Sunday, May 19, 2024
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पेरणा समुदाय की महिलाएं- शादी या कमाई का ज़रिया

पेरणा जाति की महिलाओं के लिए शादी एक अभिशाप है। इस जाति की महिलाओं का शादी के बाद अपने ही शरीर पर कोई हक नहीं रहता। इस अभिशाप से निकलना इस जाति की महिलाओं के लिए बहुत मुश्किल काम है। पैसों के लालच में कुछ माता-पिता अपनी बेटियों की कम उम्र में ही पेरणा समुदाय में शादी कर देते हैं।शादी के लिए पेरणा समुदाय के लोग लड़की के माता-पिता को एक रकम देते हैं। जिसकी कीमत को वसूलने के लिए ससुराल वाले अपनी बहुओं को देह व्यापार में धकेल देते हैं। यह देह व्यापार इस जाति की महिलाओं की गिरती दशा के लिए जिम्मेदार है। इस रिवाज को शादी का अर्थशास्त्र भी कहा जा सकता है। जहां शादी एक ऐसी सामाजिक घटना है जिसे पैसों के लेन-देन का एक क्रम बना दिया गया है।
कौन हैं पेरणा जाति की महिलाएं?
यह समझना जरूरी है कि ये विमुक्त जाति की वो महिलाएं हैं, जिस जाति को अंग्रेज सरकार ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट, 1871 के तहत मुजरिम करार घोषित किया था, तब से अब तक इनकी स्थिति में कुछ खास बदलाव तो नहीं आया है परंतु हां शासक जरूर बदले हैं। यह समुदाय आज भी समाज में एक आदरपूर्ण स्थान प्राप्त करने की कोशिश कर रहा है।
गौर करने वाली बात यह है कि पेरणा समुदाय की औरतों को शादी के तुरंत बाद देह-व्यापार में नहीं धकेला जाता बल्कि पहला बच्चा होने के बाद इन्हें देह व्यापार में धकेला जाता है। यह समुदाय नजफगढ़ के रिहायशी इलाकों में रहता है, जो कि दिल्ली में स्थित है। सुबह होने से पहले 4-5 ग्राहकों के साथ देह व्यापार कर ये महिलाएं अपने ससुराल लौट आती हैं और घर के कामकाज में जुट जाती हैं। देह व्यापार की वजह से इन्हें घर के कामों से निजात नहीं मिलती। 800-1000 रुपये की कमाई के लिए यह सौदा इनके ससुराल वाले करते हैं। यही नहीं एड्स जैसी बीमारी के खतरे से भी इन्हें गुजरना पड़ता है।
कानूनी तौर पर देखा जाए तो यह एक बलात्कार है यानी एक अपराध है। इन महिलाओं की शादी एक ऐसा अर्थशास्त्र है जिसका फायदा तो पेरणा समुदाय के पुरुष उठाते हैं पर शोषित महिलाएं होती हैं। पेरणा समुदाय की महिलाएं अपनी बेटियों के बदलते भविष्य की आस में हैं कि काश! कहीं से बदलाव की कोई तो उम्मीद नजर आए।
डॉ प्रियंका जैन, नोएडा इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी