Tuesday, May 7, 2024
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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला- कोरोना से मौत पर परिजनों को मिलेगा मुआवजा

प्रवासी मजदूरों को राहत – सुप्रीम कोर्ट द्वारा मुआवजे सहित दो बड़े फैसले
कोरोना महामारी राहत पर दो दिन में सुप्रीम कोर्ट के 2 बड़े फैसले
मृत्यु पर परिजनों को मुआवजा और वन नेशन वन कार्ड, कम्युनिटी किचन से आम जनता को राहत – एड किशन भावनानी
भारत में कोरोना महामारी की इस दूसरी लहर से हर नागरिक आर्थिक रूप से त्रस्त हुआ तथा संभावित डेल्टा प्लस प्रकोप से भयग्रस्त और चिंतित है। भारतीय परिवार जिन्होंने अपनों को खोया है उसमें हम सभी और और भी बहुत दुखी हैं। कई बच्चे अनाथ हुए हैं, कई परिवारों के कमाने वाले अब नहीं रहे, उनके सामने भविष्य रूपी पहाड़ खड़ा है उसे पार करने की दुविधा में फंसे हैं। हालांकि सरकारें भी अनेक राहतें उपलब्ध करवा रही है। 28 जून 2021 को ही 6.29 लाख करोड़ का पैकेज दिए हैं। परंतु अगर हम पिछले साल की बात करें तो 14 मार्च 2020 को केंद्र सरकार ने देश में कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों की सहायता के लिए मुआवजे का एलान किया था।

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भारत में वयस्क मताधिकार की कहानी

यह बहुत से लोगों को ज्ञात नहीं है कि प्राचीन भारत के कई हिस्सों में सरकार के गणराज्य के स्वरूप मौजूद थे और बौद्ध साहित्य में कई उदाहरण हैं। चौथी शताब्दी ईसा पूर्व में, क्षुद्रक-मल्ला संघ के रूप में जाना जाने वाला एक गणतंत्र संघ था, जिसने सिकंदर महान को मजबूत प्रतिरोध की पेशकश की थी। यूनानियों ने भारत में कई अन्य गणतांत्रिक राज्यों का विवरण छोड़ा है, जिनमें से कुछ को उनके द्वारा शुद्ध लोकतंत्र के रूप में वर्णित किया गया था जबकि अन्य को “कुलीन गणराज्य” कहा गया था।

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टॉय कैथॉन 2021 – भारत को खिलौना निर्माण का वैश्विक हब बनाने की रणनीति

आत्मनिर्भर भारत अभियान में लोकल फॉर वाेकल के तहत भारत को खिलौना निर्माण में वैश्विक हब बनाने का रणनीति रोडमैप सराहनीय – एड किशन भावनानी
भारत की 135 करोड़ जनता ने कोरोना महामारी की दूसरी लहर को जन भागीदारी मंत्र के साथ रोकने में सफलता प्राप्त कर रहे हैं और तीसरी लहर को भी विफल करने और अर्थव्यवस्था को खोलने के लिए जनभागीदारी का मंत्र लगातार अपनाने के लिए संकल्पित हैं।…बात अगर हम अर्थव्यवस्था को खोलने और 5 ट्रिलियन अमेरिकन डॉलर की अर्थव्यवस्था का हमारा सपना साकार करने के लिए आत्मनिर्भर भारत, लोकल फॉर वोकल बनना है। हर भारत वासी को अपने लोकल के लिए वोकल बनना है। हमें न सिर्फ लोकल प्रॉडक्ट्स खरीदने हैं, बल्कि उनका गर्व से प्रचार भी करना है। हमें पूरा विश्वास है कि हमारा देश ऐसा कर सकता है।

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पेरणा समुदाय की महिलाएं- शादी या कमाई का ज़रिया

पेरणा जाति की महिलाओं के लिए शादी एक अभिशाप है। इस जाति की महिलाओं का शादी के बाद अपने ही शरीर पर कोई हक नहीं रहता। इस अभिशाप से निकलना इस जाति की महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल काम है। पैसों के लालच में कुछ माता-पिता अपनी बेटियों की कम उम्र में ही पेरणा समुदाय में शादी कर देते हैं।शादी के लिए पेरणा समुदाय के लोग लड़की के माता-पिता को एक रकम देते हैं। जिसकी कीमत को वसूलने के लिए ससुराल वाले अपनी बहुओं को देह व्यापार में धकेल देते हैं। यह देह व्यापार इस जाति की महिलाओं की गिरती दशा के लिए जिम्मेदार है। इस रिवाज को शादी का अर्थशास्त्र भी कहा जा सकता है। जहां शादी एक ऐसी सामाजिक घटना है जिसे पैसों के लेन-देन का एक क्रम बना दिया गया है।
कौन हैं पेरणा जाति की महिलाएं?

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ग्रामोफ़ोन से फसल बेचना हुआ आसान, हजारों किसानों ने उठाया लाभ

देश की अग्रणी एग्रीटेक स्टार्टप कंपनी ग्रामोफ़ोन पिछले पांच साल से किसानों को स्मार्ट खेती करने के लिए आधुनिक तकनीकों के माध्यम से सशक्त करने के उद्देश्य से कार्यरत है और उनके जीवन में समृद्धि ला रही है। कोरोना महामारी के चलते पिछले 2 साल सभी के लिए काफी मुश्किल रहे और किसान भाई भी इससे अछूते नहीं रहे हैं |
लॉकडाउन की वजह से सभी सब्जी व् अनाज मंडियां बंद रहीं और किसान भाईयो को अपनी फसल बेंचने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा था | उतना ही मुश्किल ये दौर हमारे अनाज व्यापारियों के लिए रहा, वो किसानो से किसी भी तरह जुड़ ना सके | कोरोना की दूसरी लहर के समय किसान अपनी रबी फसलों की कटाई में व्यस्त थे। फसलों की कटाई के बाद किसान लॉकडाउन में फसलों को कैसे बेच पाएंगे इसे लेकर फिक्रमंद थे।

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किराये की यादें _

शहरों में मीठे – नमकीन से यादों के अनगिनत मकान अधिकतर किराए के हुआ करते हैं, जिनमें रहने वाले लोग जाने- अनजाने में कभी न भूल सकने वाले लम्हें जोड़ जाते हैं या फिर टूट-टूट के बिखरती रिसती कहानियों को छोड़ जाते हैं जिनकी साक्षी बनती हैं इन कमरों की बेजान दीवारें, जो न केवल ध्यान से सुनती हैं उन बातों को जो बोल दी गयी और जो चाहकर भी न बोली गयी बल्कि अपनी खुली आँखों से इन दृश्यों को देखती भी हैं अपने अनुभवों में सहेज लेने के लिए।

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जकड़न: इतने बंधन और इतनी रूढ़ियां क्यों बनाई गई है?

मेरे समझ में यह कभी नहीं आया कि इतने बंधन और इतनी रूढ़ियां क्यों बनाई गई है? जब सांसे घुटती हैं तब यह समाज दिखाई नहीं देता। जरा सा सुकून हासिल हुआ कि लोगों को खलने लगता। इस अवसाद भरी जिंदगी से बाहर निकल कर दो पल सुकून के क्यों अखर जाते सबको? आखिर इन्हें ढोने के लिए क्यों मजबूर हूं मैं? इन्हें ढोते-ढोते इक उम्र जाया हो गई और अब भी जंग जारी है। इस बारिश ने और कोरोना के कारण हुई लॉकडाउन में “घर में रहें सुरक्षित रहें” के नियमों का मैं पालन कर रहा था और बारिश में चाय की चुस्कियों का आनंद ले रहा था। सन्नाटी सड़क और पेड़ों के पत्तों से गिरती हुई बारिश की बूंदें मेरे मन को और ज्यादा रीता हुआ सा कर रही थी और यही सब बातें मेरे जेहन में घूम रही थी।

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कोविड.19 महामारी से महायुद्ध . मरीजों और कोविड योद्धाओं को सकारात्मक प्रोत्साहन, हौसला अफजाई,तारीफ़, कोविड से जंग जीतने के कारगर मूलमंत्र

मजबूत इच्छाशक्ति, सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास कोविड.19 मरीजों और कोविड योद्धाओं की ताकतः एड किशन भावनानी

गोंदिया . कोविड.19 महामारी ने पूरे विश्व में एक भय का वातावरण निर्माण कर दिया है। आज अगर हम वैश्विक रूप से देखें तो मानवीय जीवन में खुशियां गायब हुई है और एक भय का वातावरण निर्माण हो गया है। हालांकि कुछ ही देश हैं जो कोरोना महामारी पर विजय प्राप्त करने की ओर अग्रसर हैं और वहां जश्न मनाने के समारोह हम टीवी चैनलों के माध्यम से देख रहे हैं। अमेरिका ने भी 12 से 15 वर्ष की आयु वालों को टीकाकरण की अनुमति जारी कर दी है। भारत ने भी बायोटेक को कोवैक्सीन 2 से 18 वर्ष के बच्चों पर ट्रायल की अनुमति दे दी है। और बुधवार दिनांक 12 मई 2021को इंटरनेशनल नर्सिंग डे हैं और विश्व की सभी नर्सेस को सकारात्मक प्रोत्साहन देना लाज़मी भी हैं।… बात अगर हम कोरोना महामारी से लड़ाई की करें तो चिकित्सीय तकनीकी, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हर देश कोविड.19 से जंग लड़ रहा है और कामयाबी की ओर बढ़ भी रहे हैं।

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‘करकसर दूसरा भाई’

वक्त की मार ने आज आम इंसान की हालत खस्ता कर दी है। जो खानदानी रईस है उन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता, पर मध्यम वर्ग और गरीबों का जीना मुहाल हो गया, इस महामारी और लाॅक डाउन के चलते। हमारे बड़े बुज़ुर्गो की कुछ बातें आज याद करेंगे तो अहसास होगा की बुज़ुर्गो की कही एक बात में तथ्य था की करकसर दूसरा भाई है। आज की पीढ़ी करकसर को लोभ की उपमा देती है। पर लोभ और करकसर में बड़ा फ़र्क होता है। लोभ यानी जहाँ जरूरत हो वहाँ भी आप जेब ढ़ीली ना करें, पैसों को महेत्व देते ना पेट में अच्छा खाना डाल सकें ना बिमार होने पर ठीक से इलाज करवाएं। और करकसर यानी फ़िजूलाखर्च। हर दुकान में सेल चल रहा है तो जिस चीज़ की जरूरत न हो उसे भी उठा लाएं। या चद्दर छोटी हो फिर भी पैर फैलाए।

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मां का स्थान देश.दुनिया एवं भगवान से भी ऊपरः शास्त्री

ऑल इंडिया प्रेस रिपोर्टर वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकान्त शास्त्री ने मातृ दिवस के पावन पर्व पर अपनी मां सहित देश दुनिया की सभी माताओ को प्रणाम करते हुए कहाँ की, मां बच्चों की प्रथम पाठशाला एवं गुरु होती हैए मां ही एक ऐसी गुरु है। जो अपने बच्चों को पूरे मनोयोग से वात्सल्य और प्यार के साथ शिक्षा देती है। मां साहस, धैर्य, ममता, त्याग, तपस्या, सेवा, विश्वास के मिसाल की प्रतिमूर्ति होती है और इसलिए मां सदा.सदा पूज्य थी, पूज्य है और पूज्य रहेंगी। शास्त्री ने यह भी कहा कि मां ममता के आंचल की सर्वोत्तम छाया है। माँ का सम्मान दुनिया के सभी देवी देवताओं का सम्मान है। वर्तमान कोविड.19 महामारी में मां का विशेष ख्याल रखें। शास्त्री ने कहा मेरा ऐसा कोई दिन नहीं बितता जिस दिन मां को प्रणाम न करूं और मां को याद न करूं। वरिष्ठ पत्रकार आचार्य श्रीकांत शास्त्री ने कहा कि मां का दर्जा दुनिया में सबसे ऊपर है और शायद ही कभी कोई मां के ऋण को अदा कर पाएगाए बड़ी बहन एवं बड़ी भाभी भी मां के समान ही पूजी जाती हैं और अपना कर्तव्य बखूबी निभाती है। मां के प्यार से हम तो क्या भगवान भी नतमस्तक हो जाते हैं। मां ने ही भगवान कृष्ण एवं भगवान राम आदि महापुरुषों को जन्म दिया है। शास्त्री ने यह भी कहा कि आज का पावन पर्व देश दुनिया के सभी माताओं को बारंबार प्रणाम करने का दिवस है एवं समूचे देश दुनिया की मातृ शक्तियों को आदर करने और इसको यादाश्त रखने वाला दिवस है और इसी को ही मातृ दिवस कहां जाता है और माँ की कृपा देश दुनिया के सभी भाई बहनों के ऊपर बनी रहे।

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