Thursday, September 19, 2024
Breaking News
Home » महिला जगत » भाई की कलाई

भाई की कलाई

वक्त बहुत तेजी से आगे बढ़ते जाता है और हम उसके साथ बढ़ते हुए भी पीछे रह जाते हैं यादें पीछा ही नहीं छोड़ती। बचपन में मैं घर में सभी की बहुत लाडली थी। किसी भी चीज के लिए भैया को बाद में मुझे सबसे पहले पूछा जाता था। घर में कोई भी प्रसंग हो मेरी उपस्थिति हर जगह रहती थी और मैं हर जगह आगे भी रहती थी। चंचल स्वभाव के कारण मैं सभी की नजरों में चढ़ी रहती थी। चंचला कहकर सभी लोग मुझे चिढ़ाते थे और इसी वजह से मेरा नाम भी चंचला पड़ गया था। रक्षाबंधन पर भी मेरी जिद रहती थी कि सबसे पहले राखी मैं ही बांधूंगी और मेरी राखी आगे ही होनी चाहिए लेकिन मालूम नहीं था कि ये पहले और आगे का चक्कर में मुझे भविष्य में राखी बांधने के लिए कलाई नहीं मिलेगी। शादी के बाद दूरी की वजह से मेरा जल्दी-जल्दी पीहर जाना मुश्किल हो गया था, फिर जब भी समय मिलता तो साल डेढ़ साल में एक बार जाकर आ जाती थी। घर से कभी दूर ना रहने वाली मैं स्टेशन पर पापा को देखकर ही सब सामान छोड़कर उनसे लिपट जाया करती थी। वो एक आलिंगन, वह दुलार और आंखों में सुकून उस बीते वक्त की खामी को खत्म कर देता था। भैया भी मुस्कुराते हुए पीछे से सारा सामान लेकर मुझे चिढ़ते हुए घर लेकर आते थे।
मुझे याद है बचपन में भैया अपनी जेब खर्च बचाकर मेरे लिए रक्षाबंधन का तोहफा लेकर आते थे और एक महीना पहले से ही उनकी बचत योजना शुरू हो जाती थी। मैं भी बहुत खुश हो जाया करती थी उस समय। अब जाती हूं तो भाभी गिफ्ट संभाल कर रखती है मेरे लिए। यह ख्याल मुझे स्टेशन पर जब मैं अपनी बेटी को लेने गई और उसका गाड़ी से उतरकर दौड़कर चिल्लाते हुए अपने पापा के गले लग जाना मुझे बचपन की ओर खींच ले गया। दिन भर अपने भाई से लड़ने वाली और जिद करने वाली बहन को देखकर मैं बचपन की गलियों में गुम हो गई थी।
बेटियाँ बिल्कुल पायल की तरह होती हैं जो हरदम बजती रहती है। काश कि पायल को गले में पहनने का रिवाज होता लेकिन फिर शायद उसकी रूनझुन रूनझुन सुनाई नहीं देती। शायद एक संभ्रांत लबादा ओढ़े रहती। पायल की तरह हर वक्त इनकी आवाज दिल को तसल्ली देती रहती है कि हमारा आंगन सूना नहीं है। जो खामोश रहकर भी अपनी मौजूदगी का एहसास कराती है। हर त्योहार की रौनक बेटियों से ही तो बढ़ती है।
गुजरते समय के साथ-साथ और घर की जिम्मेदारियों के कारण अब मायके जाना लगभग कम हो गया था। खास खास मौकों पर ही मैं जा पाती थी। फिर भी रक्षाबंधन का त्योहार जब आता था तो मन पीछे दौड़ने लगता था। आज भी मन अंदर से उद्धिग्न था हालांकि राखी पोस्ट कर दी थी लेकिन मन मायके में ही था। मैं राखी की तैयारी करते-करते सोच रही थी कि भैया आज किसी से राखी बंधवा ही लेंगे। थाली तैयार करके बच्चों को भी तैयार होने के लिए कहा कि इतने में डोरबेल बजी। दरवाजा खोलते ही मेरी आंखें खुली रह गई। सामने भैया खड़े थे। वह बोले इस बार रहा नहीं गया तो मैं तुम्हारे पास चला आया। मैं खुशी के मारे रोने लगी। मैं आज बहुत खुश थी मेरे राखी के त्यौहार में चार चांद लग गए थे क्योंकि मेरे भाई की कलाई सूनी नहीं थी।
-प्रियंका वरमा माहेश्वरी, गुजरात