Monday, May 6, 2024
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विविधा

जूतों की खोज

आज हम जूते पहनते हैं पैरों की सुरक्षा के साथ साथ अच्छे दिखने और फैशन के चलन में हो वैसे रंग बी रंगी। सब के लिए अलग अलग डिजाइन और फैशन के जूते और अब तो आयती भी मिलने लगे हैं, जो एक स्टेटस का प्रतीक भी बन गएं हैं। किंतु उसकी उत्पति की कहानी बहुत कुछ सीखा जाती हैं।
एक राजा था, बहुत अच्छा, अपनी प्रजा के लिए बहुत काम करता था,बहुत ही प्रजा वत्सल और नेक।वह एक ही बात से व्यथित रहता था कि जब वह बाहर जाता था तो उसके पांव में मिट्टी लग जाती थी, वह मिट्टी रथ के अंदर भी लग जाती थी और रथ के साथ साथ वह उसके भवन और भवन से शयन कक्ष तक पहुंच जाती थी,

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उपराष्ट्रपति ने की खादी को राष्ट्रीय वस्त्र के रूप में अपनाने की अपील

खादी में नैतिकता और आध्यात्मिकता की आभा है – खादी में स्वदेश प्रेम और स्वदेश की भावना निहित है – एड किशन भावनानी
भारत में खादी का नाम अगर आया तो स्वाभाविक रूप से महात्मा गांधी का नाम जेहन में उभर पड़ता है। क्योंकि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में खादी का बहुत महत्व रहा है गांधीजी ने सन 1920 के दशक में गांव को आत्मनिर्भर बनाने के लिए खादी के प्रचार प्रसार पर बहुत जोर दिया था। खादी यह भारत में हाथ से बनने वाले वस्त्रों को कहते हैं खादी वस्त्र सूती, रेशम, या ऊन से बने हो सकते हैं। इनके लिये बनने वाला सूत चरखे की सहायता से बनाया जाता है। खादी वस्त्रों की विशेषता है कि ये शरीर को गर्मी में ठण्डे और सर्दी में गरम रखते हैं।…

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तोल मोल के बोल तेरी कीमत होगी अनमोल

मेरी आवाज़ ही पहचान है गर याद रहे इस गाने के बोल बहुत कुछ कहते है, आवाज़ के भीतर शब्द और भाव का संमिश्रण तोलता है इंसान की शख़्सीयत को। शब्दों की, बोल की, और वाणी की कीमत अनमोल है। पर तब…जब बोल मिश्री से मीठे हो नाप तोल कर शहद की डली से उभरे हो, शांति का संदेश हो। जंग का एलान करते जो शब्द वाग्बाण से छूटते है, ऐसे शब्द हलक की ही शोभा बने रहे तो ठीक है। वरना लबों पर बैठकर तबाही मचा सकते है।

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गुनगुनाते रहे

धुंध भरी इस जिंदगी में भी हम
एक एक कदम बढ़ाते रहे
दिल बिखर सा गया हादसों में फिर भी
उम्मीद का दिया जलाते रहे
ग़म की आंधियों ने जब भी डराना चाहा
बेवजह मुसलसल मुस्कुराते रहे
चमन में कांटों की परवाह किए नहीं
फूलों से हम खिलखिलाते रहे
अब तो तन्हाइयों से है प्यार हो गया
अपनी मस्ती में हम गुनगुनाते रहे

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हर बार मर्द ही गलत नहीं होता

आजकल सोशल मीडिया पर लखनऊ की एक लालबत्ती पर कैब ड्राइवर की पिटाई का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है। महज़ महिला होने का और सारे कानून महिलाओं के हक में है इसका मतलब ये हरगिज़ नहीं कि आप उस चीज़ का गलत फायदा उठाओ। विडियो देखकर शुरुआत में कैब ड्राइवर को ही दोषी माना जा रहा था, लेकिन 2 अगस्त को जब महिला की पिटाई का वीडियो वायरल होने लगा तब सच सामने आया। जिसमें साफ़ दिख रहा है कि ड्राइवर बेकसूर है और मैडम लड़की होने का फायदा उठा रही है।
मर्दों को एक लिमीट के अंदर ही सहन करना चाहिए अगर कोई महिला सशक्तिकरण का उदाहरण देकर आपको प्रताड़ित करती है, तो उसके खिलाफ़ आवाज़ उठाओ। और पुलिस का भी फ़र्ज़ बनता है कि ऐसे मामलों में महिलाओं की एकतरफ़ा बात ना सुनकर मुद्दे की जड़ तक जाकर मर्दों के हित में भी कारवाई करें।

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यौन शोषण से बच्चों को बचाएं

आजकल बच्चों के साथ हो रहे शारीरिक उत्पीड़न के किस्से बहुत ज़्यादा देखने, सुनने में आ रहे है। मासूम बच्चों के साथ होनी वाली शारीरिक उत्पीड़न की घटनाएं मन को झकझोर कर रख देने वाली होती है। बच्चें ना कह पाते है, न सह पाता है। बच्चों की इस दशा के पीछे जिम्मेदार माता-पिता की लापरवाही जिम्मेदार होती है। बच्चों को नौकर के भरोसे छोड़ देना, या पिड़ीत बच्चों के मनोभाव को नजरअंदाज करना ठीक नहीं होता। अगर माँ-बाप दोनों कामकाजी है और बच्चों को नौकर के भरोसे छोड़कर जाते है तो घर पर सीसी टीवी कैमरे लगाईये ताकि आपके पीछे बच्चे को किस हालात में रखा जाता है ये पता चले।

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आरोप में कितना दम

बेशक राज कुंद्रा ने गलत किया और गुनहगार है, हर जुर्म कि सज़ा उन्हें मिलनी चाहिए, पर इस मामले में ये कांड होते ही एक-एक करके जो लड़कियां आरोपों का पिटारा खोल रही है उस बात पर एक बार संदेह जरूर होता है। अब देखिए शर्लिन चोपड़ा ने उन पर सनसनीखेज आरोप लगाए हैं। शर्लिन चोपड़ा ने कथ‍ित तौर पर पुलिस को दिए अपने बयान में राज कुंद्रा पर सेक्‍सुअल असॉल्‍ट का आरोप लगाया है। शर्लिन चोपड़ा का दावा है कि राज कुंद्रा दो साल पहले 2019 में एक दिन अचानक उनके घर पहुंचे थे और उनके साथ सेक्‍सुअल मिसकंडक्‍ट यानी यौन दुराचार किया। शर्लिन का आरोप है कि राज कुंद्रा ने उन्‍हें जबरन किस किया था।

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8वीं के बाद छोड़ दिया था स्कूल, आज हैं करोड़ों के मालिक

हर बच्चे के दिमाग की रचना ईश्वर ने अलग-अलग बनाई है। कोई खूब पढ़ कर डिग्रीयां हांसिल करके भी महज़ मैनेजर की पोस्ट तक पहुँच पाते है, तो कोई आठवीं या बारहवीं कक्षा तक भी मुश्किल से पहुँच पाते है, फिर भी अपनी पसंद के क्षेत्र में अपना परचम लहरा कर माँ-बाप का नाम रोशन करते है।
ऐसी ही एक हस्ती है जिसका नाम है त्रीशनित अरोड़ा जिसने पढ़ोगे तो ही आगे बढ़ोगे उक्ति को गलत साबित कर दिया है।

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लोगों की व्यथा, पर हमें क्या

आज हमारी मानसिकता ये है कि जब तक हमें दो वक्त की रोटी और जीवन जरूरत की चीजें उपलब्ध हो जाती है तो समाज में ओरों की ज़िंदगी कैसे कट रही है उससे हमें क्या सरोकार। आज कोरोना और लाॅक डाउन की वजह से कई लोगों के सर से साया छीन गया, कई लोगों की नौकरी चली गई, कई बच्चों की पढ़ाई छूट गई कितनी संघर्षरत ज़िंदगी जी रहे है लोग। आज मुझे ऐसी ही एक परेशान लड़की का ईमेल आया जो सबके साथ साझा कर रही हूँ, और साथ ही सरकार से अपील है की और किसी भी मुद्दे से ज़्यादा जरूरी है इस वक्त लोगों को गरीबी, बेरोजगारी और भुखमरी से उपर उठाया जाए। मुझे नहीं पता इसमें कितनी सच्चाई है पर अगर सच है तो सरकार का फ़र्ज़ है कि ऐसे लोगों की परेशानी सुनकर उचित न्याय दिया जाए।
ये ईमेल कुछ इस तरह है,

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दर्द मिटा देती थी

जीवन के उलझन अपने सीखों से सुलझा देती थी
दिल के अंदर पैठ दर्द का तुम पता लगा लेती थी
अपने हाथ उठाके दुआओं में मां मेरे दर्द मिटा देती थी
वक्त ही तो है बदल जाएगा जख्म ही है भर जाएगा
अपने ऐसे ही बातों से मुझमें साहस जगा देती थी
अपने हाथ उठाके दुआओं में मां मेरे दर्द मिटा देती थी
दुनिया ने चाहे जो कहा पर तुमने मुझे हरदम समझा
अपने खट्टे-मीठे बातों से मुझे रोते रोते हंसा देती थी
अपने हाथ उठाके दुआओं में मां मेरे दर्द मिटा देती थी
बीना राय, गाजीपुर उत्तर प्रदेश

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