Saturday, June 29, 2024
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देश में राजनीति करने के लिए अब क्या किसान ही बचे है?

किसान चाहता समाधान|
हिंदुस्तान एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ राजनीतिक लोकतंत्र पर विश्वास करने वाली सरकार का भी देश है, स्वतंत्रता के बाद प्रजातंत्र के मूल सिद्धांतों को हर सरकार ने अपनाकर देश में विकास लाने का प्रयास किया है, और इसी मूल मंत्र के चलते कृषि सेक्टर को प्राथमिकता देकर उसे बढ़ावा देने और उसके विकास के लिए हर संभव प्रयास किए हैं, इसी तारतम्य में मोदी सरकार द्वारा कृषि कानून 2020 बनाया गया. जैसे पूरे राष्ट्र में कृषि की एकरूपता वाली नीति का निर्धारण संसद में बिल पास कर दिया गया| पर अचानक देश के अन्नदाता कृषक इस नीति के विरोध में सड़क पर उतर आए, सरकार और कृषक समुदाय में गतिरोध आकर नई उलझन खड़ी हो गई है, कृषक अपनी बात मनवाने के लिए आंदोलन पर उतर आए और उनकी मुख्य मांग कृषि कानून को रद्द करने की सरकार के सम्मुख रखी है,पर सरकार समझौते के लिए बैठक पर बैठक आयोजित करती जा रही है| इन बैठकों का नतीजा निराधार नजर आ रहा है, हिंदुस्तान में पंजाब हरियाणा महाराष्ट्र और अन्य राज्यों के कृषक संघों की अलग-अलग स्तर पर बैठक आयोजित की जा रही है, पर विभिन्न प्रदेशों के संघों के अध्यक्षों ने एक स्वर में कह दिया है की सरकार राजनीति ना कर मूल समाधान निकालने का प्रयास करें, किसान संघ ने कहा है कि हम दो टूक बात करने के मूड में हैं आप कृषि कानून 2020 रद्द करते हैं या नहीं इसके विपरीत प्रधानमंत्री ने मीडिया में आकर कहा की कृषि कानून 2020 उनके सर्वोपरि हित के लिए और किसानों को आंदोलन के लिए अंदरूनी तौर पर भड़काया जा रहा है| केंद्र सरकार या अच्छे से जानती है की बिल को रद्द करने का मतलब सरकार को पीछे हटना पड़ेगा और देश में जो प्रधानमंत्री का मैजिक या जादू है उसका निश्चित तौर पर कम होना होगा मोदी सरकार ने विगत 7 साल के कार्यकाल जो अलोकप्रिय कानून देश में लागू किए उससे जनता के बीच आक्रोश तथा असंतोष है, मोदी सरकार इन सब से खासा परहेज कर रही हैं|,
देश के कृषक अनाज पैदा करने वाले संघर्षशील नागरिक हैं, इनके द्वारा उत्पन्न किया गया अनाज आम नागरिकों का पेट भरता है,बल्कि इससे पर्यावरणकी सुरक्षा तथा पशु पक्षियों का भी पेट भरा करता है, ऐसे में सरकार को कृषकों के साथ राजनीति या आंदोलन को दबाना अत्यंत अलोकतांत्रिक तथा प्रजातांत्रिक कर्म ही होगा, स्वतंत्रता के बाद इतिहास रहा है बहुत कम मौके पर किसान खेतों से उठ कर सरकार के सामने आया और आंदोलन की स्थिति बनी थी, हमेशा ही किसान और सरकार आमने सामने मांगों को लेकर टकराने से परहेज करते रहे हैं| हरियाणा, पंजाब और कर्नाटक, केरल के किसानों को छोड़ दिया जाए तो अमूमन किसान आर्थिक स्थिति से सदैव संघर्ष रत रहा है और आर्थिक तंगी से जूझता भी रहा है, ऐसे में यदि सरकार किसानों की अधिकांश मांगो को पूरा कर इनके साथ राजनीतिक दांव ना आजमाए तो सरकार के गौरवशाली इतिहास में और ख़राब प्रसंग जोड़ने से बच जाएगा| कृषक नेताओं और विपक्षी दलों ने एक स्वर में कहा है कि अब राजनीति करने के लिए किसान ही मिले कम से कम अन्य दाताओं को तो राजनीति से वंचित रखा जाए| तब ही देश में खुशहाली और अनाज का भंडार बना रहेगा, पर परिस्थिति उलट नजर आती है| बीते हुए दिनों में राजधानी दिल्ली के आसपास सीमा क्षेत्र में एकत्र हुए बड़ी संख्या में किसानों ने बहुत तेज और आक्रामक तेवर अपना लिए हैं, कृषक संघों के वैधानिक प्रतिनिधियों ने साफ तौर पर कह दिया हैकि वे अब दो टूक फैसला चाहते हैं और वह किसी भी कीमत पर पीछे नहीं हटेंगे, पहले जो कृषक एम.एस.पी. का कानूनी अधिकार मिलने पर सहमत थे. अ अब वे सभी कानूनों को निरस्त करने की मांग पर अड़े हुए हैं| केंद्र सरकार लगभग किसानों के साथ 5 बैठके कर चुके और किसान इससे संतुष्ट भी नहीं, अब वह सारे कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं, सरकार जब किसानों का भला चाहती और उसी के अनुपालन में कानून बनाती है तो जब जिसके लिए कानून बनाया गया है वही नहीं चाहता तो इस कानून के मायने किसी भी स्तर पर दूरगामी तथा फलदायक नहीं होंगे| ऐसे में किसको की मांग तर्क सम्मत एवं जायज नजर आती है| फिर इस तरह के कानून में सुधार करने की गुंजाइश सदैव बनी रहती है, जो राज्य दिल्ली से काफी दूरी पर है वहां के किसान संगठन इस कृषि कानून के विरोध में वहां बड़ी संख्या में विरोध जताने हेतु आंदोलन को तेज करने पर अमादा हो गए है किसान संघ के नेताओं ने कहा अब हम कोई चर्चा नहीं चाहते बहुत चर्चा हो चुकी, अब वे चाहते हैं सरकार ने अंदरूनी तौर पर इस बैठक के बाद क्या निर्णय लिया है उसकी जानकारी उन तक पहुंचाई जाए |दूसरे प्रदेशों के कृषक नेताओं ने अलग-अलग बात कह कर यह संदेश सरकार तक पहुंचा दिया है कि उन्हें अब केंद्र सरकार के नेताओं मंत्रियों की नियत पर शक होने लगा है वह समय नष्ट कर किसानों को फुसलाना चाहते हैं, सभी कृषक संघों ने एकजुट होकर कहा कि सरकार अपनी नीति और नियत दोनों साफ रखें और किसानों के लिए समाधान त्वरित गति से निकाले अन्यथा किसान अपना आंदोलन प्रखर और आक्रामक करने की मन स्थिति में आ चुका है| केंद्रीय मंत्री आलोक तोमर और रेलवे मंत्री पीयूष गोयल लगातार किसानों के संपर्क में रहकर विज्ञान भवन में बातचीत के कई दौर चलाकर समस्या के समाधान के लिए प्रयास रत हैं, हालांकि किसानों ने मीटिंग से पहले ही कह दिया है कि कानूनों को वापस लेने के पश्चात ही उनका आंदोलन समाप्त होगा, इस किसान आंदोलन का समर्थन ब्रिटेन और कनाडा के नागरिक तथा वहां के राजनैतिक नेता भी मैदान में उतर चुके हैं, ब्रिटेन के लेबर पार्टी के नेता तनमनजीत सिंह के नेतृत्व में लगभग 36 सांसदों का एक बड़ा समूह किसान आंदोलन के समर्थन में खुलकर आ चुका है| ब्रिटेन में बसे सिक्ख भी किसान आंदोलन को समर्थन दे रहे हैं इसी तरह अमेरिका के सिख नागरिक एवं राजनैतिक नेता भारत में चल रहे कृषक आंदोलन को समर्थन देने लगे हैं, अब देश का कृषक आंदोलन वैश्विक रूप ले चुका है ऐसे में सरकार को किसानों के संदर्भ में शांति पूर्वक विचार कर सही और सटीक निर्णय लेकर कृषकों को राहत देना चाहिए, क्योंकि किसानों का यह राष्ट्रव्यापी आंदोलन राष्ट्र के विकास समृद्धि और राजनीतिक भविष्य के लिए अच्छे संकेत देने वाला नहीं है|
संजीव ठाकुर कवि कथाकार