Thursday, May 2, 2024
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लेख/विचार

मोदी विरोध के साथ अच्छा शोध भी तो जरुरी है।

“विपक्षी दलों को भी एक महागठबंधन बनाकर कोरोना के विरुद्ध युद्ध का बिगुल फूंकना चाहिए ताकि उनकी देश भक्ति रंग लाये। राज्य  सरकारों को कुछ अलग करके दिखाना चाहिए ताकि बाकी राज्य उनको रोल मॉडल बना सके। आलोचना के साथ कुछ सकारात्मक भी तो कीजिये, मोदी विरोध के साथ अच्छा शोध भी तो जरुरी है” 

पिछले कई दिनों से मैं देख रहा हूँ कि कोरोना को लेकर बहुत से लोग मोदी की आलोचना के लिए कमर कस चुके हैं। अगर यही लोग आगे आकर देश हित में कुछ सकारात्मक कार्य कर सकते है अगर वो भी नहीं होता तो चुप तो बैठ ही सकते है। आखिर उनको मोदी के खिलाफ बोलने से मिलता क्या है। लोकतंत्र में विरोध की भी एक सीमा होती है और कोई उसको केवल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करें तो वह भी एक देश द्रोह ही है।क्या मोदी की जगह कोई और प्रधानमंत्री होता तो कोरोना चुटकी भर में खत्म हो जाता, ऐसा नहीं है और न ही ऐसा हो सकता, देखने में आया कि जो ग्राउइंड लेवल पर कुछ करते नहीं है वो इस बात का ठेका उठा चुके है कि मोदी का विरोध किया जाये। उन्होंने ये मान लिया कि मोदी जी ही कोरोना को बुलावा भेजते है। भारत के हर एक नागरिक का परम कर्तव्य है कि जब देश पर विपदा आये तो हम सब मिलकर उसके खिलाफ लड़े। केंद्र सरकारों का अपना.अपना कर्तव्य बनता है कि वो केंद्र पर बोझ बनने से पहले ही आने वाली आपदा से निपटने कि तैयारी रखे।

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आलम यही रहा तो निश्चित तौर पर खतरे की घंटी बजनी है

देश में कोरोना काल में जो तबाही मची है उसके चलते आरएसएस व राजनीतिक सत्ता संभालने वाली उसकी बेटी के रूप में पहचानी जाने वाली भारतीय जनता पार्टी को अब यह समझे का समय आ गया है कि लोगों का धु्रवीकरण करके सत्ता हथियाना एक बात है और सत्तारूढ़ होने पर देश को चलाना दूसरी।
लेकिन दूर्भाग्य है कि महामारी के इस भयानक दौर में भी आरएसएस व भाजपा ने अपनी नीति और नियत में बदलाव नही किया है। वे आज भी लोगों को धर्म की अफीम देकर नशे में चुर रखना चाहते है। जो लोग नशे के आदी नही है उनके बीच हिंदू-मुस्लिम का जहर घोल कर उन्हें मार देना चाहते है।
मतलब साफ है कि ये अब भी समझने को तैयार नही है। सत्ता हासिल करने के बाद भी संगठन की खोखली बातों पर ही अमल कर रहे है जबकि भाजपा अब सत्ता में है। संगठन और सत्ता में जमीन आसमान का अंदर है। संगठन की रीति नीति उसकी कार्यप्रणाली सत्ता को हासिल करने की होती है और सत्ता का काम लोगों के दुख -दर्द को समझ कर उससे निजात दिलाने का होता है।
पर सच तो यही है कि भाजपा में जो लोग सत्ता का मजा चख रहे है वे जनता को सुख देने के बजाय तकलीफ में ड़ालने का काम कर रहे है। इस बात की तस्दीक करने के लिए हमें वजीरे आजम नरेन्द्र मोदी के कुछ फैसलों की तरफ नजरें इनायत करना चाहिए।
मोदी सरकार व भाजपा की यह वे चंद नीतियां है जो महामारी से ध्यान हटवाकर उसे हिंदू- मुस्लिम का जामा पहनाने की कोशिश की जा रही है। मोदी सरकार के हाल के फैसले भी इस बात को सच साबित करते है कि वे बीमारी पर ज्यादा ध्यान देने की बजाय महामारी का सांप्रदायिकरण कर खतरनाक रूप देना चाहते है ताकि अपनी नाकामयाबियों को छूपा सके।

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न्यायपालिका की विश्वसनीयता बहाली कर सकेंगे जस्टिस रमन?

पिछले दिनों जस्टिस नुतालपति वेंकट रमना एनवी रमना ने भारत के 48वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में महत्वपूर्ण कार्यभार संभाला था।
वह इस पद पर 26 अगस्त 2022 तक रहेंगे। अल्पभाषी और सौम्य स्वभाव वाले चीफ जस्टिस रमना ने ऐसे समय सुप्रीम कोर्ट की कमान संभाली। जिस समय देश में कोरोना की दूसरी लहर सुनामी बनकर उभरी और ऑक्सीजन की कमी के कारण पूरे देश में हाहाकार मचा दिखाई दिया। कोरोना के इस संकट काल में जस्टिस रमना की अगुवाई में सुप्रीम अदालत ने जिस प्रकार ऑक्सीजन संकट पर बड़ा कदम उठाते हुए ऑक्सीजन की कमी दूर करने के लिए टास्क फोर्स का गठन किया।

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पति-पत्नी में तालमेल जरूरी

पति-पत्नी का रिश्ता हर रिश्ते से उपर होता है, संसार रथ को बखूबी चलाने के लिए आपसी समझ और तालमेल बहुत जरूरी होता है। पति-पत्नी के रिश्ते को ताउम्र जवाँ बनाए रखने के लिए प्यार, परवाह, सौहार्द भाव और समय का खाद देना पड़ता है। पति-पत्नी के रिश्ते में सबसे पहली मांग संवाद का सेतु है, अपनों के दिल तक पहुँचने का सीधा रास्ता है हर मुद्दे पर चर्चा और साथ में थोड़ा रोमांटिक संवाद रिश्ते में उर्जा बनाए रखता है। मौन रिश्ते जल्दी दम तोड़ जाते है। तो दिन भर चाहे कितने भी व्यस्त रहें चंद पल चुराकर पति पत्नी एक दूसरे से बतिया लीजिए रिश्तों में नमी बनी रहेगी।

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पहले अपनी जेब टटोलिए

देश में बहुत सारे मुद्दों में एक मुद्दा बढ़ती हुई आबादी भी अहम मुद्दा है। ऐसे में कई लोग बिना सोचेए बिना अपने बैंक बेलेंस की परवाह किए और बिना ये सोचे कि परिवार वहन कैसे होगा चार पाँच बच्चों की लाइन लगा लेते है। फिर भले चाहे बच्चें फटेहाल हालत में कुपोषण का शिकार होते पल रहे हो। परिवार नियोजन में सबसे पहला मुद्दा हर दंपत्ति का आर्थिक स्थिति को लेकर होता है। बच्चे पैदा करना बड़ी बात नहींए आप बच्चों को किस तरह की परवरिश देना चाहते हो ये बात बहुत मायने रखती है। सोचो घर में आप एक ही कमाने वाले है और तीन चार बच्चें पैदा कर लेते है तो न तो आप खर्चे झेल पाओगे न बच्चें ठीक से पले बढ़ेंगे।

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नई पीढ़ी के लिए माँ बाप बोझ क्यूँ

कुछ घरों में माँ बाप के हालात देखकर आँखें भर आती है। नये ज़माने के बच्चों की दुनिया में क्यूँ समा नहीं सकते माँ-बाप जब ये बच्चें बड़े हो जाते है। क्यूँ वो बच्चें इतने ज़्यादा समझदार हो जाते है जब माँ-बाप बूढ़े हो जाते है। माँ-बाप दो मिलकर दो तीन बच्चों को लाड़ से पालते है पर दो तीन बच्चें मिलकर माँ बाप को ढंग से रख नहीं सकते।
माना की एक पीढ़ी का अंतर हो जाता है माँ बाप और बच्चों की सोच के बीच। पर जिनको अपने पैरों पर चलना सिखाया वही बच्चें बोलते है की आपको कुछ पता नहीं, आप नहीं समझेंगे या आपको कुछ आता नहीं ये कहाँ के संस्कार है।

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भारत में बच्चों को कोविड-19 टीकाकरण – ट्रायल को मंजूरी मिली

बच्चे भारत का भविष्य – कोविड -19 से बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा युवाओं की जवाबदारी – एड किशन भावनानी
वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी ने पिछले वर्ष से लेकर तबाही मचाना चालू है। हालांकि वर्ष 2020 के अंत तक थोड़ी राहत मिली थी, परंतु अभी नए वर्ष 2021 की शुरुआत से ही और अभी फरवरी अंत से तो इस महामारी ने उग्र रूप धारण कर अपना रौद्र रूप दिखाया है और विश्व में सबसे अधिक विपरीत असर भारत पर पड़ा है। भारत में इसकी दूसरी लहर अपने पीक पर है। मेडिकल संसाधन अपेक्षाकृत कम पड़ गए और वैश्विक मदद से बड़े स्तर पर सहायता प्राप्त हो रही है।…बात अगर हम भारत में रणनीतिक, चरणबद्ध तरीके से टीकाकरण अभियान की करें तो बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से इसे अंजाम दिया जा रहा है।

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अकती खेलन कैसें जाऊँ री…..

बुन्देलखण्ड में दूर.दराज गांवों में अखती अपने ही ढंग से मनाई जाती है। अब से 45 वर्ष पूर्व के वो दिन मुझे याद हैं जब मेरे जन्म स्थान खुटगुवां ग्राम उ.प्र. में अलग ही तरह से अक्षय तृतीया मनाई जाती थी। इसे खेल और पूजा दोनों तरह से मनाते थे। वहां इसे अकती कहते हैं। यह तो मुझे बाद में ज्ञात हुआ कि अक्षय तृतीया का ही अपभ्रंस अकती है। अकती. अखती. आखाती. अक्षय तीज. अक्षय तृतीया। यहां यह मुख्यता से महिलाओं का त्योहार बन गया है। विशेषतः कुँवारी कन्याएँ इसमें भाग लेती हैं। वैशाख शुक्ल तृतीया के दिन घर में मिट्टी के छोटे छोटे कलश, एक बड़ा कलश, भींगी हुई चने की दाल आदि रखकर पूजा करतीं। दूसरे दिन रात्रि को ग्राम के बाहर जाकर लगभग एक घंटे तक बरगद के पेड़ की पूजा करने के बाद पुतरा.पुतरिया (गुड्डा.गुड्डी) द्ध का ब्याह रचाया जाता। जिसमें विवाह की सभी रश्में की जाती। लड़कियाँ पूजा से लौटते समय रास्ते में मिलने वाले लोगों को सौन भेंट करती आती हैं। वे झुंड बनाकर घर.घर जाकर शगुन गीत गाती हैं और सोन बांटतीं है।

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कोरोना महामारी की गांवों में तीव्रता से दस्तक

– संक्रमण फैलने से रोकने महायुद्ध स्तर पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना जरूरी
– भारत गांव प्रधान देश है गांव में कोविड-19 इलाज का सुचारू प्रबंधन, झोलाछाप चिकित्सकों पर सख्त कार्यवाही, टीकाकरण, जनजागरण अभियान जरूरी – एड किशन भावनानी
वैश्विक रूप से मानव को तीव्रता से संक्रमित कर रही कोरोना महामारी के अब सिम्टम्स पर भी नियंत्रण नहीं रहा।बड़ी तेजी से सिम्टम्स का बदलना, वैश्विक रूप से बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। 2020 में जिसके कुछ सीमित सिम्टम्स से लेकिन अब 2021 में इस महामारी ने भयंकर तांडव मचाते हुए अपने सिम्टम्स में विशालता लाकर विस्तृत परिक्षेत्र में समायोजित कर मानव को घेर रही है जिसमें मानव उसको पता ही नहीं चल पाता और उसके फेफड़े संक्रमित हो चुके होते हैं।….बात अगर हम भारत की करें तो यह एक गांव प्रधान देश है हमारी करीब 70 प्रतिशत जनसंख्या गांवों में रहती है।

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मरीज़ों से नर्स का सौहार्दपूर्ण नाता

हर साल12 मई को हम वर्ल्ड नर्स डे मनाते है ममता का दूसरा नाम है नर्स क्यूँकि ‘स्पर्श, प्यार और परवाह दवाई का दूजा नाम जब पिलाए परिचारिका अपने हाथों से दवाई या काढ़ा मरीज़ के हर दर्द भागे छुड़ाकर तन से नाता ईश्वर ने स्त्री के भीतर ममता और संवेदना का स्त्रोत कूट.कूट कर भर दिया है। तभी तो परिवार हो या पेशन्ट सबके प्रति सौहार्द भाव से अपना कर्तव्य निभाते जादूई स्पर्श की परत लगाते दर्द से निजात दिलाने में एक नर्स का काम कर रही स्त्री माहिर होती है। इस महामारी में अपने स्वास्थ्य की और परिवार की परवाह न करते मरीज़ों की सेवा में दिन रात अपना योगदान दे रही हर परिचारिकाओं को सौ सलाम। कई जगह पर बिना वेतन के भी सरकारी अस्पताल में सेवाएं दे रही कुछ नर्स,कोरोना मरीज़ो का मुफ्त में इलाज कर निभा रहीं हैं।

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