उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का प्रभाव पिछले कुछ वर्षों में घटता जा रहा है, खासकर जब से पार्टी ने लोकसभा चुनाव 2019 में बुरी तरह से हार का सामना किया और उसकी सीटों की संख्या शून्य हो गई। इसके बावजूद, पार्टी की प्रमुख मायावती ने अब उपचुनावों में अपनी सियासी जंग को पुनः तेज करने की योजना बनाई है। उनका उद्देश्य न केवल बीजेपी के ‘बी-टीम’ के आरोप को तोड़ना है, बल्कि 2027 के विधानसभा चुनाव की दिशा में भी रणनीति तैयार करना है। मायावती का हाथी अब यूपी उपचुनाव में बीजेपी और समाजवादी पार्टी (सपा) दोनों के लिए एक बड़ा राजनीतिक संकट बनता हुआ नजर आ रहा है।
लोकसभा चुनाव में पार्टी की नाकामी के बाद मायावती के लिए उपचुनावों में जीत हासिल करना बहुत महत्वपूर्ण है। इन चुनावों में बसपा को महज अपनी सियासी उपस्थिति बनाए रखने से अधिक कुछ साबित करना होगा। मायावती के सामने सबसे बड़ी चुनौती दलित वोट बैंक के बिखराव को रोकने की है, जो लगातार अन्य दलों की तरफ झुकता जा रहा है। पिछले कुछ समय से यह देखा जा रहा है कि दलित वोटर, जो पारंपरिक रूप से बसपा के समर्थन में होते थे, अब बीजेपी और सपा के प्रति अपनी वफादारी बदलने लगे हैं। इस पर काबू पाना मायावती के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रहा है।
मायावती ने इस उपचुनाव में अपनी रणनीति को पूरी तरह से बदलते हुए, कई मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवारों की जगह सवर्ण हिंदू समाज से उम्मीदवार उतारे हैं। इससे सियासी गणित में उलझाव पैदा हुआ है। उदाहरण के तौर पर, कुंदरकी, मीरापुर और कटेहरी जैसी सीटों पर सपा और बीजेपी को संभावित नुकसान हो सकता है। इन सीटों पर बसपा ने अपने उम्मीदवारों को इस तरह से उतारा है कि वह सपा के लिए बड़ी मुश्किलें खड़ी कर सकती है।
कई मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में मायावती ने मुस्लिम प्रत्याशी नहीं उतारे हैं, बल्कि सवर्ण समुदाय से अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मीरापुर और कुंदरकी सीट है। मीरापुर में सपा ने सुम्बुल राणा को टिकट दिया है, जबकि बसपा ने शाह नजर को मैदान में उतारा है। इसी तरह, कुंदरकी में सपा ने हाजी रिजवान को उम्मीदवार बनाया है, जबकि बसपा ने रफत उल्ला उर्फ छिद्दा को टिकट दिया है। यहां पर मुस्लिम वोटों का बंटवारा होने से सपा को नुकसान हो सकता है, क्योंकि इन सीटों पर मुस्लिम वोटर्स के अलावा कोई अन्य समुदाय सपा का समर्थन करने की स्थिति में नहीं दिखता।
मायावती के उम्मीदवारों का चयन इस दृष्टिकोण से भी काफी मायने रखता है कि वह मुस्लिम वोटों में बिखराव पैदा करने का इरादा रखती हैं, जिससे सपा के वोट बैंक में खलल पड़े। यही कारण है कि सपा और बसपा के मुस्लिम उम्मीदवारों के बीच मुकाबला बीजेपी के लिए एक अवसर बन सकता है। इन सीटों पर सपा के लिए बड़ी चुनौती यह है कि मुस्लिम वोटों के बंटवारे से उसे सियासी नुकसान हो सकता है। इसके साथ ही, मायावती की यह रणनीति यह भी दर्शाती है कि वह बीजेपी के लिए सियासी संकट पैदा करने की कोशिश कर रही हैं, जबकि सपा के वोट बैंक में भी दरार डालने की योजना बना रही हैं।
कटेहरी सीट पर भी बसपा ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है। यहां पर बीजेपी ने धर्मराज निषाद को मैदान में उतारा है, वहीं सपा ने शोभावती वर्मा को टिकट दिया है और बसपा ने अमित वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। इस सीट पर कुर्मी और निषाद जाति के वोटर लगभग बराबर संख्या में हैं, जो सपा और बसपा दोनों के लिए एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। हालांकि, बीजेपी ने निषाद समाज के वोटों पर भरोसा जताया है, लेकिन सपा और बसपा द्वारा कुर्मी समाज पर दांव खेलने से यह सीट बीजेपी के लिए मुश्किल बन सकती है। इस सीट पर बीजेपी के लिए चुनौती यह है कि कुर्मी वोटों में बिखराव होने से वह अपनी स्थिति कमजोर कर सकती है।
बसपा की सियासी बिसात का असर बीजेपी पर भी पड़ता दिख रहा है। पार्टी ने कई महत्वपूर्ण सीटों पर सपा का खेल बिगाड़ दिया है। करहल, गाजियाबाद, सीसामऊ, फूलपुर और मझवां जैसी सीटों पर बसपा ने सवर्ण और ओबीसी समुदाय से अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनसे बीजेपी के लिए परेशानी खड़ी हो गई है। उदाहरण के लिए, करहल सीट पर बसपा ने अवनीश कुमार शाक्य को उतारा है, जबकि सपा ने तेज प्रताप यादव और बीजेपी ने अनुजेश यादव को टिकट दिया है। शाक्य समुदाय हमेशा से सपा के खिलाफ मतदान करता आया है, और यह वोट बीजेपी के पक्ष में जा सकता था, लेकिन बसपा ने इस समुदाय के उम्मीदवार को उतारकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी हैं।
गाजियाबाद, सीसामऊ और फूलपुर जैसी सीटों पर भी बसपा ने सवर्ण और ओबीसी समुदाय के उम्मीदवार उतारे हैं। गाजियाबाद सीट पर बीजेपी ने संजीव शर्मा को ब्राह्मण उम्मीदवार के रूप में उतारा है, जबकि बसपा ने वैश्य समुदाय से परमानंद गर्ग को उतारा है। इस सीट पर वैश्य समुदाय बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, और बसपा के वैश्य उम्मीदवार से बीजेपी के लिए परेशानी पैदा हो सकती है।
सीसामऊ और फूलपुर सीटों पर भी ब्राह्मण और ठाकुर समुदाय के उम्मीदवारों के बीच मुकाबला है। सीसामऊ सीट पर बसपा ने वीरेंद्र शुक्ला को ब्राह्मण उम्मीदवार के रूप में उतारा है, जबकि फूलपुर सीट पर बसपा ने ठाकुर समुदाय से जितेंद्र कुमार सिंह को मैदान में उतारा है। इन दोनों सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों के उतारने से बीजेपी के लिए ब्राह्मण और ठाकुर वोटों के बंटवारे का खतरा उत्पन्न हो सकता है।
इसके अलावा, मझवां सीट पर भी सपा, बीजेपी और बसपा के बीच सियासी दंगल मचा हुआ है। यहां पर बसपा ने ब्राह्मण समुदाय के उम्मीदवार दीपक तिवारी को उतारा है, जबकि सपा ने निषाद और बीजेपी ने मौर्य समाज से प्रत्याशी उतारे हैं। इस सीट पर भी ब्राह्मण वोटों के बंटवारे से बीजेपी की स्थिति कमजोर हो सकती है।
मायावती की रणनीति स्पष्ट रूप से बीजेपी के लिए एक बड़े संकट के रूप में सामने आ रही है। उनका उद्देश्य केवल 2027 के विधानसभा चुनाव की तैयारी नहीं है, बल्कि वह बसपा पर लगे बीजेपी की बी-टीम के आरोपों को भी तोड़ना चाहती हैं। इसके लिए उन्होंने इस उपचुनाव में जिस तरह से सियासी चालें चली हैं, वह बीजेपी के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती हैं।
मायावती का दांव उन सीटों पर है, जहां वह बीजेपी की सियासी स्थिति को कमजोर कर सकती हैं। खासकर उन सीटों पर जहां सपा का प्रभाव है, बसपा ने अपनी उपस्थिति बढ़ाकर सपा के वोटों में खलल डाला है। साथ ही, मायावती ने मुस्लिम और सवर्ण समुदाय के बीच वोटों का बंटवारा कर बीजेपी के लिए संकट खड़ा किया है। अब देखना यह है कि क्या मायावती अपने इस सियासी खेल में सफल हो पाती हैं और क्या वह बीजेपी को अपनी बी-टीम की छवि से बाहर निकालने में कामयाब हो पाती हैं।
-अजय कुमार, उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार