Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

ऑनलाइन शिक्षा… कितनी सही?

भारत में स्कूल कॉलेज समेत तमाम शिक्षण संस्थान अपने अपने सत्र पूरे कर पाते, इससे पहले कोरोना संकट के चलते लॉकडाउन लगा दिया गया। ऐसे में शिक्षा संबंधी कार्यों और बच्चों की पढ़ाई पर प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। करीब तीन महीने से कोरोना का कहर जारी है और बच्चों की पढ़ाई पर इसके असर को देखते हुए बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई की सुविधा उपलब्ध कराई गई। हालांकि इस सुविधा के अपने नफे नुकसान हैं और जो दृष्टिगोचर भी हो रहे हैं और साथ ही इस दौर की सक्रिय पीढ़ी को कठिन परिस्थितियों से भी गुजरना पड़ रहा है।
अभी कई कक्षाओं के पिछले शिक्षा सत्र के मसले ही हल नहीं हुए थे, परीक्षाएं नहीं हुईं, रिजल्ट नहीं आया था और नया सत्र शुरू भी कर दिया गया। छोटी कक्षाओं का शिक्षा सत्र अप्रेल में ही शुरू हो जाता है। स्कूलों ने आडियो-वीडियो क्लिप और कांफ्रेंसिंग एप के जरिये पढ़ाई शुरू कर दी है। इस विषय पर दो मत हो सकते हैं कि स्कूलों ने आनलाइन पढ़ाई का फार्मूला अपना शिक्षा व्यवसाय बचाने, फीस वसूली की चिंता या शिक्षकों को वेतन भुगतान की शुभेच्छावश ईजाद किया है या फिर इसका मकसद ” शो मस्ट गो आन” है। मगर इसका सकारात्मक नजरिया यह भी है कि भविष्य की शिक्षा प्रणाली में यह दौर कुछ बेहतर जोड़कर जायेगा।

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अंतरराष्ट्रीय मधुमेह जागृति दिवस पर जागरूकता जरूरी

प्रतिवर्ष २७ जून को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मधुमेह जागृति दिवस मनाने की जरूरत इसलिए महत्वपूर्ण हुई क्योंकि इस बीमारी के कारण और बचाव के विषय में लोगों के बीच काफी मतभेद और अनभिज्ञता देखी जा रही है। यही कारण है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के रिपोर्ट के मुताबिक पूरे विश्व की लगभग ६-७ % आबादी मधुमेह नामक बीमारी से ग्रसित है। मधुमेह से पीडि़तों की संख्या में इतनी तेजी से वृद्धि लोगों में मधुमेह के प्रति अनभिज्ञता की उपज है। भारत के परिपेक्ष में यह बीमारी आम बात है , इस बीमारी से ग्रसित लोगों की बड़ी जनसंख्या भारत में निवास करती है। इंटरनेशनल डायबिटीज फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार लगभग ७.७ करोड़ पीड़ितों के साथ मधुमेह की दृष्टि से भारत का विश्व में दूसरा स्थान है। इसीलिए भारत को विश्व मधुमेह की राजधानी का दर्जा प्राप्त है। इन आंकड़ों के मद्देनजर वैश्विक स्तर पर हर पांचवां मधुमेह रोगी भारतीय है। मधुमेह के यह आंकड़ें इतने चिंतनशील हैं कि पूरी दुनिया में इसके निवारण व उपचार में प्रतिवर्ष करीब २५० से ४०० मिलियन डॉलर का खर्च वहन किया जाता है। इस बीमारी के कारण वैश्विक स्तर पर प्रतिवर्ष करीब ५० लाख लोग अपनी नेत्र ज्योति खो देते हैं और करीब १० लाख लोग अपने पैर गवां बैठते हैं । मधुमेह के कारण विश्व भर में लगभग प्रति मिनट ६ लोग अपनी जान गंवा देते हैं और किडनी के निष्काम होने में इसकी मुख्य भूमिका होती है।

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खेमों में बंटी पत्रकारिता से चौथा खम्भा गिर चुका है -प्रियंका सौरभ

मीडिया लोकतंत्र में जनहित के प्रहरी के रूप में कार्य करता है। यह एक लोकतंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और लोगों को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय महत्व की घटनाओं की सूचना देने का काम करता है। मीडिया को लोकतांत्रिक देशों में विधानमंडल, कार्यकारी और न्यायपालिका के साथ “चौथा स्तंभ” माना जाता है। पाठकों को प्रभावित करने में इसकी अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान जो भूमिका निभाई थी, वह राजनीतिक रूप से उन लाखों भारतीयों को शिक्षित कर रही थी, जो ब्रिटिश साम्राज्यवाद के खिलाफ अपनी लड़ाई में शामिल हुए थे।
पत्रकारिता एक पेशा है जो सेवा तो करता ही है। यह दूसरों से प्रश्न का विशेषाधिकार भी प्राप्त करता है। पत्रकारिता का मूल उद्देश्य निष्पक्ष, सटीक, निष्पक्ष: और सभ्य तरीके और भाषा में जनहित के मामलों पर समाचारों, विचारों, टिप्पणियों और सूचनाओं के साथ लोगों की सेवा करना है। प्रेस लोकतंत्र का एक अनिवार्य स्तंभ है। यह सार्वजनिक राय को शुद्ध करता है और इसे आकार देता है। संसदीय लोकतंत्र मीडिया की चौकस निगाहों के नीचे ही पनप सकता है। मीडिया न केवल रिपोर्ट करता है बल्कि राज्य और जनता के बीच एक सेतु का काम करता है।

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प्यार करने वालों को किसी तरह की कोई आजादी क्यों नहीं है? – डॉo सत्यवान सौरभ

हाल ही में तमिलनाडु के तिरुपर में 2016 में ऑनर किलिंग के बहुचर्चित मामले में मद्रास हाईकोर्ट का फैसला आया है। कोर्ट ने सबूतों के अभाव में मुख्य आरोपी लड़की के पिता के साथ-साथ, लड़की की मां और एक अन्य को बरी कर दिया है और पांच आरोपियों की सजा को फांसी से बदल कर उम्रकैद में तब्दील कर दिया है। लड़की कौशल्या के परिवार वालों ने कुमारलिंगम निवासी शंकर की हत्या इसलिए की क्योंकि वह दलित जाति का था। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद उसने कौशल्या से शादी कर ली, जो उच्च जाति की थी। कालेज में पढ़ते वक्त दोनों में प्रेम हो गया और दोनों ने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी, जिससे कौशल्या के परिवार वाले काफी नाराज थे। इसके बाद 13 मार्च, 2016 को कुछ लोगों ने शंकर को बीच बाजार मौत के घाट उतार दिया था।

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आत्मनिर्भरता में सहायक होगा उचित विकल्पों का चयन

आज देश की अर्थव्यवस्था जहाँ कोरोना महामारी के कारण धराशायी हो गई है वहीं प्राकृतिक प्रकोपों ने भी खूब सताया है। इन सबसे ज्यादा प्रभावी पड़ोसी मुल्कों का हमारी सीमाओं पर अतिक्रमण और सेंधमारी की आए दिन हो रही वारदातों चिंता का विषय बना हुआ है। इसी बीच भारत व चीनी सेनाओं के बीच झड़प में हमारे देश के २० जवानों की शहादत ने पूरे देश में चीनी सामानों के बहिष्कार ने क्रांति ला दिया है । जिसके भी मुँह पर देखें बस एक बात ही मौजूद है कि चीन की इस धोखाधड़ी का बदला हम उसके बहिष्कार से पूरा करना चाहते हैं। वहीं भारत के बड़े-बड़े स्पॉन्सर अपनी स्पॉन्सरशिप को चीन के साथ खतम करने से इंकार कर रहे हैं। आखिर क्या वजह है जो भारत में इस तरह के स्पॉन्सरशिप बंद नहीं हो पा रहे हैं ? जब भी भारत व चीन सीमा विवाद होता है तो इसे बंद करने की कवायद शुरू तो होती है फिर भी यह विफल हो जाती है। बीते कुछ वर्षों के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में चीनी निवेश में काफी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। देखा जाए तो चीनी निवेशकों ने देश के स्टार्टअप अर्थव्यवस्था में काफी निवेश किया है जिस वजह से चीनी सामानों ने भारत में गहरी पैठ बना ली है। गौरतलब हो कि ऐसे हालात तभी पनपते हैं जब देश में आत्मनिर्भरता की कमी हो।

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मनरेगा योजना बनी रोजी-रोटी का सहारा -प्रियंका सौरभ

कोरोना के चलते पूरे भारत में ग्रामीण संकट गहरा रहा है काम की मांग बढ़ती जा रही है, महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना मांग को पूरा करने के लिए आगामी बजट में जोर-शोर से देखी जा रही हैं। ग्रामीण गरीबी से लड़ने के लिए सरकार के शस्त्रागार में यह एकमात्र गोला-बारूद हो सकता है। हालांकि, योजना को कर्कश, बेकार और अप्रभावी रूप हमने भूतकाल में देखे हैं महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम के तहत ग्रामीण नौकरियों की मासिक मांग 20 मई तक 3.95 करोड़ पर एक नई ऊंचाई को छू गई थी, और महीने के अंत तक 4 करोड़ को पार कर गई। इस साल मई में चारों ओर बड़े पैमाने पर नौकरी के नुकसान का संकेत आया, विशेष रूप से अनौपचारिक क्षेत्र में, जहां लाखों कर्मचारी अचानक तालाबंदी के कारण बेरोजगार हो गए हैं।

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गरीब कल्याण रोजगार योजना पर भी लगी सियासत की मुहर

कोविड – 19 के संक्रमण से बचाव स्वरूप अपनाए गए लॉकडाउन के कारण उत्पन्न हुई बेरोजगारी को दूर करने की पहल केंद्र सरकार की गरीब कल्याण रोजगार योजना मील का पत्थर साबित हो इसके लिए जोर-शोर से इसे लागू किया गया। यह योजना अभी ६ राज्यों उत्तर प्रदेश , बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उड़ीसा व राजस्थान के ११६ जनपदों में लागू की जा चुकी है। योजना के शुरू होने पर केंद्र सरकार ने कहा कि यह हमारा प्रयास है कि श्रमिकों को उनके घर के पास ही काम मिले , जो कार्य करके अब तक आप शहरों का विकास कर रहे थे वही काम अपने घर के निकट करके आप अपने गाँव के विकास में योगदान करें। इस योजना के सुंदरतम स्वरूप को देखते हुए यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि यह योजना हमारे श्रमिकों , जो बेरोजगार हो चुके हैं के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। महामारी रूपी लॉकडाउन ने जहाँ उनकी रोजी-रोटी छीन ली थी उसी रोजी-रोटी को फिर से बहाल करने के लिए केंद्र सरकार ने यह गरीब कल्याण रोजगार योजना चलाकर बड़ा ही नेक कार्य किया है। इससे जनता में केंद्र सरकार के प्रति सुंदरतम संदेश का संचार भी तेजी से हो रहा है।

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परमाणु परीक्षण की जगह गूंजेगी कुम्हारों के चाक की ध्वनि- डॉo सत्यवान सौरभ

बदलते दौर में भारत के गांवों में चल रहे परंपरागत व्यवसायों को भी नया रूप देने की जरूरत है। गांवों के परंपरागत व्यवसाय के खत्म होने की बात करना सरासर गलत है। अभी भी हम ग्रामीण व्यवसाय को थोड़ी-सी तब्दीली कर जिंदा रख सकते हैं। ग्रामीण भारत अब नई तकनीक और नई सुविधाओं से लैस हो रहा हैं। भारत के गांव बदल रहे हैं, तो इनको अपने कारोबार में थोड़ा-सा बदलाव करने की जरूरत है। नई सोच और नए प्रयोग के जरिए ग्रामीण कारोबार को जिन्दा रखकर विशेष हासिल किया जा सकता है और उसे अपनी जीविका का साधन बनाया जा सकता है।
इसी दिशा में खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग ने पोखरण की एक समय सबसे प्रसिद्ध रही बर्तनों की कला की पुनःप्राप्ति तथा कुम्हारों को समाज की मुख्य धारा से फिर से जोड़ने के लिये प्रयास प्रारंभ किये हैं। कोरोना के चलते हुए लॉकडाउन ने मिट्‌टी बर्तन बनाने वाले कारीगरों के सपनों को भी चकनाचूर कर दिया है।

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आत्मनिर्भर होने के मायने तलाशने होंगे

आजकल देश में सोशल मीडिया के विभिन्न मंचों पर चीन को बॉयकॉट करने कीमुहिम चल रही है। इससे पहले कोविड 19 के परिणामस्वरूप जब देश की अर्थव्यवस्था पर वैश्वीकरण के दुष्प्रभाव सामने आने लगे थे तो प्रधानमंत्री ने आत्मनिर्भर भारत का मंत्र दिया था। उस समय यह मंत्र देश की अर्थव्यवस्था को दीर्घकालिक लाभ पहुंचाने की दृष्टि से उठाया गया एक मजबूत कदम था जो आज भारत चीन सीमा विवाद के चलते बॉयकॉट चायना का रूप ले चुका है। लेकिन जब तक हम आत्मनिर्भर नहीं बनेंगे चीन के आर्थिक बहिष्कार की बातें खोखली ही सिद्ध होंगी। इसे मानव चरित्र का पाखंड कहें या उसकी मजबूरी कि एक तरफ इनटरनेट के विभिन्न माध्यम चीनी समान के बहिष्कार के संदेशों से पटे पड़े हैं तो दूसरी तरफ ई कॉमर्स साइट्स से भारत में चीनी मोबाइल की रिकॉर्ड बिक्री हो रही है। जी हाँ 16 जून को हमारे सैनिकों की शहादत से सोशल मीडिया पर चीन का बहिष्कार करने वाले संदेशो की बाढ़ ही आ गई थी। चीन के खिलाफ देशभर में गुस्सा था तो उसके एक दिन बाद ही 18 जून को ई कॉमर्स साइट्स पर चीन अपने मोबाइल की सेल लगाता है और कुछ घंटों में ही वे बिक भी जाते हैं।

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गलत व्यक्ति को सम्मान पत्र प्रदान कर इसका महत्व और गरिमा समाप्त ना करें

आज आप देख रहे होगे कि सोशल मीडिया पर हर किसी व्यक्ति को बिना सोचे- समझे, जांचे- परखे सम्मान पत्र प्रदान करने की आंधी सी आ गई है। फेसबुक हो या ट्विटर या फिर दैनिक दिनचर्या में प्रयोग आने वाला व्हाट्सएप, कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म नहीं बचा है जहां सम्मान पत्र अत्याधिक मात्रा में ना बाटे जा रहे हो। अब विषय यह उठता है कि यह सम्मान पत्र किस लिए और क्यों बांटे जा रहे हैं। किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता या सेवा के लिए दिया गया सम्मान पत्र, या फिर किसी प्रतियोगिता मैं जीत हासिल कर सम्मान पत्र प्राप्त करना तो समझ में आता है। किंतु बेवजह किसी व्यक्ति ने ना तो किसी प्रकार की सेवा की है और ना ही किसी प्रतियोगिता में भाग लिया हो। ऐसे व्यक्ति को सम्मान पत्र प्राप्त हो जाता है तो यह बहुत ही चिंता का विषय है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो सम्मान पत्र का महत्व और अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। आज बहुत सी सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएं उन समाजसेवियों को सम्मान पत्र देकर सम्मानित कर रही हैं जिन्होंने कोरोना काल में मानव हित के लिए तन मन धन से निस्वार्थ भाव से सेवा की है।

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