Sunday, May 19, 2024
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लोगों की व्यस्तता जलीय जीवों और नदियों पर पढ़ रही है भारी

फतेहपुरः रामकृष्ण अग्रवाल। आज विश्व नदी दिवस है, हम सब लोग भाग्यशाली है जो विश्व की एक प्रसिद्ध यमुना नदी के तट पर रह रहे हैं। लगभग 1400 किमी लंबी यह नदी गंगा की सबसे बड़ी सहायक नदी है। हम लोगो के देखते देखते ही नदी का स्वरूप बहुत तेजी से बदल गया है। नगर में जब कभी जलापूर्ति बाधित होती तो बहुत से घरों में दाल बनाने के लिए पानी यमुना जी से ही आता था। जलीय जीवों की सँख्या भी बहुत थी, कुछ मनुष्य उन्हें पकड़ने वाले थे तो कुछ उनका पोषण करने वाले भी। जब भी पीपा का पुल बन जाता तो शाम को नगर से बहुत से लोग मछलियों को आटा, लाई खिलाने जाते थे।

जिसके साथ-साथ लोग काफी दूर तक पैदल चलकर अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते थे और जलीय जीवों का पालन पोषण भी होता था लेकिन आज के इस दौर में लोग घरों में कांच के डिब्बे के अंदर तो मछली का पालन पोषण करते हैं लेकिन जो हमारी वास्तविक नदियां हैं जिससे लोगों का पालन पोषण होता है, पर्यावरण स्वस्थ रहता है और उनमें पाई जाने वाली मछलियां जोकि पानी को साफ करने का काम करती हैं उनका नहीे। आज के समय में नदियों के किनारे जाकर मछलियों को आटा और लाई खिलाना पूरी तरह से समाप्त हो चुका है बीते कुछ दिनों पहले की ही बात है कि नदी के लिए वरदान कहे जाने वाली डॉल्फिन मछली को एक जगह मछुआरों के द्वारा मार कर खाया गया था जिसके बाद वन विभाग ने उनके ऊपर कार्यवाही भी की। किशनपुर कस्बे से सटा हुआ कंचनपुर एकडला गांव है, जहां पर पंचदेव नदी मित्र सीमित के द्वारा डॉल्फिन दर्शन केंद्र का निर्माण किया गया है लेकिन आज के समय में यमुना नदी में फैले प्रदूषण के कारण डॉल्फिन पूरी तरह से उस जगह से गायब हो चुकी है इसके बाद भी अगर हम लोग इस ओर ध्यान नहीं देते तो वह समय दूर नहीं कि जब नदियां अपना अस्तित्व खो देंगी और हम अपने आने वाली पीढ़ी को क्या देकर जाएंगे।

वैसे भी अक्सर देखने को मिलता है कि खनन माफियाओं के द्वारा नदियों का सीना चीर अवैध खनन किया जाता है जिससे की नदियों का अस्तित्व तो खतरे में आता ही आता है साथ में पर्यावरण का भी बहुत नुकसान होता है इसके बाद भी जिम्मेदार अधिकारियों के द्वारा सिर्फ खोखले वादे किए जाते हैं।
वहीं आज के दौर में मछलियों को पकड़ने वाले तो दिखते हैं, पर मछलियों को दाना खिलाने की परम्परा जैस बन्द ही हो गई है। नदी का जल भी लगभग आधा हो गया है, जल की शुद्धता भी खत्म सी हो गयी है। अभी भी समय है आज विश्व नदी दिवस के उपलक्ष्य में हमें यह प्रण लेना चाहिए कि अपने घर से जो पूजन के सामग्री निकलती है उसको हम नदी में प्रवाह न करके फूल को खाद के रूप में खेतों के लिए प्रयोग करेंगे। हवन की राख निकलती है उसको भी पेड़ों में कीटनाशक के रूप में प्रयोग करेंगे। अगर सभी लोग केवल इतना छोटा सा ही प्रण लें, तो ये नदी के लिए वरदान साबित होगा।

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