Friday, May 17, 2024
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जानते हैं कोरोना वायरस आपके शरीर को किस हद तक प्रभावित करता है

दुनिया भर में कोरोना वायरस का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। भारत में भी इस घातक वायरस से संक्रमित मरीजों की संख्या 21 हजार को पार कर चुकी है। लोगों के मन में इस वायरस को लेकर कई तरह के सवाल हैं, ऐसे में विश्व स्वास्थ्य संगठन हर संभव कोशिश कर रहा है कि इस वायरस से जुड़ी जानकारियों को सभी देशवासियों से साझा किया जाए। कई लोग इस बात से भी चिंतित हैं कि कोरोना वायरस का संक्रमण शरीर में कितने दिनों तक रहता है। कोविड-19 से संक्रमित लोग भले ही जल्दी ठीक हो रहे हो लेकिन अब इस बात के संकेत मिल रहे हैं कि कुछ मरीजों को पूरी तरह से ठीक होने में लंबा वक्त लग सकता है। संक्रमण के बाद ठीक होने में लगने वाला समय इस बात पर निर्भर करेगा कि सबसे पहले आप किस हद तक बीमार हुए थे।

मुमकिन है कि कुछ लोग बीमारी से जल्द निजात पा लें और कुछ लोगों को इससे उबरने के लिए लंबे समय तक संघर्ष करना पड़े। उम्र, लिंग और दूसरी स्वास्थ्य समस्याएं ये सभी बातें किसी व्यक्ति के कोविड-19 से गंभीर रूप से बीमार पड़ने के खतरे को बढ़ा देती हैं। इसके इलाज में आपके शरीर के साथ जितने प्रयोग किए जाएंगे और ये जितने ज्यादा दिनों तक चलेगा आपके ठीक होने में उतना ज्यादा वक्त लगेगा।
क्या होगा अगर मरीज में हल्के लक्षण हैं-
कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले ज्यादातर लोगों में खांसी और बुखार जैसे प्रमुख लक्षण ही दिखाई देते हैं। लेकिन उन्हें बदन दर्द, थकान, गले में खराबी और सिर दर्द की शिकायत हो सकती है। शुरू में सूखी खांसी होती है लेकिन कुछ लोगों को आखिर में खांसी के साथ बलगम भी आने लगता है। इन लक्षणों के इलाज के तौर पर आराम करने की सलाह दी जाती है, दर्द नाशक के रूप में पारासिटामोल और पर्याप्त मात्रा में पानी पीने के लिए कहा जाता है। हल्के लक्षण वाले लोगों के जल्दी ठीक होने की उम्मीद की जाती है। बुखार उतरने में हफ्ते भर से कम समय लगना चाहिए। हालांकि खांसी सामान्य से ज्यादा वक्त ले सकती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विश्लेषण के मुताबिक संक्रमण के बाद किसी व्यक्ति को ठीक होने में औसतन दो हफ्ते का समय लगता है।
क्या होगा अगर मरीज में गंभीर लक्षण  हैं-
ये बीमारी कुछ लोगों को बहुत गंभीर स्थिति पैदा कर सकती है। संक्रमण के सात से दस दिनों के भीतर ही इसका अंदाजा लग जाता है। स्वास्थ्य की स्थिति तेजी से बिगड़ सकती है। फेफड़े में जलन की शिकायत के साथ सांस लेना मुश्किल लगने लगता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि शरीर की प्रतिरोधक प्रणाली संक्रमण के खिलाफ लड़ने की कोशिश कर रहा होता है। दरअसल इम्यून सिस्टम कोरोना वायरस के खिलाफ तगड़ी प्रतिक्रिया करता है और इसका कुछ नुकसान हमारे शरीर को भी होता है।
कुछ लोगों को ऑक्सिजन थेरेपी के लिए अस्पताल में भर्ती कराने की जरूरत पड़ती है। डॉक्टरों के मुताबिक ऐसी तकलीफ में सुधार आने में थोड़ा ज्यादा समय लग सकता है। शरीर जलन और बेचैनी से उबरने लगता है। सारा बताती हैं कि ऐसे मरीजों को ठीक होने में दो से आठ हफ्तों का वक्त लग सकता है। हालांकि उनकी कमजोरी थोड़े ज्यादा समय तक बनी रह सकती है।
क्या होगा अगर मरीज में इसके गंभीर लक्षण हों या आईसीयू जाने की जरूरत हो-
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक 20 लोगो में से किसी एक शख्स को ही आईसीयू जाने की जरूरत पड़ती है। इसमें वेंटिलेटर पर रखा जाना भी शामिल किया जा सकता है। अगर कोई शख्स आईसीयू में भर्ती हुआ है तो निश्चित तौर पर उसे बीमारी से उबरने में समय लगता है। बीमारी चाहे जो भी हो आईसीयू के बाद उस शख्स को पहले जनरल वॉर्ड में शिफ्ट किया जाता है और उसके बाद ही कहीं जाकर उसे घर जाने की अनुमति मिलती है।
फैकल्टी ऑफ इंटेंसिव केयर मेडिसिन के डीन डॉ. एलिसन पिटार्ड का कहना है कि क्रिटिकल केयर के बाद किसी भी शख्स को नॉर्मल लाइफ में लौटने में 12 से 18 महीने लग सकते हैं। अस्पताल के बिस्तर पर लंबे समय तक पड़े रहने से मांसपेशियों को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। रोगी कमजोर हो जाता है और ऐसे में मांसपेशियों में दोबारा ताकत आने में समय लगता है। कुछ मामलों में तो लोगों को दोबारा से नॉर्मल तरीके से चलने-फिरने के लिए फिजियोथेरेपी तक लेनी पड़ जाती है। आईसीयू में रहने के दौरान शरीर कई तरह के इलाज और माध्यमों से गुजरता है और ऐसे में कई बार साइकोलॉजिकल परेशानी की भी आशंका हो जाती है।
लेकिन यह बात सभी मरीजों पर लागू हो ऐसा नहीं है। कुछ लोग आईसीयू में कम वक्त तक रहते हैं जबकि कइयों को लंबे समय तक वेंटिलेटर पर रखना  पड़ता है। फिलहाल घर पर ही रहें, सरकार द्वारा दिये गये दिशा-निर्देशों का पालन करें।