प्राचीन शिक्षा पद्धति में आधुनिक युग की भाँति परीक्षा लेने तथा उपाधि प्रदान करने की प्रथा का अभाव था। विद्यार्थी गुरु के सीधे संपर्क में रहते थे। जब वे एक पाठ याद कर लेते तथा गुरु उससे संतुष्ट हो जाता तब उन्हें दूसरा पाठ याद करने को दिया जाता था। अध्ययन की समाप्ति पर समावर्त्तन नामक संस्कार आयोजित होता था तथा उसके बाद छात्र एक विद्वत्मंडली के सामने प्रस्तुत किया जाता था। वहाँ उससे उसके अध्ययन से संबंधित कुछ गूढ प्रश्न पूछे जाते थे। उसके अनुसार वह स्नातक बन जाता था। यहाँ उल्लेखनीय है, कि विद्वानों की सभा छात्र की योग्यता के विषय में अंतिम प्रमाण नहीं था, अपितु इस संबंध में अंतिम निर्णय उसे ज्ञान प्रदान करने वाले आचार्य का ही होता था। चरक तथा राजशेखर ने विद्वत्परिषदों का उल्लेख किया है, जो कवियों तथा विद्वानों की परीक्षा लेती थी।
लेख/विचार
एै परिस्थिति तू मुझे कितना रूलाएगी
एै परिस्थिति तू मुझे कितना रूलाएगी
हार कर तू खुद मुझे
जीत तक पहुँचाएगी
एै परिस्थिति तू मुझे कितना रूलाएगी
फैला कर अपना मकड़
जाल तू खुद
फस जाएगी
एै परिस्थिति तू मुझे कितना रूलाएगी
अपने उलझे हुुए डाेर काे
तू खुद सुलझाएगी
मजाक बनता सूचना का अधिकार
समाजसेवी अन्ना हजारे के आमरण अनशन के बाद 12 अक्टूबर 2005 को जब सूचना का अधिकार अधिनियम लागू हुआ तब लगा था कि अब लोकतन्त्र सार्थक होगा। भ्रष्टाचार पर अंकुश लगेगा, शासन-प्रशासन के सम्पूर्ण क्रिया-कलाप पारदर्शी हो जायेंगे, देश का आम जन सशक्त बनेगा और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में नागरिकों की पूर्ण भागीदारी सुनिश्चित होगी। क्योंकि यह अधिनियम जनता के प्रति सरकारी तन्त्र की जवाबदेही सुनश्चित करता है तथा देश के आमजन को शासन-प्रशासन के कामकाज को जानने और समझने का अधिकार प्रदान करता है। लेकिन देश का आमजन इस अधिकार का कितना और किस हद तक उपयोग कर पा रहा है, यह किसी से छुपा नहीं है।
बिहार मा चुनाव बा……….
बिहार चुनाव का दंगल शुरू हो गया है। सियासी गलियारों में दलित वोट हांकने की कवायद शुरू हो गई है। ये जुदा बात है कि बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा ये मुद्दे पहले भी ज्वलंत थे और आज भी उतने ही ज्वलंत मुद्दे हैं, लेकिन इस बार नाराज युवा वर्ग ने बेरोजगारी के मुद्दे को अहम बनाया है और रोजगार की मांग की है। बिहार की हालत अब भी बुरी है। सड़कें गड्ढों से पटी पड़ी है बहुत से घर पानी में डूबे हुए हैं। बदबू और सड़ांध से लोगों का दम घुट रहा है और प्रशासन व्यवस्था निष्क्रिय है। चुनावी उम्मीदवार सीएम बनने का सपना तो देख रहे लेकिन वो अपने क्षेत्र की समस्याओं को नजरअंदाज किए हुए हैं। किसानों की बदहाली कोई आज की बात नहीं है और इनकी बदहाली खत्म होने का नाम नहीं ले रही आए दिन आत्महत्या और उस पर राजनीति। कुछ अच्छा होने की उम्मीद में किसान वोट का मोहरा बनते जा रहा है। बिहार में 96.5% किसान छोटे और मध्यम जोत वाले हैं इसके साथ ही काफी संख्या में बटाईदार और कृषि आधारित श्रमिक हैं। बहुत से किसान ऐसे भी हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य वाली फसल उगा नहीं पाते और जो उगाते भी हैं उन्हें उसका समर्थन मूल्य नहीं मिल पाता है। बाढ़ और सूखा यह आपदाएं किसान के ऊपर हमेशा से हावी रही है। यह मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए चुनौतीपूर्ण है।
टीआरपी मुक्त खबरें क्यों नहीं ?
आम दर्शक तो टीवी पर केवल सच्ची और साफ-सुथरी खबरें ही देखना चाहते हैं, किंतु टीआरपी की होड़ ने आज न्यूज़ चैनलों की पत्रकारिता को इतने निचले स्तर पर ला दिया है कि अब अधिकतर न्यूज़ चैनलों पर सही न्यूज़ की जगह फेक न्यूज़ और डिबेट के रूप में हो हल्ला ही देखने-सुनने को मिलता है। सभी चैनल यह दावा करते हैं कि हम ही नंबर वन हैं। अभी हाल ही में देश के दो बड़े न्यूज़ चैनलों पर टीआरपी से छेड़छाड़ करने के आरोप लगे हैं। टीआरपी की इस होड़ ने न्यूज़ चैनलों की पत्रकारिता का स्तर इतना अधिक गिरा दिया है कि लोकतंत्र के चौथे स्तंभ यानी मीडिया पर दीमक सी लगती नजर आ रही है।
बच्चों के स्कूल नहीं लौटने का खतरा एक गंभीर चेतावनी
स्कूल बंद होने के बाद अपनी शिक्षा के लिए वापस नहीं आने वाले बच्चों की संख्या अधिक होने की संभावना है, लड़कियों और युवा महिलाओं को असंतुष्ट रूप से प्रभावित होने की संभावना है, क्योंकि स्कूल बंद होने से वे बाल विवाह गर्भावस्था और लिंग आधारित हिंसा के प्रति अधिक असुरक्षित हैं। विश्व बैंक ने कहा है कि स्कूलों के बंद होने के परिणामस्वरूप भविष्य में उभरती विश्व शक्ति भारत को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है।
संयुक्त राष्ट्र की नीति के अनुसार शिक्षा पर महामारी के प्रभाव और सीओवीआईडी -19 की आर्थिक गिरावट के कारण 24 मिलियन बच्चों के स्कूल नहीं लौटने का खतरा अब सच में बदल गया है। उन्होंने कहा कि शैक्षिक वित्तपोषण का अंतर भी एक तिहाई बढ़ने की संभावना है। दुनिया भर में 1.6 अरब से अधिक शिक्षार्थी शिक्षा प्रणाली के व्यवधान से प्रभावित हुए हैं। प्राथमिक स्तर पर 86% बच्चे स्कूल से प्रभावी रूप से बाहर हो गए हैं।
बिहार चुनाव फैसला किसके पक्ष में…
बिहार देश का पहला ऐसा राज्य बनने जा रहा है जहाँ कोरोना महामारी के बीच चुनाव होने जा रहे हैं और भारत शायद विश्व का ऐसा पहला देश। आम आदमी कोरोना से लड़ेगा और राजनैतिक दल चुनाव। खास बात यह है कि चुनाव के दौरान सभी राजनैतिक दल एक दूसरे के खिलाफ लड़ेंगे लेकिन चुनाव के बाद अपनी अपनी सुविधानुसार एक भी हो सकते हैं। यानी चुनाव प्रचार के दौरान एक दूसरे पर छींटाकशी और आरोप प्रत्यारोप लगाने वाले नेता चुनावी नतीजों के बाद एक दूसरे की तारीफों के पुल भी बांध सकते हैं। मजे की बात यह है कि यह सब लोकतंत्र बचाने के नाम पर किया जाता है। हाल ही में हमने ऐसा महाराष्ट्र में देखा और उससे पहले बिहार के पिछले विधानसभा सत्र में भी ऐसा ही कुछ हुआ था।
‘‘दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में उत्तर प्रदेश का पूरे देश में प्रथम स्थान‘‘
कृषि के साथ किसानों की जीविका पशुपालन से चलती रही है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में पशुपालन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पशु, कृषि, खाद, खाद्यान्न एवं ऊर्जा के अच्छे स्रोत रहे हैं। जनसंख्या की वृद्धि से उ0प्र0 देश का सबसे बड़ा प्रदेश होने के साथ ही यहाँ विकास की अपार सम्भावनायें हैं। पशुपालन प्रदेश में गरीब, ग्रामीण, जीवन की आजीविका के प्रमुख आधार रहे हैं। गाय, भैस, बकरी, भेड़, सुअर, मुर्गी आदि पशुधन कृषि के साथ-साथ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रदेश सरकार पशुधन विकास के क्षेत्र में विभिन्न कार्यक्रमों उन्नत प्रजनन, पशु रोग नियंत्रण, उन्नत पशुपोषण, आधुनिक पशुधन प्रबन्धन आदि के माध्यम से दुग्ध व पशुधन की उत्पादकता में वृद्धि कर रही है। सरकार के कार्यक्रमों से गरीब पशुपालकों, निर्बल वर्ग के व्यक्तियों, भूमिहीन श्रमिकों की आजीविका तथा उनका आर्थिक उन्नयन हो रहा है, साथ ही उनका कुपोषण भी दूर हो रहा है। प्रदेश सरकार द्वारा दुग्ध उत्पादन हेतु किये गये विभिन्न कार्यो का ही परिणाम है कि उ0प्र0 देश में दुग्ध उत्पादन के क्षेत्र में प्रथम स्थान पर है।
Read More »महिलाओं का सामूहिक सफर ‘नारी तू नारायणी’ से ‘माल है क्या’
वेबसिरीज की हीरोइनों के बोल्ड अंदाज तथा अंग्रेजी गालियां और अब भारतीय समाचार प्रवाहों में उभर-उभर कर आना महिलाओं के विधानों और व्यवहार के बीच कोई संबंध दिखाई दे रहा है? बंदिश बंडिट्स की हॉट नायिका का गुस्सा और रिया चक्रवर्ती के ह्वाट्सएप चैट के लीक होने का करोड़ो भारतीयों के इंतजार के बीच कोई कनेक्शन दिखाई दे रहा है? पिछले कुछ महीनों से सबसे अधिक किसकी चर्चा हो रही है और क्या काम हो रहा है? फिल्में और समाज, दोनों ही एक-दूसरे को बनाते हैं, जिसका बहुत बड़ा सबूत इस समय मिल रहा है। आज अगर किसी बात की सबसे ज्यादा चर्चा है तो वह आईपील खेलने गए लड़कों की नहीं है, इस समय सबसे ज्यादा चर्चा में देश की नायिकाए हैं। अब यह सोचने के लिए मजबूर होना पड़ रहा हक् कि उनके लिए नायिका शब्द का प्रयोग करें या नहीं? इस चिंता में आज लोग परेशान हैं।
मुश्किलें और तरक्की
मुश्किलें और तरक्की, कहने सुनने या पढ़ने में ही बहुत अजीब लगेगा पर थोड़ी सी गम्भीर होते हुए इस शिर्षक पर विचार किया जाए तो इसका वास्तविक तात्पर्य समझने में बिल्कुल भी अजीब नहीं लगेगा किसी को भी।
जी हां हमें एक सफल पर साथ साथ अपनी सफलता को कायम रखने की असली सीख तो मुश्किलें ही सिखाती हैं क्योंकि जब तक हमारे समक्ष मुश्किलें नहीं आतीं हमें अपने जीवन में उपलब्ध किसी भी रिश्ते, पद प्रतिष्ठा का स्वत: कोई कीमत समझ में नहीं आता और ना ही हम दिल से एक मजबूत इंसान बन पाते हैं जिसे अच्छे बुरे इंसान, विषय अथवा किसी भी बात की जानकारी हो।
हमारे इस जीवन में जब तक हमारे साथ सब कुछ अच्छा चल रहा होता है तब तक तो हमारे चिरपरिचित लोगों को हम बहुत अच्छे लगते रहते हैं और हमें भी वो सब चिरपरिचित बड़े अच्छे, प्यारे अथवा यूं कहें कि चाशनी में डूबे हुए लगते हैं।