Tuesday, April 22, 2025
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वक्त की बेरुखी ने….

वक्त की बेरुखी ने मुसलसल रुलाया
हमें तीरगी ने बहुत कुछ दिखाया
मुझको यूं जो अज़ाबे घड़ी में छोड़ा
उसने झूठे भरम से है पर्दा हटाया
वो जो खुद को ही वतने अमीं कह रहे हैं
ख्वाहिशों ने उन्हीं के चमन था जलाया
ठंड और भूख की अब न उसको पड़ी है
बेटियों के फिकर ने है जिसको सताया
इन जुनूने जुलूसों में कुछ ना रखा है
बेकसूरों का इसने लहू है बहाया
कोई अरमा अधूरा तेरा टूटा दिल क्यों
एहले दुनिया ने कब टूटे दिल से निभाया
तू ना हंसना किसी की भी लुटते अना पर
मुझको मेरे ही ज़ख्मी अना ने सिखाया