Thursday, November 28, 2024
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रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत

सोवियत संघ के समय मित्र रहे दो प्रान्त रूस और यूक्रेन के बीच जबर्दस्त जंग छिड़ी हुई है। जिसमें यूक्रेन को भारी क्षति उठानी पड़ रही हैद्य इस युद्ध का शिकार अब न केवल निर्दाेष और निहत्थे यूक्रेनी हो रहे हैं बल्कि वहाँ रहने वाले भारत सहित अन्य देशों के नागरिकों की भी जान जोखिम में पड़ी हुई है। रुसी हमले में एक भारतीय छात्र की हुई मृत्यु ने यूक्रेन में रह रहे अपने नागरिकों के प्रति भारत सरकार की चिन्ता बढ़ा दी है।
नवम्बर 2013 में यूक्रेन और रूस के बीच तनाव शुरू हुआ था। जिसका प्रमुख कारण रूस समर्थित यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच का कीव में विरोध होना था। अमेरिका-ब्रिटेन समर्थित प्रदर्शनकारियों के जबर्दस्त विरोध के कारण फरवरी 2014 में यानुकोविच को देश छोड़कर भागना पड़ा था। यह बात रूस को नागवार गुजरी और उसने दक्षिणी यूक्रेन के क्रीमिया शहर पर कब्ज़ा करके वहाँ के अलगाववादियों को समर्थन देना प्रारम्भ कर दिया। इन अलगाववादियों ने बाद में पूर्वी यूक्रेन के एक बड़े हिस्से पर कब्ज़ा करने में कामयाबी हासिल की। इसके बाद अलगाववादियों तथा यूक्रेनी सेना के बीच लगातार संघर्ष चलता रहा। इससे पूर्व सन 1991 में सोवियत संघ से यूक्रेन के अलग होने के बाद क्रीमिया को लेकर दोनों देशों में कई बार टकराव हुआ था। दोनों देशों के बीच तनाव कम करने के लिए 2014 के बाद पश्चिमी देश सक्रिय हुए और फ़्रांस तथा जर्मनी ने 2015 में बेलारूस की राजधानी मिन्स्क में रूस और यूक्रेन के बीच शान्ति एवं संघर्ष विराम का समझौता करवा दिया। अब नये विवाद की जड़ यूक्रेन का नाटो देशों से दोस्ती गांठना बताया जा रहा है। सन 1949 में तत्कालीन सोवियत संघ के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए ‘उत्तर अटलांटिक सन्धि संगठन’ अर्थात नाटो का गठन किया गया था। अमेरिका और ब्रिटेन समेत दुनियाँ के 30 देश नाटो के सदस्य हैं। यदि कोई देश किसी अन्य देश पर हमला करता है तो नाटो के सदस्य देश एकजुट होकर उसका मुकाबला करते हैं। रूस प्रारम्भ से ही नाटो के विस्तार का विरोधी रहा है। इसे लेकर राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन यूक्रेन तथा पश्चिमी देशों का कई बार विरोध कर चुके हैं। लेकिन यूक्रेन तथा नाटो देश उनके विरोध को लगातार नजरअंदाज कर रहे थे। अतः रूस ने अमेरिका तथा अन्य देशों की पाबन्दियों की चिन्ता किये बगैर यूक्रेन पर हमला कर दिया। यूक्रेन को आशा थी कि नाटो देश प्रत्यक्ष रूप से उसकी सहायता करेंगे परन्तु अभी तक किसी भी नाटो सदस्य ने जंग में कूदने का ऐलान नहीं किया है। लेकिन परोक्ष रूप से यूक्रेन को इन देशों की मदद मिल रही है। वहीं रूस हर परिस्थिति से निबटने के लिए तैयार है। यदि उसे न रोका गया तो यूक्रेन का अस्तित्व संकट में पड़ना तय है। आक्रमण से पूर्व राष्ट्रपति पुतिन पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में रुस समर्थित विद्रोहियों के कब्जे वाले डोनेट्स्क तथा लुहान्सकी शहर को अलग देश की मान्यता प्रदान कर चुके हैं। इस युद्ध को लेकर जहाँ तक भारत का सवाल है तो भारत बहुत ही सधी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहा है। पूरे हालात पर नजर गड़ाये भारत ने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की है। भारत-रूस के दोस्ताना सम्बन्ध जग जाहिर हैं। लेकिन बीते दो दशक से अमेरिका समेत नाटो के अन्य सदस्य देशों से भी भारत के मधुर सम्बन्ध बन रहे हैं। लेकिन यूक्रेन की पकिस्तान तथा चीन से बढ़ती नजदीकियां भारत की नयी चिन्ता बनकर उभरी है। पिछले एक दशक से यूक्रेन में पाकिस्तानी राजदूत के रूप में सेना के एक पूर्व अधिकारी को तैनात किया गया है। जिसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान-यूक्रेन रक्षा सम्बन्ध सुदृढ़ करना माना जा रहा है। यूक्रेन ने ही पाकिस्तान को टी-80डी टैंक सप्लाई किये थेद्य जिसके जवाब में भारत को रूस से टी-90 टैंक का सौदा करना पड़ा। 2020 में पाकिस्तान के आईआई-78 एयर-टू-एयर रिफ्यूलिंग एयरक्राफ्ट की रिपेयरिंग का ठेका भी यूक्रेन को ही मिला था। पाकिस्तान ने वर्ष 2018 में रूस से 300 टी-90 टैंक खरीदने का जबर्दस्त प्रयास किया परन्तु रूस ने साफ इंकार कर दिया था। जिसके मूल में भारत-रूस के मधुर सम्बन्ध ही थे। भारत को डिफेंस हार्डवेयर सप्लाई करने में भी रूस की अहम् भूमिका रही है। पाकिस्तान जब रूस से हथियार नहीं खरीद सका तब उसने यूक्रेन का रूख किया और यूक्रेन ने भारत की चिन्ता किये बगैर पाकिस्तान के वीपन ऑर्डर को हांथों-हाँथ लिया। उधर चीन और यूक्रेन के आर्थिक सम्बन्ध भी मजबूत हुए हैं। यूक्रेन की पाकिस्तान तथा चीन से बढ़ती नजदीकियां भारत के लिए एक बड़ी चिन्ता जरुर हैं। लेकिन इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि भारत यूक्रेन की बर्बादी का समर्थक है। 20 हजार से भी अधिक भारतीय छात्र-छात्राएं यूक्रेन के विभिन्न हिस्सों में रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। उनकी सुरक्षा भारत की प्राथमिकता है। संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टी.एस. तिरुमूर्ति पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि ‘हम सैन्य तनाव का जोखिम नहीं उठा सकतेद्य यूक्रेन के लोगों की सुरक्षा के दृष्टिगत सभी पक्षों को संयम बरतना चाहिए। भारत दोनों पक्षों को कूटनीतिक प्रयास तेज करने पर जोर देता है।’ रूस ने भारत के इस स्वतन्त्र रूख का स्वागत किया है। रूस के डिप्टी चीफ ऑफ़ मिशन रोमन बाबुश्किन ने अपने बयान में कहा कि ‘हम यूएन सिक्युरिटी काउंसिल में भारत के स्वतन्त्र रूख का स्वागत करते हैं। भारत की गतिविधियाँ हमारे खास और विशेषाधिकार प्राप्त रणनीतिक साझेदारी के गुण जाहिर करती हैं।’ संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस की कड़ी निन्दा करने वाले प्रस्ताव पर मतदान में भाग न लेकर भारत ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।
गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर यूक्रेन की सम्प्रभुता, स्वतन्त्रता, एकता और क्षेत्रीय अखण्डता के लिए प्रतिबद्धता की पुष्टि करने के लिए सदस्य देशों के बीच मतदान कराया था। जिसमें 141 सदस्यों ने प्रस्ताव के पक्ष में तथा पांच ने विरोध में मतदान कियाद्य जबकि भारत सहित 35 देशों ने मतदान में भाग नहीं लियाद्य भारत की सबसे बड़ी चिन्ता यूक्रेन में फंसे भारतीयों को लेकर है। युद्ध शुरू होने के बाद भारतीयों को यूक्रेन के पड़ोसी देश रोमानिया तथा हंगरी के रास्ते विमान द्वारा भारत लाया जा रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से बात करके भारतीय छात्रों की सुरक्षा का मुद्दा उठाया है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार रुसी राष्ट्रपति ने प्रधानमन्त्री को आश्वासन दिया है कि रूसी सेना वह सब कर रही है जिससे भारतीय नागरिकों को युद्धभूमि से सुरक्षित निकाला जा सके। रूस ने एक बयान जारी कर यूक्रेन पर आरोप लगाया है कि भारतीय छात्रों को यूक्रेन के सुरक्षा बलों ने अगवा कर लिया है और उनका प्रयोग ह्यूमन शील्ड अर्थात मानव ढाल के रूप में कर रहे हैं तथा यूक्रेन की सेना भारतीय छात्रों को बाहर जाने से रोक रही है। जबकि भारत सरकार का कथन है कि यूक्रेन भरतीयों को सुरक्षित निकालने में पूरी मदद कर रहा है। रूस द्वारा यूक्रेन पर लगाये गये उपरोक्त आरोप के पीछे रूस की मंशा भारतीय छात्रों के मुद्दे को राजनीतिक तौर पर इस्तेमाल करने की बतायी जा रही है। हालाकि खबर मिली है कि बार्डर पर भीड़ नियन्त्रित करने के बहाने यूक्रेनी सैनिकों द्वारा भारतीयों तथा अन्य विदेशी नागरिकों के साथ मारपीट की जाती है।
रुस और यूक्रेन के बीच जैसे-जैसे युद्ध तेज हो रहा है वैसे-वैसे यूक्रेन के हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बर्बादी, भूख, बेहाली और रोते बिलखते लोगों के मार्मिक दृश्य यूक्रेन के शहरों में चारो तरफ दिखाई दे रहे हैं। यूक्रेन में बसे न केवल विदेशी बल्कि स्थानीय नागरिक भी देश छोड़कर पड़ोसी देशों में शरण ले रहे हैं। रेलवे स्टेशनों पर भारी भीड़ जमा है। आलम यह है कि ट्रेनों में लोगों को जगह नहीं मिल रही हैद्य इसलिए तमाम लोग तीस-तीस किलोमीटर दूर से पैदल ही बार्डर की तरफ भाग रहे हैं। खाने-पीने की चीजों की बराबर कमी हो रही है। -04 से पांच डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच भूखे-प्यासे लोगों को यूक्रेन से बाहर जाने के लिए औपचारिकताओं की पूर्ति हेतु बार्डर पर नौ से दस किलोमीटर लम्बी लाइन में खड़े होकर घण्टों इन्तजार करना पड़ रहा हैं।

डॉ. दीपकुमार शुक्ल
(स्वतन्त्र टिप्पणीकार)

युद्ध किसी भी समस्या का समाधान नहीं है। अन्ततोगत्वा बातचीत की मेज पर ही हल निकलता है। लेकिन तब तक अनगिनत परिवार तबाह हो चुके होते हैं। जिसकी भरपाई बाद में किसी भी तरह नहीं हो पातीद्य अतः भारत समेत दुनियाँ के सभी देशों को यूक्रेन-रूस वार रोकने के प्रयास तेज करने चाहिए। रूस को भी चाहिए कि वह यूक्रेन के आमजन की सुरक्षा के दृष्टिगत बड़प्पन दिखाते हुए युद्ध विराम की घोषणा करे।