Saturday, April 19, 2025
Breaking News
Home » मुख्य समाचार » डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की विरासत पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का किया आयोजन

डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की विरासत पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का किया आयोजन

लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय में 16 अप्रैल को विधि विभाग द्वारा ‘संविधान निर्माण में डॉ. बी.आर. अम्बेडकर की विरासतः विकसित भारत 2047 के लक्ष्य में आदर्श, प्रभाव एवं प्रासंगिकता’ विषय पर एकदिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। इस अवसर पर डॉ. राममनोहर लोहिया नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. अमर पाल सिंह मुख्य अतिथि के रूप में, इंस्टीट्यूट ऑफ लीगल स्टडीज, पंजाब विश्वविद्यालय के प्रो. रतन सिंह विशिष्ट अतिथि के रूप में, विधि अध्ययन विद्यापीठ की संकायाध्यक्ष प्रो. प्रीति मिश्रा और विधि विभाग की विभागाध्यक्ष प्रो. सुदर्शन वर्मा भी मंच पर उपस्थित रहीं। कार्यक्रम की शुरुआत दीप प्रज्वलन और बाबासाहेब के छायाचित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ हुई। अतिथियों का स्वागत पौधा, शॉल एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर किया गया। संकायाध्यक्ष प्रो. प्रीति मिश्रा ने सभी आगंतुकों का स्वागत करते हुए अतिथियों का परिचय कराया। इसके बाद विभागाध्यक्ष प्रो. सुदर्शन वर्मा ने संगोष्ठी की थीम, उद्देश्य एवं रुपरेखा प्रस्तुत की। कुलपति प्रो. मित्तल ने अपने संबोधन में कहा कि विकसित भारत 2047 का लक्ष्य केवल आर्थिक सशक्तिकरण नहीं, बल्कि एक समावेशी समाज और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना है, जिसमें महिलाओं, युवाओं और वंचित वर्गों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि भारत ने विपरीत परिस्थितियों में भी विश्व बंधुत्व, लोकतंत्र और नैतिक मूल्यों को कायम रखते हुए अपनी पहचान बनाई है। साथ ही युवाओं को स्टार्टअप, पर्यावरणीय संरक्षण और संवैधानिक नैतिकता के क्षेत्र में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित किया। मुख्य अतिथि प्रो. अमर पाल सिंह ने संविधान की प्रस्तावना के मूल सिद्धांत ‘स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व’ पर चर्चा करते हुए कहा कि बाबासाहेब का योगदान केवल एक जाति विशेष के लिए नहीं बल्कि समस्त भारतवासियों के लिए था। उन्होंने भगवद्गीता के श्लोक ‘यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः’ का उल्लेख करते हुए युवाओं को प्रेरणा लेने की बात कही। उन्होंने जीवन जीने का अधिकार, न्याय, संघवाद, संसदीय प्रणाली, मौलिक अधिकार, नीति निदेशक सिद्धांत और संवैधानिक लोकतंत्र पर भी विचार व्यक्त किए।
प्रो. रतन सिंह ने बाबासाहेब के सामाजिक संघर्ष, उनके आंदोलनों, लेखन और संगठनात्मक कार्यों की चर्चा करते हुए कहा कि उन्होंने हाशिये पर रहने वाले वर्गों के अधिकारों की लड़ाई लड़ी। उन्होंने ‘द प्रॉब्लम ऑफ द रुपी’, ‘एनीहिलेशन ऑफ कास्ट’ और ‘व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द मार्जिनल एंश्यर्ड क्लास इन इंडिया’ जैसी पुस्तकों का उल्लेख करते हुए उनके विचारों को रेखांकित किया।
छात्रों के लिए दो तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। पहले सत्र की अध्यक्षता डॉ. रश्वेत श्रृंखल ने की और दूसरे ऑनलाइन सत्र की अध्यक्षता डॉ. अनीस अहमद ने की। देशभर के लगभग 80 प्रतिभागियों ने विभिन्न उपविषयों पर अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किए।
समापन सत्र की अध्यक्षता भी कुलपति प्रो. राज कुमार मित्तल ने की। मुख्य अतिथि के रूप में इलाहाबाद उच्च न्यायालय, लखनऊ बेंच के न्यायमूर्ति आलोक माथुर तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनीत कुमार (वर्तमान चेयरमैन, यूपी रियल एस्टेट अपीलेट ट्रिब्यूनल, लखनऊ) मंच पर उपस्थित रहे। विभागाध्यक्ष प्रो. सुदर्शन वर्मा ने स्वागत किया और डॉ. खुशनुमा बानो ने संगोष्ठी की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
कुलपति प्रो. मित्तल ने बताया कि वर्तमान में भारत की प्रति व्यक्ति आय 2500 डॉलर है और विकसित भारत 2047 का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए इसे 10 गुना तक बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए लघु एवं मध्यम उद्योगों को प्रोत्साहित करना, शिक्षा आधारित व्यापार नीति और उचित श्रमशक्ति का निर्माण जरूरी है। उन्होंने कहा कि भारत को पश्चिमी देशों की नकल नहीं करनी, बल्कि अपने मूल्यों पर आधारित एक आदर्श राष्ट्र बनना है, जैसा कि बाबासाहेब का सपना था। मुख्य अतिथि न्यायमूर्ति आलोक माथुर ने बाबासाहेब को असाधारण समाज सुधारक, शिक्षाविद् और मानवाधिकारों के सच्चे चिंतक बताया। न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने कहा कि बाबासाहेब का सबसे महत्वपूर्ण योगदान भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करना था, जिसने सभी नागरिकों के लिए न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व सुनिश्चित किया। कार्यक्रम में डॉ. सूफिया अहमद, डॉ. मुजीबुर्रहमान, डॉ. प्रदीप कुमार, अन्य शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी भी उपस्थित रहे। संगोष्ठी का समापन धन्यवाद ज्ञापन के साथ किया गया।