Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस: महिला सुरक्षा को लेकर कितने गंभीर हैं हम ?

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतारेस ने वर्तमान सदी को महिलाओं के लिए समानता सुनिश्चित करने वाली सदी बनाने का आग्रह किया था। उनका कहना था कि न्याय, समानता तथा मानवाधिकारों के लिए लड़ाई तब तक अधूरी है, जब तक महिलाओं के साथ लैंगिक भेदभाव जारी है। महिलाओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित करने और उनके अधिकारों पर चर्चा करने के लिए प्रतिवर्ष आठ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम कोरोना काल में सेवाएं देने वाली महिलाओं और लड़कियों के योगदान को रेखांकित करने के लिए ‘महिला नेतृत्वरू कोविड-19 की दुनिया में एक समान भविष्य को प्राप्त करना’ रखी गई है। हर साल पूरे उत्साह से दुनियाभर में यह दिवस मनाया जाता है, इस अवसर पर बड़े-बड़े सेमिनार, गोष्ठियां, कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं लेकिन 46 वर्षों से महिला दिवस प्रतिवर्ष मनाते रहने के बावजूद पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति में वो सुधार नहीं आया है, जिसकी अपेक्षा की गई थी। समूची दुनिया में भले ही महिला प्रगति के लिए बड़े-बड़े दावे किए जाते हैें पर वास्तविकता यही है कि ऐसे लाख दावों के बावजूद उनके साथ अत्याचार के मामलों में कमी नहीं आ रही और उनकी स्थिति में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है।

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घोटालों के बादल और चुनावी हिंसा

पश्चिम बंगाल में चुनावों की औपचारिक घोषणा के साथ ही राजनैतिक पारा भी उफान पर पहुँच गया है। देखा जाए तो चुनाव किसी भी लोकतंत्र की आत्मा होते हैं सैद्धांतिक रूप से तो चुनावों को लोकतंत्र का महापर्व कहा जाता है।और निष्पक्ष चुनाव लोकतंत्र की नींव को मजबूती प्रदान करते हैं।
लेकिन जब इन्हीं चुनावों के दौरान हिंसक घटनाएं सामने आती हैं जिनमें लोगों की जान तक दांव पर लग जाती हो तो प्रश्न केवल कानून व्यवस्था पर ही नहीं लगता बल्कि लोकतंत्र भी घायल होता है।
वैसे तो पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान हिंसा का इतिहास काफी पुराना है। नेशनल क्राइम रेकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात को तथ्यात्मक तरीके से प्रमाणित भी करते हैं। इनके अनुसार 2016 में बंगाल में राजनैतिक हिंसा की 91 घटनाएं हुईं जिसमें 206 लोग इसके शिकार हुए। इससे पहले 2015 में राजनैतिक हिंसा की 131 घटनाएं दर्ज की गई जिनके शिकार 184 लोग हुए थे। वहीं गृहमंत्रालय के ताजा आंकड़ों की बात करें तो 2017 में बंगाल में 509 राजनैतिक हिंसा की घटनाएं हुईं थीं और 2018 में यह आंकड़ा 1035 तक पहुंच गया था।
इससे पहले 1997 में वामदल की सरकार के गृहमंत्री बुद्धदेब भट्टाचार्य ने बाकायदा विधानसभा में यह जानकारी दी थी कि वर्ष 1977 से 1996 तक पश्चिम बंगाल में 28,000 लोग राजनैतिक हिंसा में मारे गए थे। निसंदेह यह आंकड़े पश्चिम बंगाल की राजनीति का कुत्सित चेहरा प्रस्तुत करते हैं।
पंचायत चुनाव से लेकर लोकसभा चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल का रक्तरंजित इतिहास उसकी ष्शोनार बंगलाष् की छवि जो कि रबिन्द्रनाथ टैगोर और बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय जैसी महान विभूतियों की देन है उसे भी धूमिल कर रहा है।

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विद्यार्थियों, अभिभावकों, शिक्षा क्षेत्र से जुड़े सह-पाठ्यचर्या की शिकायतों, विवादों के लिए अब स्वतंत्र आयोग बनाना जरूरी

भारत में शिक्षा क्षेत्र बहुत विस्तृत है। आधुनिक युग में तो बच्चों की प्ले नर्सरी ग्रुप से ही पढ़ाई शुरू हो जाती है। याने दो ढाई वर्ष की उम्र से ही बच्चों की कलम शिक्षा क्षेत्र जगत में चलना शुरू हो जाती है। जितनी बड़ी सिटी उतनी ही बड़ी सुविधाएं और शिक्षा शुल्क भी लगता है। पहले के जमानें में इतनी विस्तृतता और सुविधाएं नहीं थी। सिर्फ सरकारी शिक्षा संस्थाओं में ही शिक्षा ग्रहण की जाति थी। बदलते परिवेश में अब हजारों लाखों की संख्या में निजी शैक्षणिक संस्थाएं और कोचिंग क्लासेस इत्यादि शिक्षा सह पाठ्यचर्या यानी शिक्षा संस्था में स्विमिंग, स्क्रीनिंग, चित्रकला फोटोग्राफी, स्केटिंग इत्यादि बौद्धिक क्षमताओं का ज्ञान भी समान रूप से दिया जाता है और उनके शुल्क को अलग से वसूला जाता है। इसके अलावा निजी कोचिंग क्लासेस की भी बहुत सुविधाएं हो गई है अतः स्वाभाविक ही है कि जितनी विशाल सुविधाएं, सेवाएं होने से उतनी ही बड़ी शिकायतें और विवाद भी आना लाजमीं है, जिसका निपटारा अभी तक हर विद्यार्थी और अभिभावक जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच से लेकर राज्य और राष्ट्रीय विवाद निवारण मंच तक में जाकर करते आए हैं। परंतु अब जो यह राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग का आदेश आया है कि शैक्षणिक संस्थाएं, शिक्षा सह-पाठ्यचर्या या संबंधित गतिविधियां उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के दायरे में सेवा नहीं है। इस आदेश से सभी विद्यार्थियों व अभिभावकों का मायूस ओ जाना लाजिमी भी है, क्योंकि उनके पास अपनी शिकायतों और विवादों के निवारण के लिए अब सामान्य कोर्ट ही पर्याय है, जो जेएमएफसी कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक है अतः अब केंद्र, राज्य व केंद्रशासित प्रदेशों की सरकारों को अपने अपने स्तर पर शिक्षा, सह-पाठ्यचार्य के शिकायतों और विवाद के निपटारे के लिए एक अलग आयोग बनाना लाजमी हो गया है जिससे सभी विवाद व शिक्षा संबंधी शिकायतों का निपटारा उस आयोग में सके।…..इसी पर आधारित एक मामला माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग दिल्ली में मंगलवार दिनांक 2 फरवरी 2021 को माननीय सिंगल जज बेंच के सम्मुख आया जिसमें माननीय श्री विश्वनाथ (प्रेसिडेंट) मेंबर शामिल थे प्रथम अपील क्रमांक 852ध्2016 जो कि शिकायत क्रमांक 29ध्2006 में राज्य उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग उत्तर प्रदेश के आदेश दिनांक 3 जून 2016 से उत्पन्न हुआ था, शिकायतकर्ता बनाम स्कूल प्रशासन, शिक्षण संस्था।

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संविदात्मक कर्मचारी भी मातृत्व लाभ के लिए हकदार है – नियुक्ति बहाली के निर्देश-नियोक्ता पर 25 हज़ार जुर्माना

हर क्षेत्र के संविदात्मक कर्मचारियों के भविष्य की सुरक्षा व शासकीय लाभ के लिए शासकीय योजना जरूरी – एड किशन भावनानी
भारत में कुछ सालों से हर क्षेत्र में संविदात्मक कर्मचारी रखने का एक दौर सा चल पड़ा है, जिसमें शासकीय, अशासकीय, अर्धशासकीय, निजी क्षेत्र के लगभग हर कार्यस्थल पर हम अगर गहराई से देखेंगे, तो वहां कार्य करने वाले कई कर्मचारी सविंदात्मक कर्मचारी मिलेंगे जिसका एक चलन सा चल पड़ा है। हर क्षेत्र में परमानेंट जॉब के लिए संभावना कम नजर आती है, शायद संविदात्मक नियुक्तियों में नियोक्ताओं को दूरगामी लाभ होते हैं, क्योंकि वे कर्मचारी अधिनियमों, नियमों विनियमों, के झमेले से बच जाते हैं और अपनी सुविधाअनुसार कर्मचारियों की सेवाओं का कार्यकाल बढ़ाया जाता है और कर्मचारी पर भी शायद संविदात्मक कार्यकाल पूरा होने के बाद तलवार लटकी रहती है कि अब क्या होगा।

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किसानों को 60 साल की उम्र के बाद 3000 मासिक पेंशन देगी सरकार

प्रधानमंत्री ने किसानों के हित में कई योजनाएं चलाई है। इसी परिप्रेक्ष्य में प्रधानमंत्री किसान मानधन योजना है। जिसके तहत 60 साल की उम्र के बाद किसानों के लिए पेंशन का प्रावधान है। इस योजना में 18 साल से 40 साल तक की उम्र का कोई भी किसान लाभ ले सकता हैए। जिसे उम्र के हिसाब से मासिक अंशदान करने पर 60 वर्ष की उम्र के बाद 3000 रूपये मासिक या 36000 रूपये सालाना पेंशन मिलेगी। इसके लिए अंशदान 55 रूपये से 200 रूपये तक मासिक है। अब तक इस योजना से लाखों किसान जुड़ चुके हैं। इस पेंशन कोष का प्रबंधन भारतीय जीवन बीमा निगम स्प्ब् द्वारा किया जा रहा है। प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना के अन्तर्गत 18 से 40 वर्ष तक की आयु के छोटी जोत वाले लघु एवं सीमान्त किसान हिस्सा ले सकते हैं। जिनके पास 2 हेक्टेयर तक ही खेती की जमीन है। इस योजना के तहत कम से कम 20 साल और अधिकतम 40 साल तक 55 रूपये से 200 रूपये तक मासिक अंशदान करना होगाए जो उनकी उम्र पर निर्भर है। अगर 18 साल की उम्र में किसान जुड़ते हैं तो मासिक अंशदान 55 रूपये या सालाना 660 रूपये होगा। वहीं अगर 40 की उम्र में जुड़ते हैं, तो 200 रूपये महीना या 2400 रूपये सालाना योगदान करना होगा।

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पर्यावरण प्रदूषण से जूझता भारत

पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है -“परी + आवरण” जिसका अर्थ- ‘परी’ का है -‘चारों ओर’ तथा “आवरण” का अर्थ है- घेरा। यानी हमारे चारों ओर फैले वातावरण के आवरण (घेरे) को पर्यावरण कहते हैं।
वायु, जल, भूमि, वनस्पति, पेड़- पौधे, पशु मानव सब मिलकर पर्यावरण बनाते हैं।{1}
पर्यावरण के अंतर्गत स्थलमंडल, जलमंडल, वायुमंडल तथा जैव मंडल मिलकर पूर्ण रूप से पर्यावरण बना है। हम जिस जीव -जगत की बात करते हैं जिसके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है, वह पूर्ण रुप से प्रदूषित हो चुका है। पर्यावरण के बढ़ते प्रदूषण से भारत ही नहीं बल्कि पूरा विश्व ग्रसित है।चिंतित है।यह प्रदूषण कई प्रकार का है जैसे; वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, मृदा प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, ई कचरा प्रदूषण, प्लास्टिक प्रदूषण नाभिकीय प्रदूषण तथा मोबाइल टावर प्रदूषण इत्यादि वायु, जल, मृदा,ध्वनि यह ईश्वर के उपहार है जिसे आज का मानव से क्षत-विक्षत कर प्रदूषित कर रहा है। जिस कारण इन ईश्वरीय उपहारों के ह्रास से दोष निकलना सत्य है। पर्यावरण प्रदूषण के अनेक कारण है- औद्योगिक करण की गतिविधि, बढ़ते वाहन म, शहरीकरण, बढ़ती जनसंख्या, जीवाश्म ईंधन दहन,कृषि अपशिष्ट, प्लास्टिक प्रयोग, रेडियोधर्मी या परमाणु विकिरण,बढ़ते मोबाइल टावर आदि।

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कोचिंग सेंटर में पढ़कर भी छात्रा परीक्षा में फेल – शुल्क वापस करने का आदेश – उपभोक्ता न्यायालय का एतिहासिक फैसला

भारत के हर जिले में जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच – उपभोक्ता सेवा की कमी के लिए निर्भय हों शिकायत दर्ज कराएं – एड किशन भावनानी
भारत में अनेक ऐसी शासकीय कार्यपालिका, न्यायपालिकाओं की सुविधा प्राप्त है, जिनके बारे में नागरिकों को जानकारी नहीं है, अतः इस संबंध में जन जागरण अभियान चलाकर नागरिकों को जागरूक व सचेत करने और उसका लाभ उठाने के लिए जागृत करने की बहुत जरूरी आवश्यकता है। बात अगर हम उपभोक्ता न्यायालय की करें, तो भारत में हर जिले में एक जिला उपभोक्ता विवाद निवारण मंच बना हुआ है। किसी भी तरह का ग्राहक जो उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम (संशोधित) 2019 के अंतर्गत ग्राहक है और अधिनियम के तहत सेवा प्राप्त की है और जिसने सेवा दी है और वह सेवा की कमी के लिए उत्तरदाई है, तो ग्राहक को हिम्मत कर उपभोक्ता न्यायालय में जाना चाहिए, ताकि प्रतिकूल सेवा या सामान देने वाले दुकानदार या आपूर्तिकर्ता के खिलाफ कार्यवाही की जा सके और भविष्य में किसी के साथ ऐसा ना करें उसका उसको डर बना रहे।

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ग्लेशियर का टूटना और उससे होने वाली भयानक तबाही

उत्तराखंड के चमोली जिले में 7 फरवरी 2021 को कुदरत ने तांडव मचा दिया। सुबह 10:30 से 11:00 के करीब नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटा तो सारा मंजर भयानक तबाही में बदल गया। न बादल फटा, न बारिश हुई, हिमालय की चोटी पर अचानक हलचल हुई, ग्लेशियर दरका और सैलाब का समंदर फूट पड़ा। ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा नदी ने विकराल रूप धारण कर लिया और इस सैलाब के सामने डैम, मकान, इंसान जो भी आया वह बहता चला गया। पानी और मलबे के साथ मौत चुपके से पहाड़ से नीचे उतरी और कई मासूमों को अपने साथ बहा ले गई। कुदरत के इस कहर से पूरा उत्तराखंड थर्रा उठा। वर्ष 2013 की केदारनाथ महाप्रलय की तस्वीर फिर से आंखों में तैर गई।

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राह दिखाएं भी क्यों

गम ए फुर्क़त उन्हें हम सुनाएं भी क्यों
दीदा -ए-तर सबको अपने दिखाएं भी क्यों
दिल जिनका बेखुशबू सा है गुलज़मी
रायगां ऐसी जगहों पर जाएं भी क्यों
तमाम खुशियां हैं जो करती हैं रौशन ये दिल
तेरे बेरूख़ी के अज़ाबों से दिल डराएं भी क्यों
जमाना निहायत नेक दिल को भी बख्सता नहीं
खुद को जमाने की बातों में हम उलझाएं भी क्यों
है काफ़ी मेरी मासुमियत तुझे जलाने के लिए
बेवजह मेरे अदू तुझसे टकराएं भी क्यों
जिन्हें नफरत के जंगल में है भटकना मंजूर
प्यार के चराग़ से उनको हम राह दिखाएं भी क्यों
फुर्कत-जुदाई, दूरी
दिदाए तर -आसुओं से भीगी आंखें रायगां- फ़िज़ूल में अदू- दुश्मन
बीना राय, गाजीपुर, उत्तर प्रदेश

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क्या किसान आंदोलन अपनी प्रासंगिकता खो रहा है

आज सोशल मीडिया हर आमोखास के लिए केवल अपनी बात मजबूती के साथ रखने का एक शक्तिशाली माध्यम मात्र नहीं रह गया है बल्कि यह एक शक्तिशाली हथियार का रूप भी ले चुका है। देश में चलने वाला किसान आंदोलन इस बात का सशक्त प्रमाण है। दरअसल सिंघु बॉर्डर और गाजीपुर बॉर्डर पर पिछले दो माह से भी अधिक समय से चल रहा किसान आंदोलन भले ही 26 जनवरी के बाद से दिल्ली की सीमाओं में प्रवेश नहीं कर पा रहा हो लेकिन ट्विटर पर अपने प्रवेश के साथ ही उसने अंतरराष्ट्रीय सीमाओं को पार कर लिया। वैसे होना तो यह चाहिए था कि बीतते समय और इस आंदोलन को लगातार बढ़ते हुए अंतरराष्ट्रीय मंचो की उपलब्धता के साथ आंदोलनरत किसानों के प्रति देश भर में सहानुभूति की लहर उठती और देश का आम जन सरकार के खिलाफ खड़ा हो जाता।

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