लेख/विचार
भारत के अभ्युत्थान में पत्रकारिता की भूमिका
भारत का अभ्युत्थान अर्थात भारत के विकास का अभ्युदय। भारत आज विकास के जिस पायदान पर खड़ा है वहां तक पंहुचने का आधार यदि शिक्षा, संस्कृति, तकनीक, श्रम, समर्पण रहा है, तो इस आधार को सुदृढ़ता प्रदान करने का काम हमारी मीडिया ने किया है। विकास और मीडिया अन्योन्याश्रित है। जब तक ज्ञान का प्रचार प्रसार नहीं होगा वह लोगों तक नहीं पंहुच पायेगा। सूचनाएं ही यदि प्रचारित नहीं होंगी तो लोग उन पर काम कैसे कर पाएंगे। जब हम भारत के अभ्युदय की बात करते हैं तो यह किसी एक बिंदु की नहीं बल्कि इसके बहुआयामी कलेवर की बात होती है अर्थात भारत का सर्वांगीण विकास।इस बहुआयामी अभ्युदय में हमारी मीडिया की भूमिका महत्वपूर्ण है। यह भूमिका हमारा संचारतंत्र तीन तरह से निभाता है- इलेक्ट्राॅनिक मीडिया, प्रिंट मीडिया और मुखाग्र मीडिया।
भारत के अभ्युदय को दो श्रेणी में विभाजित कर देखते हैं-शहरी विकास, ग्रामीण विकास: शहरों में सुविधाओं की सहज उपलब्धता के चलते इलेक्ट्राॅनिक व प्रिंट मीडिया की महती महत्वपूर्ण भूमिका है। भारत अभ्युदय से जुड़े ऐतिहासिक तथ्य, भौगोलिक जानकारी, आर्थिक स्थिति, देश व समाज की वर्तमान स्थिति,वैश्विक स्तर पर भारत अभ्युदय की स्थिति, राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में तथ्यों को उजागर करने, तत्संबंधित आंकड़े जुटाने, उन्हें जन जन तक पंहुचाने, जन मानस को जागरूक बनाने में मीडिया उत्तरदायित्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
जहाँ इलेक्ट्राॅनिक मीडिया स्रोतों में मोबाइल, कंप्यूटर, टी वी, इन्टरनेट, सैटेलाइट चैनल का बड़ा योगदान है, वहीं प्रिंट मीडिया, पत्रकारिता,संपादन दैनिक पत्र, पत्रिकाओं व लेखन के माध्यम से शिक्षित प्रबुद्ध वर्ग तक विविध क्षेत्रों की विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराती है। शहरों में जीवन की व्यस्तताओं के चलते प्रिंट मीडिया के मुकाबले इलेक्ट्राॅनिक मीडिया अधिक सक्रिय भूमिका में है। मोबाइल पर चलते फिरते सामाचर पत्र पढ़े जा सकते हैं, कोई भी पुस्तक सर्च कर कभी भी,कहीं भी पढ़ी जा सकती है। ज्ञानार्जन के साथ व्यक्ति अपने व समाज के अभ्युदय-विकास के साथ साथ देश की उन्नति में भी अपना अमूल्य योगदान करता है। यह मीडिया के कारण ही संभव है। मीडिया के बिना व्यक्ति तथ्यों व परिस्थितिजन्य जानकारी से अनभिज्ञ रहता है और अपने दायित्व निर्वहन मात्र अपने जीवन की आधारभूत आवश्यकता पूर्ति के अतिरिक्त क्षमतावान, सामर्थ्यवान होने के उपरांत भी देश व समाज के अभ्युदय उत्थान में अपना कोई योगदान देने की स्थिति में नहीँ होता।
क्या मुस्लिम महिलाएँ और बच्चे अब विपक्ष का नया हथियार हैं?
सीएए को कानून बने एक माह से ऊपर हो चुका है लेकिन विपक्ष द्वारा इसका विरोध अनवरत जारी है। बल्कि गुजरते समय के साथ विपक्ष का यह विरोध “विरोध” की सीमाओं को लांघ कर हताशा और निराशा से होता हुआ अब विद्रोह का रूप अख्तियार कर चुका है। शाहीन बाग का धरना इसी बात का उदाहरण है। अपनेराजनैतिक स्वार्थ के लिए ये दल किस हद तक जा सकते हैं यह धरना इस बात का भी प्रमाण है। दरअसल नोएडा और दिल्ली को जोड़ने वाली इस सड़क पर लगभग एक महीने से चल रहे धरने के कारण लाखों लोग परेशान हो रहे हैं। प्रदर्शनकारी सड़क पर इस प्रकार से धरने पर बैठे हैं कि लोगों के लिए वहाँ से पैदल निकलना भी दूभर है। लोग अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे, स्थानीय लोगों का व्यापार ठप्प हो गया है, रास्ता बंद हो जाने के कारण आधे घंटे की दूरी तीन चार घंटों में तय हो रही है जिससे नौकरी पेशा लोगों का अपने कार्यस्थल तक पहुंचने में असाधारण समय बर्बाद हो रहा है।
गरीबदास का बैंक खाता (बैताल पचीसी)
बैताल ने सम्राट विक्रमादित्य से कहना प्रारम्भ किया। हे! सम्राट, दो चार दिन पहले बासठ-त्रेसठ साल की एक देहाती अनपढ़ औरत सरकारी बैंक से बाहर निकली। बाहर निकलते ही उसे चक्कर आ गया। उसके मुँह से निकला ‘‘हे! राम अब मैं क्या करूँ ?’’ ऐसा कहते हुए वह जमीन पर गिर गई। पास से गुजर रहे लोग उसके पास पहुँचे। पास ही चाय की दूकान थी। चाय वाला गिलास में पानी लेकर दौड़ा और उस वृद्धा के मुँह पर पानी के छींटे मारे। जब वह वृद्धा कुछ समाचेत हुई तो लोगों ने उसे बैठाया और कुछ पूछा। लोगों के कुछ पछते ही वह वृद्धा फफक फफक कर रो पड़ी। बमुष्किल उसने रोते रोते अपनी राम कहानी बताई।
बैताल ने सम्राट विक्रमादित्य से पूछा-हे! राजन वह देहाती अनपढ़ औरत आखिर किस पीड़ा से पीड़ित हो गई जिसके कारण वह बेहोष होकर गिर पड़ी और समाचेत होने के बाद लोगो द्वारा कुछ पूछे जाने पर फफक फफक कर रो पड़ी, इस विषय में कुछ प्रकाश डालिए।
बाँदा में नदी की पूजा, पौधों का प्रसाद
नए साल पर बुंदेलखण्ड से एक बड़ा संदेश आया है। प्यास और भुखमरी का पर्याय बन गए बुंदेलखण्ड की धरती पर एक अनूठा संकल्प साकार हुआ। कुओं की पूजा और तालाबों के उद्धार की मुहिम छेड़ने वाले बांदा के जिलाधिकारी हीरालाल ने युवाओं के समूह के साथ आधी रात को केन नदी के तट पर नए साल का स्वागत किया। नदी संरक्षण का समवेत संकल्प लिया गया। एक नई उम्मीद के साथ, एक नई ऊर्जा के साथ। औरों से अलग, अनूठे रूप में जल संरक्षण का जो पाठ जिलाधिकारी ने बाँदा में शुरू कराया है, वह एक बेहतर भविष्य की तरफ इशारा करता है। केन नदी की पूजा के साथ ही उसके तट वाले 22 गांवों में एक साथ चौपाल लगवाई गई और वहाँ जलवायु परिवरतन के खतरे बताये गए। ग्रामीणों से पूछा कि नदी का दुश्मन कौन? जवाब मिला कि नदी में हुआ भारी खनन और खत्म हुए जंगलात के कारण नदी की दुर्दशा हुई है। राज और समाज का संकल्प हुआ कि सब मिलकर केन को बचायेंगे। उसका जंगल वापस लाएंगे। उसको पानी देने ताल-तलैया और कुओं को फिर भरेंगे। कैसे होगा यह सब? इन चौपालों में तय हुआ कि बारिश का पानी खेत में, तालाब में, कुओं में रोककर भूजल भंडार बढ़ाएंगे और पौधे लगाएंगे। जिले में तालाबों और कुओं को ठीक करने का काम पहले से भी चल रहा था, मगर नए साल से इसे जनांदोलन की शक्ल देने का रास्ता तय हो गया है। जिलाधिकारी ने राज और समाज को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया। नए साल के पहले हफ्ते में ही एक और अनूठी मुहिम शुरू हुई। गुरु गोविंद सिंह जी के प्रकाश पर्व पर जिलाधिकारी ने सभी श्रद्धालुओं को प्रसाद के रूप में पौधे दिये। गुरुद्वारा कमेटी ने अब हर रोज प्रसाद में पौधे देने का कर्म शुरू कर दिया है। यह काम मंदिरों में भी शुरू हुआ है। जन मानस में यह बात बैठी है कि प्रसाद में मिले पौधों का अनादर न हो। ऐसे में प्रसाद में मिले पौधे का रोपा जाना और उसकी देखभाल तय है। रोपने वाला परिवार समेत इसकी देखरेख भी करता रहेगा; इसी विश्वास के साथ बुंदेलखण्ड की धरती में एक नई मुहिम शुरू हुई है। यह सिर्फ तुलसी के पौधों तक सीमित नहीं। प्रसाद में नीम, बेर, नींबू, मीठी नीम से लेकर फूल और छायादार पौधे दिये जा रहे हैं। बुंदेलखण्ड की हालत किसी से छिपी नहीं है। वीरों की यह भूमि दशकों से जल संकट से जूझ रही है।
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मैं अभी भी जल रही… निर्भया

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जनमानस में जानकारी का आभाव बना विपक्ष का हथियार
नागरिकता संशोधन कानून बनने के बाद से ही देश के कुछ हिस्सों में इस कानून के विरोध के नाम पर जो हिंसक प्रदर्शन हो रहे हैं वो अब गंभीर चिंता ही नहीं चिंतन का भी विषय बन गए हैं। हर बीतते दिन के साथ उग्र होते जा रहे आन्दोलनों और आंदोलनकारियों के हौंसलों के आगे घायल होती पुलिस और लाचार से प्रशासन तंत्र से ना सिर्फ विपक्ष की भूमिका पर सवाल उठे बल्कि सरकार की नाकामी भी सामने आईं। विपक्ष इसलिए कठघड़े में है क्योंकि बात बात में गाँधी की विरासत पर अपना अधिकार जमाने वाला विपक्ष आज इन हिंसक आंदोलनकारियों के समर्थन में खड़ा है लेकिन उनसे अहिंसा और शांति के साथ अपनी बात रखने की समझाइश नहीं दे रहा। लोकतंत्र की दुहाई देने वाला विपक्ष जब लोकतंत्र के नाम पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाती अराजक होती भीड़ के समर्थन में उतरता है तो वो लोकतंत्र की किस परिभाषा को मानता है इसका उत्तर भी अपेक्षित है। संविधान की रक्षा की दुहाई देता विपक्ष जब नागरिकता कानून के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जाता तो है लेकिन कोर्ट के फैसले का इंतजार किए बिना सड़कों पर उतरता है और लोगों को भृमित करने का काम करता है तो संविधान और न्यायतंत्र के प्रति उसकी आस्था पर भी उत्तर अपेक्षित हो जाता है।
नए भारत में पुलिस की छवि की चुनौती
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जिस नए भारत की परिकल्पना की है, उसमें पुलिस का चेहरा बदलना बड़ी चुनौती है। समूचा देश इस वक्त महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों की रोकथाम के लिए आंदोलित है। खासकर बलात्कार और हत्या के बढ़ते अपराध पुलिस के रवैये की व्यापक आलोचना का आधार बने हैं। प्रधानमंत्री ने पुणे में आयोजित देश भर के पुलिस महानिदेशकों और महानिरीक्षकों के 55वें वार्षिक सम्मेलन में इस बात पर जोर दिया है कि महिलाओं के प्रति सुरक्षा का भाव जगाने वाली पुलिसिंग होनी चाहिए। पुलिस को अपने कामकाज और रवैये में भी बदलाव लाना चाहिए। यह एक संयोग ही है कि जिस वक्त हैदराबाद से उन्नाव तक की पुलिस कठघरे में खड़ी है, उसी वक्त पुणे में यह सम्मेलन हुआ है। प्रधानमंत्री और गृह मंत्री दोनों ने पुलिस सुधार की जरूरत को रेखांकित किया है। पूरे देश के पुलिस तन्त्र में शामिल अधिकारियों, पुलिस एकेडमियों को बिना वक्त गवाएं अपनी छवि बदलने की प्रभावी पहल करनी होगी। आज के भारत में पुलिसिंग की यह मौजूदा सूरत किसी हाल में स्वीकार नहीं हो सकती है। भारत की सिविल सोसाइटी अब अपराध के खिलाफ सामूहिक तौर पर सड़क पर उतरने लगी है। वह भयमुक्त माहौल और त्वरित न्याय की उम्मीद रखती है। उसे संविधान में यह सब गारंटियां दी गई हैं। ऐसे में न सिर्फ देश के राजनीतिक तन्त्र को ही संवेदनशील होना पड़ेगा, वरन अदालतों के भी सचेत होने का यही सही वक्त है। पीड़ित का पहला वास्ता पुलिस से है और यदि पहले ही कदम पर उसे मदद की जगह दुत्कार और अपमान मिलेगा तो मुश्किलें बढ़ना तय है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में पुलिस की छवि कैसी है? यह किसी से छिपा नहीं है। जिस दिन प्रधानमंत्री ने पूणे में पुलिस में सुधार की नसीहत की, ठीक उसी दिन भारत के गृह मंत्रालय की एक सर्वे रिपोर्ट ने पुलिस को आइना दिखाया है। यह सर्वे रिपोर्ट पुलिस को समग्रता के साथ सोचने के लिए अवश्य विवश करेगी।
Read More »दोहरा चरित्र–देश, समाज, संविधान के लिए खतरा- कुसुम सिंह
अभी कुछ ही दिन हुए हैदराबाद की महिला चिकित्सक का दुर्भाग्यशाली कृतघ्न सामूहिक बलात्कार व जघन्य हत्या। बात बात पर आग उगलने वाले हैदराबाद के सांसद महोदय के मुंह से एक भी शब्द इस शर्मनाक हत्याकांड के विरुद्ध नहीं निकला। उन्होंने न तो पीड़िता के प्रति कोई संवेदना दिखाई न पीड़ित परिवार के प्रति कोई सहानुभूति न ही अपराधियों के प्रति सख्ती दिखाई और न ही इस कुकृत्य की निंदा की।वे मूक दर्शक बनकर पूरा घटनाक्रम देखते रहे शायद आनन्दित भी होते रहे। क्यों? क्या इसलिए कि पीड़िता एक हिन्दू थी या कोई और वजह?
विडम्बना देखिए, जैसे ही हैदराबाद पुलिस द्वारा अपराधियों के एनकाउंटर की सूचना प्रसारित। हुई,वे तुरंत मुखरित हो उठे।अपराधियों के मारे जाने से व्यथित हो उठे, पुलिस की कार्यवाही को कानून के घेरे में ले लिया। प्रश्न खड़ा कर दिया, कैसे पुलिस ने अपराधियों को मार गिराया, कानून अपने हाथ में कैसे ले सकते है, तुरन्त पुलिस एनकाउंटर की विशेष जांच कराई जाए।मारे गए अपराधियों के शवों का पोस्टमार्टम कराया जाय।