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विविधा
मनोबल
विरोधियों की भी मजबूरी बन जाओ,
सूझे उन्हें ना कोई रास्ता तुम्हारे सिवा,
तुम इतने जरूरी बन जाओ।
लेना चाहेंगे तुम्हे वो अपनी कैद में,
लेकिन पहुंच ना सके तुम तक,
मीलों की वो दूरी बन जाओ।
गिराएंगे वो मनोबल तुम्हारा ,
लेकिन टिका हो जिनका सारा निष्कर्ष तुम्हारे ऊपर,
ऐसे अक्ष की तुम धुरी बन जाओ। -प्रियंका सिंह
ज्यादा दिनों तक लॉकडाउन रखना साबित होगा खतरनाक
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हनुमान जी रावणरूपी कोरोना का करेंगे नरसंहार- राजेश बाबू कटियार
कोरोना वायरस पर मोमबत्ती और दिये के तापमान का प्रभाव
प्रधानमंत्री मोदी जी ने कहा था कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे उन डॉक्टर्स, वैज्ञानिकों, एयर इंडिया, सफाई कर्मचारियों नर्सों के हौसले को बढ़ाने के लिए उनका ताली या थाली बजाकर स्वागत और हौसला अफजाई करें। लेकिन भारत देश के अंदर थाली और घण्टा पीटने की बातों में अवैज्ञानिक एवं पाखण्डवाद के कारण उसको वायरस के संबंध से पूरी दुनिया हमारी इन हरकतो पर हंसती है।
अब दिनांक 3 अप्रैल को माननीय प्रधानमंत्री जी ने फिर से 5 अप्रैल की रात को बिजली बंद करके कैंडल और दिए जलाकर वायरस को मारने की अवैज्ञानिक अफ़वाहों मुहिम शुरू कर दी।
सोशल मीडिया का इस्तेमाल करके कई लोग अलग अलग तरीके से संदेशों को पाखण्ड विज्ञान से जोड़कर अफवाहों का बाजार गर्म कर रहे हैं। जबकि मोदी जी का बिजली बंद करने का कारण एक ऊर्जा के क्षेत्र में आर्थिक मजबूती हो सकता है लेकिन वायरस को मारने में सिर्फ एक अफवाह। -डॉ अजय कुमार पोस्ट डॉक्टरल रिसर्च फेलो भारतीय प्रद्योगिकी संस्थान, दिल्ली
वायरस और लोगों का भ्रम
रामायण’ में किरदार निभा कर ‘अमर’ होने वाले अभिनेता
रामानंद सागर कृत ‘रामायण’ में शानदार तरीके से किरदार निभाने वाले कुछ पात्र जिंदा हैं तो कुछ अब नहीं रहे।
मगर ‘रामायण’ के ये चर्चित किरदार मर कर भी हमारी यादों में जिंदा हैं। इसी वजह से तो रामायण में किरदार निभा कर चर्चा में आने वाले इन पात्रों की मौत के बाद भी दुनिया को यकीन नहीं होता।
चलिए ऐसे ही कुछ ऐसे पात्र को भी याद कर लेते हैं। क्योंकि आज उन्हीं के कारण तो हम धरती पर राम, रावण, लक्ष्मण, हनुमान जैसे किरदार को देख पाए।
रामभक्त ‘हनुमान’ भी नहीं रहे
अवैतनिक पत्रकारों के हित के बारे में भी कुछ सोचे सरकारें…!
इन दिनों कोरोना का भय हर तरफ दिख रहा है। इससे बचाव का रास्ता सिर्फ सावधानी ही बताया जा रहा है जो सिर्फ लॉक डाउन के माध्यम से गुजर रहा है। लॉक डाउन होने के चलते तमाम कारखाने अथवा संस्थान अस्थाई तौर पर बन्द कर दिए गए। नतीजन मजदूरों की रोटी पर संकट आता देख सरकारों ने उनको आर्थिक मदद के साथ ही राशन आदि की व्यवस्था करना शुरू किया।
पूरा देश इस समय कोरोना से निपटने में सहयोग कर रहा है। इस दौरान पत्रकारिता के पेशे से जुड़े लोग भी अपना अहम योगदान दे रहे हैं। जिन पत्रकारों को वेतन मिल रहा है और वो भययुक्त वातावरण में अपना दायित्व निभा रहे हैं वह सराहनीय है। लेकिन, जो बिना वेतन के पत्रकारिता करते हुए संकट की इस घड़ी में अपना दायित्व निभा रहे हैं उनका कार्य अति सराहनीय है और सरकारों को इस ओर ध्यान देने की महती आवश्यकता है।
मजदूरों की मजबूरी समझें डॉ. मनोज वार्ष्णेय
विश्व में इस समय कोरोना का भय पूरी तरह फैला हुआ है। दुनिया कोरोना की गिरफ्त में हैं। सामान्य जन जीवन बाधित हुआ है। भारत भी कोरोना वायरस के संक्रमण से प्रभावित हुआ है। वायरस के संक्रमण को रोकने एवं सीमित करने की दृष्टि से मा. प्रधानमंत्री महोदय का पहले जनता कर्फ्यू और अब लॉकडाउन आदेश प्रशंसा योग्य है जिसकी पूरा विश्व सराहना कर रहा है परंतु जिस तरह से विदेश से भारतीयों को लाया गया है उससे कहीं ना कहीं हमने कोरोना से संक्रमित लोगों को अपने घर में लाकर लॉक डाउन कर दिया है क्योंकि विदेश से आने वाले भारतीय नागरिकों ने अपने आपको जांच से बचाने के लिए क्रोसिन, पेरासिटामोल जैसी दवाइयों को खाकर थर्मल जांच से बचने का प्रयास किया। इससे लगता है कि कहीं ना कहीं संक्रमण हमारे बीच ही है। दूसरी महत्वपूर्ण और चिंता करने वाली बात है हजारों मजदूरों का अपने घरों की ओर पैदल ही पहुंचने का प्रयास करना।
Read More »’ शायद प्रकृती हमसे कुछ कहना चाहती है’
’शायद प्रकृती हमसे कुछ कहना चाहती है’
’अपनो से, अपने आप से, मुलाकात करो ना !
मानो या ना मानो, कोई तो दिव्यशक्ती है,
जो आपसे, मुझसे, हम सबसे ज्यादा बड़ी है!
जो आपसे और मुझसे कहीं ज्यादा समझती और समझा सकती है!
क्या पता इस तेज ’वायरस’ के भय में
जिन्दगी का कोई ऐसा सच छुपा हो,
जो आप और मैं, अब तक नकार रहे थे ?
शायद प्रकृति हम से कुछ कहना चाह रही थी
पर जीवन की पागल आपा-धापी में
हमें वक्त ही नहीं मिलता की हम उसकी या किसी की, कुछ भी सुने।
हो सकता है कि, ये ’वायरस’ हमें फिर जोड़ने आया है – अपनी धरा से,
अपनों से और अपने आप से!
शायद हवाई जहाज का कार्बन कम हो
तो आकाश भी अपने फेफड़ों में ऑक्सीजन भर पाएगा।
शॉपिंग मॉल, सिनेमा घरों में कुछ दिन के लिए ताले लगे
तो शायद दिल के ताले स्वतः ही खुल जाएंगे।
’हो सकता है किताब के पन्नों में सिनेमा से अधिक रस मिले।
बेटियाँ प्रीति का एक संगीत…
बेटियाँ प्रीति का एक संगीत हैं ,
बेटियाँ कीर्ति का इक नयन दीप हैं ।
बेटियों से सृजित है धरा श्रष्टि ये ,
बेटियां सर्व उदित शब्दातीत हैं ।।
बेटियाँ आन हैं मान सम्मान हैं ,
कुल शिरोमणि हैं ये इससे अंजान हैं ।
मोल करते हो क्यों इनका उत्कोच से ,
ये स्वयं स्वर्ण हीरों की खान हैं ।।
प्रेम ही प्रेम तो इनका व्यवहार है ,
मोल इनका लगाते क्या व्यापार हैं ।
इनकी शक्ति सिया सी अतुलनीय है ,
ये स्वयं माता लक्ष्मी का अवतार हैं ।।
प्रेम के पंथ पर पग मिला कर चलें ,
राष्ट्र की कांति को झिलमिला कर चलें ।
इनको मारें नहीं जग में आने तो दें ,
ये शपथ आज से हम लगा कर चलें ।।