Friday, May 17, 2024
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शाहीन बाग… क्या चुनावी रणनीति

नागरिकता संशोधन कानून पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ना के कारण आये अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने के लिए लागू किया गया। यह भी बार बार कहा गया कि यह किसी की नागरिकता छीनने का कानून नहीं है। फिर भी यहां उसका पुरजोर विरोध हो रहा है। यूं देखा जाए तो भाजपा हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण की नीति पहले भी अपनाती रही है, जो गाहे बगाहे दिख भी जाती है। विरोध का मसला सिर्फ इतना है कि आजादी के बाद से जो लोग यहां रह रहे हैं उनमें से बहुतों को अभी तक नागरिकता नहीं मिल पाई है। उन्हें डर है कि वे यहां से निष्कासित न कर दिए जाएं। उनका डर वाजिब भी है, मगर एक सवाल यह भी है कि जो लोग इतने सालों से रह रहे हैं, उन्हे नागरिकता के लिए अभी तक प्रयास क्यों नहीं किये गए। दूसरी तरफ सरकार ने हिंदू, सिख, जैन समुदाय को नागरिकता देने का वादा किया लेकिन मुस्लिमों के लिए नहीं। गौर करने वाली बात है कि इन तीनों देशों के मुस्लिम बहुसंख्यक हैं उन्हें नागरिकता की क्या जरूरत है? यहां के अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित क्यों महसूस कर रहे हैं। विरोध बस उसी बात का है।नागरिकता संशोधन कानून लागू तो हो गया है लेकिन अब शाहीन बाग के रूप में चुनावी दंगल अख्तियार कर रहा है। नेताओं के भड़काऊ बयान, फायरिंग, तिरंगे का अपमान, देश विरोधी नारे, बुर्के में पहुंची औरत और सामने दिल्ली का चुनाव। क्या शाहीन बाग नेताओं की सोची समझी रणनीति है? जो चुनाव के बाद खत्म हो जाएगी? क्या इस तरह के आंदोलन सत्ता हथियाने के साधन बन जाएंगे? क्या इन नेताओं की समझ इतनी अच्छी हो गई है कि अपनी चुनावी हितों को मद्देनजर रखकर संविधान की नई व्याख्या कर देंगे?
तीन तलाक, 370/35ए, राम मंदिर का फैसले के कारण क्या यहां का अल्पसंख्यक खुद को असुरक्षित महसूस करने लगा है। कहीं विरोध की वजह यही असुरक्षा तो नहीं। विरोध के जरिए अपनी कुंठा निकाल रहा है? यह भी सवाल है कि कितनी जानकारी रखते हैं हमारे नेता अपने संविधान की? अटल जी की सरकार में संविधान की करीब ढाई हजार प्रतियां बिक्री के लिए जारी की गई थी। क्या आज जरूरत महसूस नहीं हो रही कि फिर से लोगों को संविधान की जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कराई जाए ताकि अनाप-शनाप बोलने वालों की बोलती बंद हो? -प्रियंका माहेश्वरी