Monday, April 7, 2025
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गुनगुनाते रहे

धुंध भरी इस जिंदगी में भी हम
एक एक कदम बढ़ाते रहे
दिल बिखर सा गया हादसों में फिर भी
उम्मीद का दिया जलाते रहे
ग़म की आंधियों ने जब भी डराना चाहा
बेवजह मुसलसल मुस्कुराते रहे
चमन में कांटों की परवाह किए नहीं
फूलों से हम खिलखिलाते रहे
अब तो तन्हाइयों से है प्यार हो गया
अपनी मस्ती में हम गुनगुनाते रहे
ये हंसी तुम अदू छीन सकता नहीं
रायगां अपने दिल क्यों जलाते रहे
बीना राय, गाजीपुर, उत्तर