Thursday, May 16, 2024
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विविधा

फार्मा व्यवसाय को एआई और मशीन के मूल्य को पहचानने में मदद कर रहे हैं इंद्रप्रीत सिंह कैम्बो

पिछले कुछ वर्षों में, समाचार में ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ (एआई) और ‘मशीन लर्निंग’ (एमएल) शब्द आम हो गए हैं। पिछले पांच वर्षों में फार्मा और बायोटेक उद्योग में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के उपयोग ने नया स्वरूप दिया है कि कैसे वैज्ञानिक नई दवाओं का विकास करते हैं, बीमारी से निपटते हैं, आदि।
इंद्रप्रीत सिंह कम्बो एक विशेषज्ञ हैं जो फार्मा व्यवसाय को एआई और मशीन के मूल्य को पहचानने के बीच अंतर को कम करने में मदद कर रहे हैं। वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों (एआई) की तैनाती से फार्मा कंपनियों की सहायता कर रहा है। अपनी विशेषज्ञता का लाभ उठाते हुए, वह डेटा से समझौता किए बिना विशिष्ट अंतर्दृष्टि को उजागर करने में सक्षम है। वह एक इनोवेटर है, जो कि थियो फार्मास्यूटिकल इंडस्ट्री की जटिल व्यावसायिक जरूरतों को हल करने के लिए आउट ऑफ द बॉक्स आइडिया देते है।  क्योंकि उनके समाधान आम तौर पर क्लाउड में बनाए जाते हैं, वे लचीली, स्केलेबल और हमेशा बदलती जानकारी और विश्लेषणात्मक जरूरतों के प्रति उत्तरदायी होते हैं।

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आत्मनिर्भर भारत

आत्मनिर्भरता का जो संदेश भारत को दिया गया है वो इससे ज्यादा क्या आत्मनिर्भर बनेगा कि श्रमिक वर्ग अव्यवस्था के चलते पैदल ही चल निकला है अपने घरों की ओर। ये आत्मनिर्भरता का ही सबूत है कि उम्मीद, सहयोग और परिस्थितियों से लड़कर बिना हताश हुए वो लगातार चल रहा है। भूख – प्यास, धूप छांव की परवाह किए बिना बस चल रहा है। आजकल जो तस्वीरें वायरल हो रही है मजदूरों की वह हमें बेबस कर देने के लिए काफी है। खून से रिसते पैर, फफोलों से भरे हुए पैर लेकर नंगी जमीन पर बस चल रहा है। पैदल यात्री और कुछ जमीन पर नंगे पैर चलते लोग या एक ही साइकिल पर तीन चार लोगों की सवारी, गर्भवती स्त्रियां अपने पेट का भार उठाए  न जाने कितने किलोमीटर से चले आ रही है। पुलिस की लाठियां भी झेल रहा श्रमिक वर्ग की अभी न जाने कितनी यात्रा बाकी है? घर वापसी के बाद वह क्या खाएगा और परिवार को खिलाएगा क्या यह भी एक सवाल मुंह बाए खड़ा है उसके सामने? लाकडाउन के चलते इन दिनों मजदूरों के साथ लगातार सड़क दुर्घटनाएं घट रही है। डरा हुआ श्रमिक वर्ग जल्दी से जल्दी अपने घर पहुंच जाना चाहता है। शासन को चाहिए कि उचित व्यवस्था करके मजदूरों के पलायन को रोके। -प्रियंका माहेश्वरी

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मेरी प्यारी दादी माँ

मेरा बचपन औरो से अलग था,
माँ ने कहां पाला था।
मुझे तो मेरी दादी ने संवारा था,
माँ तो चल बसी थी, जब मैंने जन्म लिया।
औरों की दुनिया अलग थी,
मेरी तो गुड़िया भी, वो बूढ़ी दादी थी।
वो रात – दिन दौड़ती थी।
मुझे चलना सिखाने के लिए,
मै तो रात में आराम से सो जाती,
पर वो रात भर जागती थी।
वो अपना दर्द भूलकर
मेरी खुशी में गाती थी,
मेरे लिए हर दिन दुआं मांगती थी।
इस बुढ़ापे में भी वो मेरा बचपन संवारती थी।
– पल्लवी कौर जौहर

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माँ मेरी पूरी दुनिया है..

माँ मेरी पूरी दुनिया है।
वो दुनिया जहाँ मैं हमेशा हस्ती, खेलती हूँ उसकी गोद में सर रखकर होती हूँ।
माँ वो जादू की छड़ी है जो मेरी सारी परेशानियों को खुशियों में बदल देती है।
वो मेरे आंसूओ को भी अपनी आंखों में भर लेती है।
और अपने हिस्से की मुस्कान मुझे दे देती है।
उसने मुझे जिंदगी में हारना नहीं जिंदगी की हर मुश्किल का डटकर सामना करना सिखाया है।
माँ मेरी जिंदगी का वो अंग है जिसके बिना मेरी जिंदगी ही नहीं।
माँ मुझे सुंदर सी जिंदगी देने के लिए – धन्यवाद!
रिया सचान, कानपुर

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मेरी माँ मुझे बताती हैं..

मैं ख्याल नहीं रखती खुद का
मेरी माँ मुझे बताती हैं..
मैं रोने लग जाऊ तो वो
डांट कर चुप कराती हैं…
उसका साया मुझे कुछ इस कदर सुकून देता हैं…
जैसे देवी माँ अपने हाथों से मेरा सिर फिराती हैं…
खुद को भाग्यशाली कहुँ
इस बात का अहसास मेरी माँ कराती हैं….
प्रियंका राठौर बर्रा विश्व बैंक कालोनी, कानपुर

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कोरोना आपदा आर्थिक वर्चस्व की लड़ाई का परिणाम है

भारत 130 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला महज एक देश या धरती नहीं है अपितु यह विश्व की वह पावन भूमि है जहाँ स्वस्थ विचार पवित्र संस्कार और मनमोहक परम्परा इसे अग्रणीय और जीवन्त बनाती है। हिमालय से निकली आध्यात्मिक अनुभूति एवं ऋषि-मुनियों की तपस्या से उत्पन्न ऊर्जावान शक्ति एवम संस्कृति इसे विश्व गुरु के पद पर बैठाती है और बार बार संकट के समय विश्व की निगाहें भारत पर टिक जाती हैं। अतः जरुरत है अतीत के पननों को पलटने की अभी भी बहुतों को याद होगा गांवों में बनी मिट्टी की दीवारों के घर, कपड़ा, नालियाँ व मिट्टी और लकडी से बनी छत। हर त्योहार या शुभ अवसर पर गाय के गोबर, मूत्र और पानी से आंगन और दीवार की पुताई यह सब करने में अजीब उत्साह और ऊर्जा का संचार किसी भी वायरस के खत्म होने की गारंटी पूरी तरह वायरस मुक्त, सर्दी मे गर्मी और गर्मी मे सर्दी। लेकिन आज खूबसूरत और बड़े भवनों को वायरस मुक्त बनाया जा रहा है जबकि हम इसे पहले से ही जानते थे हमारी संस्कृति मे पहले सात समंदर पार जाने की मनाही थी यहाँ तक की अपनी सीमा भी पार नहीं करते थे।

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अल्पसंख्यक उत्पीड़न और भारत

मजहबी आज़ादी पर नज़र रखने वाली एक गैर राजनीतिक अमरीकी संस्था यूएस कमिशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ़्रीडम (USCIRF) ने साल 2020 के लिए मंगलवार को जारी अपनी सालाना रिपोर्ट में भारत को उन 14 देशों के साथ रखने का सुझाव दिया है जहाँ धार्मिक आज़ादी को लेकर कुछ ख़ास चिंताएं हैं। रिपोर्ट में भारत को उन देशों में शामिल किया गया है जहाँ धार्मिक अल्पसंख्यकों पर उत्पीड़न लगातार बढ़ रहा है।
USCIRF के अनुसार  भारत में नागरिकता संशोधन क़ानून और एनआरसी से करोड़ों मुसलमानों को हिरासत में लिए जाने और स्टेटलेस हो जाने का ख़तरा उत्पन्न हो गया है।

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जानते हैं कोरोना वायरस आपके शरीर को किस हद तक प्रभावित करता है

दुनिया भर में कोरोना वायरस का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में भी इस घातक वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 21 हजार को पार कर चुकी है। लोगों के मन में इस वायरस को लेकर कई तरह के सवाल हैं, ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन हर संभव कोशिश कर रहा है कि इस वायरस से जुड़ी जानकारियों को सभी देशवासियों से साझा किया जाए। कई लोग इस बात से भी चिंतित हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण शरीर में कितने दिनों तक रहता है। कोविड-19 से संक्रमित लोग भले ही जल्दी ठीक हो रहे हो लेकिन अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि कुछ मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है। संक्रमण के बाद ठीक होने में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करेगा कि सबसे पहले आप किस हद तक बीमार हुए थे।

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कोरोनॉ-व्याधि- संकट और चिंतन

संकट की है घड़ी विकट, एक जुट होकर लड़ना होगा,
आपसी भेदभाव से उठकर, कोरोनॉ से भिड़ना होगा।
हो रहा विषैला पर्यावरण, यह सबसे बड़ी चुनौती है,
प्रकृति से छेड़छाड़ अनुचित, नितप्रति कर रही पनौती है।
क्रुद्ध हुई प्राकृतिक सृष्टि, प्रतिक्रियात्मक प्रकोप दिखाती है,
ऋतु चक्र, कालक्रम बदल बदल, मानव को लक्ष्य बनाती है।
अब भी हम संभले नहीं अगर, यह आफत कहर मचाएगी,
प्राकृतिक चक्र यूं ही टूटेगा, सृष्टि पर विपदा आएगी।

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कोरोना कहर में भी फार्मासिस्ट को नहीं पहचान पा रही है सरकार

विकसित देशों में जो रोल डॉक्टर का होता है उसके समकक्ष फार्मासिस्ट को भी माना जाता है। वहाँ डॉक्टर सिर्फ डाइग्नोस्ट करता है और बीमारी की मेडिसिन फार्मासिस्ट लिखता है। वहाँ पर डॉक्टर व फार्मासिस्ट को गाड़ी के दो पहियों की तरह माना जाता है किंतु विडंबना देखिये कि हमारा देश उन देशों की अपेक्षा मेडिकल क्षेत्र में बहुत पीछे है फिर भी यहां फार्मासिस्ट को कोई महत्व ही नहीं दिया जाता है। मुझे तो ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ के लोग यह जानते ही नहीं हैं कि फार्मासिस्ट होता क्या है और उसका काम क्या है? शायद वो सिर्फ यह समझते हैं कि फार्मासिस्ट सिर्फ दवा वितरण का कार्य करता है।
अभी हाल ही में माननीय प्रधामंत्री जी ने सभी फार्मा कंपनीज को कड़े शब्दों में चेतावनी दी थी कि सुधर जाओ नहीं तो स्ट्रिक्ट कानून बना देंगे। मैं इस फैसले का स्वागत करता हूँ किन्तु एक बात मैं अपने प्रधानमंत्री जी से पूछना चाहूंगा कि यह कानून सिर्फ ज्यूरिस्प्रूडेंस की किताब में पढ़ने के लिए बनेगा या फिर इसका पालन भी सुनिश्चित किया जायेगा। ये सवाल इसलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि फार्मा सेक्टर में कानूनों की कोई कमी नहीं है लेकिन सिर्फ और सिर्फ दवा संबंधी कानूनों का इस देश में कड़ाई से पालन ही नहीं हो रहा है। आप नया कानून ला रहे हैं अच्छी बात है लेकिन जब मैं आत्मचिंतन करता हूँ तो मन में एक ही शंका बार-बार घर कर जाती है कि क्या ये कानून बनने के बाद कड़ाई से लागू होगा?

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