सब को हम समझें भी और इनका विरोध भी करें।ये तो सरेबाजार हम से ही हमारी कीमत लगाई जाती हैं जो कभी भी हमको मिलने वाली हैं ही नहीं।
कैसी हैं ये चुनाव प्रणाली जिस में मतदाताओं का चीर हरण होता हैं।एक मुर्गे या बकरे को कुर्बानी से पहले जांचा या देखा जाता हैं ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं।
तुम जाट हो ,तुम्हारे इस गांव में कितने घर ,घर में कितने सदस्य और कुल मिलाकर राज्य में तुम्हारी कितनी बस्ती उस हिसाब से तुम्हारी जात वालों को चुनावी टिकिट मिलेगा।तुम ब्राह्मण हो तो भी यही अनुपात रहेगा ।ऐसे ही धर्मनिरपेक्षता का खेल खेलने वाले ही धर्म धर्म का खेल खेल जायेंगे और फिर एकबार तुम को अपने ही देश,राज्य शहर,गांव और मोहल्लों में बांट जायेंगे।
गिनती तो तुम्हारी आर्थिक तरीके से भी होगी,तुम गरीब हो तो तुम्हे मत किसको देना हैं ये तुम्हारे मोहल्ले वाले छोटे से नेता तय करेगा जिसे कट मिला हैं तुम्हे छोटी से कोई भेंट रुपए,कंबल या दारु की बॉटल देने के लिए।पैसे वालें तो वैसे ही बड़े ठाठ से मतदान उन्हे करते हैं जिनकी वजह से उनके धंधे या काम में फायदा हुआ हो,चाहे वह दल देश के लिए हितकारी हो या न हो।और सब से ज्यादा वंछित हैं मध्यम वर्ग जो सिर्फ मतदाता की दुनियां का ४% ही हैं।उन्हे कम ही नापा तोला जाता हैं।क्योंकि वे दारु,कंबल आदि लेने के लिए शर्म करेंगे और उन्हों ने किसी भी सहाय दे सरकार ने कोई विशेष काम नहीं किया होता हैं।वहीं हैं जिसे नियम से आयकर देना पड़ता हैं।सब कुछ ही जिन्हे करना ही पड़ता हैं वह हैं मध्यम वर्ग।
अब समय आ गया हैं कि हम अपने मत के आयुध से अपनी लड़ाइयां लड़े और अपने हक की प्राप्ति करें।जो हमें विभाजित कर अपने राजकीय ध्येयों को हासिल कर अपनी दुकानें चलाते हैं उन्हे जवाब देने का।क्यों बीके या टूटे हम? जो भी धर्म हैं सबका अपना अपना उसीके सिद्धांतों पर चले,दूसरे के धर्म के प्रति मान रखें ,समभाव रखे,देश हित में सोचे तभी तो देश उन्नति करेगा।

जयश्री बिरमी

Read More »

 वोट के महत्व

 वोट में ऐइसन का बा

सत्ता परिवर्तन के ई अधिकार बा

पाँच साल में उ नजर ना अइले

चुनववा में वोट खातिर नेता रउवे द्वार बा

भैया लोग आपन वोट के किम्मत पहचानेके बा

काम पडेला त नेताजी ना मिलेनी

हर समय बिजी-बिजी रहेनी

पर काम होत कुछ ना दिखेला

खाली चुनववा में वोट के महत्व पता चलेला

सत्ता परिवर्तन के ई अधिकार बा

माता-बहिन, चाचा-चाची, भैया-भाभी से इहे हमार एक अपील बा

वोट के सही उपयोग करेके बा

रजनीश कुमार अम्बेडकर

पी-एच.डी., रिसर्च स्कॉलर, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र)

Read More »

कामुकता ही कामयाबी का मापदंड

पहले के ज़माने में शादीशुदा स्त्री के कुछ दायरे और बहू के औधे की गरिमा हुआ करती थी। किसी खानदान की इज्जत और शाख होती है बहूएं। ससुराल वाले कितने भी मार्डन क्यूँ न हो, अपने घर की लक्ष्मी को पूरी दुनिया के सामने गैर मर्द के साथ हर सीमाएं पार करते कामुक हरकतें करते हुए कैसे देख सकते है। भले ही उनके प्रोफ़ेशन का हिस्सा हो। आज के आधुनिक ज़माने में कुछ लोगों को ऐसी बातें दकियानुसी और पुराने खयालात वाली लग सकती है। पर क्या हम खुद अपने घर की बहू बेटियों को ऐसी हालत में देख सकते है। कई हीरोइनों ने शादी के बाद क्षेत्र सन्यास ले लिया है। कहने का मतलब ये नहीं की शादी के बाद काम छोड़ दो, पर आप किसी के घर की मर्यादा हो इज्जत हो इस बात को याद रखकर एक सीमा तय करते काम करना चाहिए।

Read More »

विवाह की बढ़ती उम्र से जूझता युवा वर्ग, समाज की खामोशी पर सवालियाँ निशान !

आज हर वर्गों एक चिंताजनक दौर साफ़ नजर आ रहा है; अधिक उम्र तक युवक-युवतियों की शादी न होना। इसको लेकर आज सभी समाज काफी चिंताग्रस्त है। लड़के की उम्र 30 के पार जाने लगी है परन्तु शादी की बात करे तो इस उम्र तक उनकी शादी न होना एक सामाजिक समस्या बनकर उभर रही है। यह समस्या इतनी विकराल होती जा रही है कि लड़के एवं लड़कियों की उम्र 30-35 पार करने पर भी वे कुँवारे बैठे है; यही कारण है कि लड़के-लड़कियों में एक अवसाद की स्थिति उत्पन्न होती जा रही है। इसका एक मुख्य कारणों में तेजी से समाज में परम्पराओं का बदलता दौर शामिल है।

Read More »

ये आपकी पसंद है या परंपरा

स्कूल में हिजाब पहनकर आने की ज़िद्द सरासर गलत है, मुद्दा इतना बड़ा नहीं जितना खिंचा जा रहा है। आप कुछ भी पहनने के लिए आज़ाद हो। बुर्का, हिजाब, सलवार-कमीज, या फटी हुई जीन्स कहीं पर कुछ भी पहनिए किसीने कभी नहीं रोका, पर स्कूल का एक अनुशासन होता है, स्कूली बच्चो के लिए यूनिफॉर्म बहुत जरूरी है। सभी की यूनिफॉर्म एक जैसे होती है तो बच्चो के अंदर हीन भावना जन्म नहीं लेती। सभी बच्चे जब यूनिफॉर्म में होते है तो यह पता नहीं चलता है की कौन अमीर का बेटा है कौन गरीब का। कौन हिन्दु, कौन मुसलमान सब एक समान लगते है।

Read More »

लता जी के जीवन से सीख : भावी पीढ़ी के लिए

माँ शारदे की वृहद पुत्री स्वर कोकिला लता जी के जीवन का विश्लेषण हमें जीवन के बहुत सारे पक्षों पर सोचने और सीखने को प्रेरित करता है। वह लता जी जो सबके दिलों में चीर-स्थायी विराजमान रहेंगी। आइये हम उनके जीवन के कुछ पक्षों को उजागर कर उनसे सीखने का प्रयास करते है।
ज़िम्मेदारी उठाना सीखे:- लता जी के पिताजी ने अपने अंतिम समय में उन्हें घर की बागडोर दी थी। उस तेरह वर्ष की किशोरी ने छोटे-छोटे चार भाई-बहनों के पालन की ज़िम्मेदारी को सहज स्वीकार किया। जीवन पर्यंत अविवाहित रही और अपना पूरा जीवन उन चारों को समर्पित किया। आज उनके परिवार की जगह समाज के प्रतिष्ठित परिवारों में से एक है। यह भी उनकी सफलता का एक महत्वपूर्ण आयाम है।

Read More »