Tuesday, April 22, 2025
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लेख/विचार

सावधानी ही बेहतर उपाय

करोना वायरस का आतंक पूरे विश्व में फैला हुआ है करोड़ों रुपए की मदद के बावजूद उपाय के नाम पर सिर्फ सावधानी बरतना ही है। भारत के अलावा अन्य देशों में जिस तरह से कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों के आंकड़ों में इजाफा हो रहा है उसकी तुलना में हमारा देश बहुत जल्दी जाग गया और “जनता कर्फ्यू” के रूप में उसका समाधान ढूंढा निकाला। इस वायरस से लोगों में बहुत डर व्याप्त हैं जो कि स्वाभाविक भी है। इसका कोई स्थाई इलाज नहीं है और कोई भी व्यक्ति यूं ही मृत्यु को आमंत्रण नहीं देना चाहेगा। जिस तरह से सरकार ने जनता से उनके घरों में रहने की अपील की और उसके परिणामस्वरूप जनता का पूर्ण सहयोग नहीं मिल पा रहा। अभी भी बहुत से लोग घर के बाहर घूमते नजर आ जाते हैं।

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फरमान–ए–साहब

महोब्बत के आगे जो ममता ले आती है। वो माँ कहलाती है।
जीत के लिए जो लड़ना सिखाती है। वो माँ कहलाती है।
परतव खुदा उसका घर फरिश्तों का वो अपने इस उरुज़ से वेपरवाह नज़र आती है।वो माँ कहलाती है।
कोख में पालना जन्म देना काम जननी का है।
जो जिन्दगी जीना सिखाती है।वो माँ कहलाती है।
जमाने की चकाचौंध में चेहरे कई है नजर में
अंधियारो में जिसको सदा बुलाती है। वो माँ कहलाती है।
किसी को चाह सूरत कि कोई सीरत पे मरता है।
एहसास था “साहब” एक जो तब से प्यार बरसाती है।वो माँ कहलाती है।
-अनिमेष मुँगारिया साहब 

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ऑनलाइन रिश्ते….

हमारी जान पहचान जरा रोचक है। हम मिले तो आभासी दुनिया में ही थे मगर वह शख्स मिला मुझे “मिली” बनकर मतलब लड़की बनकर। हमेशा दी दी करते रहता था मतलब कि करते रहती थी। हालांकि उसका व्यवहार कभी भी अवांछनीय नहीं था फिर भी यह बात मैं समझ नहीं पाई कि वह मुझ पर आकर्षित है या सिर्फ मुझे सम्मान दे रही है क्योंकि अक्सर जब मैं उसके बारे में पूछती थी तो वह यह बताती थी कि मैं ट्यूशन पढ़ाती हूं, कॉलेज से आकर घर का काम करती हूं, मां बीमार रहती है तो सारा काम भी मुझे ही संभालना पड़ता है वगैरह वगैरह। उसके बातचीत में हमेशा एक सम्मान की झलक सदैव दिखती थी और छोटी होने के कारण वह मजाक बहुत करती थी। जीजू आपको छेड़ते क्या? आप कयामत लग रही हैं, आप टेक्स्ट बहुत अच्छा लिखतीं हैं वगैरह इस तरह की बातें करते रहती थी। अक्सर वह मेरी फोटो भी मांगते रहती थी। तब मेरी शंका बढ़ने लगती थी कि एक लड़की आखिर मेरी फोटो क्यों मांगेगी और उसकी इतनी तारीफ क्यों करेगी? लेकिन मुझे उससे कभी कोई परेशानी नहीं हुई और वो मुझे भरोसा दिलाते रहती थी अपने लड़की होने का।

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कोरोना एक अदृश्य सेना के खिलाफ लड़ाई है

कोरोना से विश्व पर क्या असर हुआ है इसकी बानगी अमरीकी राष्ट्रपति का यह बयान है कि, “विश्व कोरोना वायरस की एक अदृश्य सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है।” चीन के वुहान से शुरू होने वाली कोरोना नामक यह बीमारी जो अब महामारी का रूप ले चुकी है आज अकेले चीन ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन गई है। लेकिन इसका सबसे अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि वैश्वीकरण की वर्तमान परिस्थितियों में यह बीमारी समूची दुनिया के सामने केवल स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि आर्थिक चुनौतियाँ भी लेकर आई है। सबसे पहले 31 दिसंबर को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को वुहान में न्यूमोनिया जैसी किसी बीमारी के पाए जाने की जानकारी दी। देखते ही देखते यह चीन से दूसरे देशों में फैलने लगी और परिस्थितियों को देखते हुए एक माह के भीतर यानी 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के लिए एक महामारी घोषित कर दिया।

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दूरदर्शी बजट का निकट दर्शन

2020-21 का आम बजट पारित हो चुका है| सरकार इस बजट को दूरदर्शी बता रही है तो विपक्ष इसे दिशाहीन बजट बताते हुए नहीं थक रहा है| सवाल उठता है कि सरकार के दावे को यदि सही मान लिया जाये तो क्या आम आदमी के दिन बहुरने वाले हैं? क्या बुनियादी सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करते देश के नागरिकों का जीवन स्तर बदलने वाला है? क्या बेरोजगारी के लिए दर-दर भटकते युवाओं के सपने साकार होने वाले हैं? क्या देश के किसानों की दशा सुधरने वाली है, जो कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि तो कभी ओलावृष्टि से बेहाल होते रहते हैं? क्या दिन प्रतिदिन बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था में कोई आमूल चूल परिवर्तन देखने को मिलेगा? ऐसे अनेक सवालों के जवाब तलाशने के लिए आइये करते हैं सरकार के दूरदर्शी बजट का निकट से दर्शन|
वित्तमन्त्री सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि यह बजट आकांक्षा, आर्थिक विकास और सर्वसमावेशी है| इससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी| उन्होंने यह भी कहा कि इस बजट के बाद हमारे अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद में 10 फीसदी की वृद्धि होगी| वित्तमन्त्री के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और सरकार मंहगाई को रोकने में कामयाब हुई है| 2020-21 के बजट की प्रमुख बातें निम्न प्रकार हैं:

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सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे

शाहीनबाग़ संयोग या प्रयोग हो सकता है लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान देश की राजधानी में होने वाले दंगे संयोग कतई नहीं हो सकते। अब तक इन दंगों में एक पुलिसकर्मी और एक इंटेलीजेंस कर्मी समेत लगभग 42 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। नागरिकता कानून बनने के बाद 15 दिसंबर से दिल्ली समेत पूरे देश में होने वाला इसका विरोध इस कदर हिंसक रूप भी ले सकता है इसे भांपने में निश्चित ही सरकार और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि सांप्रदायिक हिंसा की इन संवेदनशील परिस्थितियों में भी भारत ही नहीं विश्व भर के मीडिया में इसके पक्षपातपूर्ण विश्लेषणात्मक विवरण की  भरमार है जबकि इस समय सख्त जरूरत निष्पक्षता और संयम की होती है। देश में अराजकता की ऐसी किसी घटना के बाद सरकार की नाकामी, पुलिस की निष्क्रियता, सत्ता पक्ष का विपक्ष को या विपक्ष का सरकार को दोष देने की राजनीति इस देश के लिए कोई नई नहीं है। परिस्थिति तब और भी विकट हो जाती है जब शाहीनबाग़ में महिलाओं को कैसे सवाल पूछने हैं और किन सवालों के कैसे जवाब देने हैं, कुछ लोगों द्वारा यह समझाने का वीडियो सामने आता है। लेकिन फिर भी ऐसे गंभीर मुद्दे पर न्यायपालिका भी कोई निर्णय लेने के बजाए सरकार और पुलिस पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी डाल कर निश्चिंत हो जाती है।

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नेताओं के बिगड़े बोल….आखिर कब तक?

एक वक्त था जब नेता भाषण देते थे अपनी बात रखते थे तो उसमें वैचारिकता होती थी। नीयत तब भी वोट हासिल करने की होती थी मगर उनकी छवि साफ-सुथरी होती थी। जनता नेताओं की बात सुनती थी। आज की तरह अपनी बात को सुनाने के लिए भाड़े के ट्टू नहीं लाने पड़ते थे। आज कितने ही नेतागण ऐसे हैं जिनके ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं और उनमें नैतिकता लेशमात्र भी नहीं दिखाई देती। ऐसे भी नेता हैं जो अपने बयान के कारण समाज में हंसी का पात्र बन जाते हैं और शर्मिंदगी उठाते हैं। नेताओं के विवादित बयान एक ही बात दर्शाती है कि या तो वह खुद को चर्चित करना चाहते हैं या इस तरह के बयानों द्वारा अपने समर्थित दल में खास जगह पाना चाहते हैं। या फिर क्या इस तरह अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते हैं? बीजेपी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, सपा, बसपा के नेताओं को कई बार अपने बयानों के कारण सार्वजनिक रूप से माफी भी मांगनी पड़ी है मगर तब तक जबान फिसल चुकी होती है।

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भारत की दीवार….!

सामने 20 हजार प्रति किलो वाले मशरूम की प्लेट रखी थी, लेकिन मंत्रीजी एक निवाला तक हलक से नीचे नहीं उतार पा रहे थे। उन्हें अमरीकी दद्दा के आने की सूचना जैसे ही मिली, मंत्रीजी गहन चिन्ता के सागर में समा गये | तभी उनका निजी सहायक आ पहुंचा | मंत्रीजी का लटका चेहरा देख पलभर में भांप गया कि मंत्रीजी को क्या परेशानी है।
‘सर-सर ! आप चिन्ता छोडिये। हमने हल निकाल लिया है। आगरा की तर्ज पर बड़े – बड़े बैनर – पोस्टर लगा देंगे। जिससे झुग्गियाँ दिखेंगीं ही नहीं।’ सहायक ने सलाह दी।
‘अरे नहीं! वो आयडिया तो फुस्स हो गया था। गरीबों-भिखारियों के नटखट शैतानी बच्चों ने सारे पोस्टर फाड़ दिये थे। सारी करी कराई मेहनत पर पानी फिर गया था।’ मंत्रीजी ने धीरे से अपनी बात रखी।

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अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का कुत्सित रूप कोरोना वायरस

आज जब एशिया के एक देश चीन के एक शहर वुहान से कोरोना नामक वायरस का संक्रमण देखते ही देखते जापान,जर्मनी,अमेरिका,फ्रांस, कनाडा, रूस समेत विश्व के 30 से अधिक देशों में फैल जाता है तो निश्चित ही वैश्वीकरण के इस दौर में इस प्रकार की घटनाएं हमें ग्लोबलाइजेशन के दूसरे डरावने पहलू से रूबरू कराती हैं। क्योंकि आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण से विश्व भर में अब तक 2012 मौतें हो चुकी हैं और लगभग 75303 लोग इसकी चपेट में हैं  जबकि आशंका है कि यथार्थ इससे ज्यादा भयावह हो सकता है। लेकिन यहाँ बात केवल विश्व भर में लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान तक ही सीमित नहीं है बल्कि पहले से मंदी झेल रहे विश्व में इसका नकारात्मक प्रभाव चीन समेत उन सभी देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ना है जो चीन से व्यापार करते हैं जिनमे भारत भी शामिल है।

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कांग्रेस की हताशा है या फिर सुनियोजित रणनीति?

दिल्ली के चुनाव आज देश का सबसे चर्चित मुद्दा है। इसे भारतीय राजनीति का दुर्भाग्य कहें या लोकतंत्र का, कि चुनाव दर चुनाव राजनैतिक दलों द्वारा वोट हासिल करने के लिए वोटरों को विभिन्न प्रकार के प्रलोभन देना तो जैसे चुनाव प्रचार का एक आवश्यक हिस्सा बन गया है। कुछ समय पहले तक चुनावों के दौरान चोरी छुपे शराब और साड़ी अथवा कंबल जैसी वस्तुओं के दम पर अपने पक्ष में मतदान करवाने की दबी छुपी सी अपुष्ट खबरें सामने आती थीं लेकिन अब तो राजनैतिक दल खुल कर अपने संकल्प पत्रों में ही डंके की चोट पर इस काम को अंजाम दे रहे हैं। मुफ्त बिजली पानी की घोषणा के बल पर पिछले विधानसभा चुनावों में अपनी बम्पर जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी अपने उसी पुराने फॉर्मूले को इस बार फिर दोहरा रही है। मध्यप्रदेश राजिस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के कर्जमाफी की घोषणा के कारण सत्ता से बाहर हुई बीजेपी भी इस बार कोई खतरा नहीं लेना चाहती।

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