Friday, September 20, 2024
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मुनि अमित सागर महाराज के मार्गदर्शन में विषापहार स्त्रोत को मिला कॉपीराईट का अधिकार

फिरोजाबाद। ध्वनि चिकित्सा से असाध्य रोगों का इलाज किये जाने को लेकर डॉ अमित जैन के द्वारा आचार्य अमित सागर महाराज के मार्गदर्शन में विषापहार स्तोत्र पर शोेध कर इसका कॉपीराइट कराया गया। जिसका भारत सरकार के द्वारा 16 जुलाई को कॉपीराइट अधिकार दिया गया। इस सफलता को लेकर एक प्रेस वार्ता का आयोजन नसिया जी मंदिर में की गई।
आचार्य मुनि अमित सागर महाराज ने कहा कि विषापहार स्तोत्र जैन सामज का प्रतिदिन पढा जाने वाला प्रमुख स्त्रोत है। 8वीं व 9वीं शताब्दी इसकी रचना काल है। रचनाकाल से लेकर वर्तमान समाय में भी इसका यश और प्रसिद्धि यथावत है। विषापहार स्तोत्र स्तुति परक काव्य, भक्तिपूर्ण है और भगवान का गुणगान है। महाकवि धनज्जय ने अपनी इस रचना को विज्ञान की कसौटी पर भी परखा है। डा. अमित जैन ने इस उपलब्धि के विषय में बताया कि विषापहार स्तोत्र से स्वास्थ्य लाभ होना कोई चमत्कार नही बल्कि विज्ञान है। जिस प्रकार कोई वैज्ञानिक अपनी बनाई हुई बाहरी प्रयोगशाला में प्रयोग के आधार पर परिणाम प्राप्त करता है। ठीक उसी प्रकार दिगम्बर मुनि, मनीषी, तत्ववेत्ता अपनी आन्तरीक प्रयोगशाला में आत्मा संचालित अतीन्द्रिय ज्ञान द्वारा अपनी अन्तर्निहित शक्तियॉं प्रकट कर लेते है। इन शक्तियों को वह बीजाक्षर अथवा यंत्र, तंत्र, मंत्र के रूप में प्रयोग कर सकते है। स्थूल शरीर रासायनिक पदार्थो का बना हुआ है। उसमें किसी प्रकार की हलचल उत्पन्न करने के लिये प्रहार की आवश्यता होती है। अदृश्य जगत में यह कार्य स्तोत्र की अदृश्य ध्वनि तरंगों के मधुर प्रहार द्वारा संभव होता है। इससे स्थूल शरीर सक्रिय हो जाता है और रोगी स्वाथ्य लाभ की अनुभूति करता है। हमारे द्वारा इसका कॉपीराइट कराया गया है। महाकवि धनज्जय की रचना विषापहार स्तोत में ध्वनि चिकित्सा की अद्भुत क्षमता है। इस दौरान सत्या जैन, शीतल जैन, मनोज जैन, प्रवीण जैन, रीनू जैन, रश्मि जैन, श्याम सुन्दर जैन, रवीश जैन, सुनील जैन, मोहित जैन आदि उपस्थित रहे।