गोस्वामी तुलसीदास ने रामायण के बालकाण्ड में यह चौपाई लिखी थी।
सुभ अरु असुर सलिल सब बहई।
सुरसरि कोउ अपुनीत न कहई।।
समरथ कहुँ नहीं दोष गोसाईं।
रवि पावक सुरसरि को नाईं।।
अर्थात, गंगा जी का जल निर्मल है, इसमें शुभ और अशुभ सभी जल बहता है, पर कोई उन्हें अपवित्र नहीं कह सकता। सूर्य, अग्नि और गंगा जी की भांति समर्थ को कोई दोष नहीं लगता।
गोस्वामी तुलसीदास ने भले ही यह चौपाई 500 वर्ष पूर्व लिखी हो, किन्तु आज भी शब्दशरू लागू होती है। आज भी समाज में ऐसे समर्थ और सक्षम हैं, जिनकी मनमानी पर भी समाज अपनी आंख मूंद लेना बेहतर समझता है। दबंग बदमाशों से लेकर नेता तक इसी श्रेणी में आते हैं। एक श्रेणी और भी है, कानून प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग करने वाली श्रेणी। अदालतें स्वयं समय – समय पर इस बारे में चिंता जता चुकी हैं। तमाम उदाहरण आ चुके हैं कि किस तरह से चुनिंदा लोग कानून का दुरूपयोग करते हैं।
ऐसे ही कानून प्रदत्त शक्तियों का दुरूपयोग करने का उदाहरण है महिलाओं द्वारा कमाने में सक्षम एवं समर्थ होने के बावजूद अलग होने पर पति से गुजारा भत्ता मांगना। यदि कानून की नज़र में महिला पुरुष में कोई भेदभाव नहीं है तो गुजारा भत्ता देने की जिम्मेदारी पति की ही क्यों होनी चाहिए? क्या अदालत ने कभी ऐसा फैसला सुनाया है, जिसमें सक्षम पत्नी को आदेश दिया गया हो कि वह अपने पति को गुजारा भत्ता दे? इसके विपरीत, पति को गुजारा भत्ता देने के लिए मजदूरी करने की सलाह भी अदालतें दे चुकी हैं। यह कहाँ का न्याय हुआ?
ऐसे ही एक केस की सुनवाई करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि कमाने की क्षमता रखने वाली योग्य महिलाओं को अपने पतियों से अंतरिम गुजारा भत्ता की मांग नहीं करनी चाहिए।
मामला यह था कि एक महिला ने अलग होने के बाद अपने पति से अंतरिम भरण पोषण की मांग की थी, जिसे निचली अदालत ने खारिज कर दिया था। उसने इसे उच्च न्यायालय में चुनौती दी। उच्च न्यायालय ने भी यह कहते हुए इसे खारिज कर दिया कि एक सुशिक्षित पत्नी, जिसके पास अच्छी नौकरी हो, उसे केवल अपने पति से भरण पोषण नहीं मांगना चाहिए।
दिसम्बर 2019 में दोनों की शादी हुई थी और दोनो सिंगापुर चले गए थे। कथित तौर पर उत्पीड़न के बाद महिला फरवरी 2021 में वापस लौट आई और जून 2021 में उसने भरण पोषण की याचिका दायर की। अदालत ने पाया कि महिला के पास आस्ट्रेलिया से स्नातक की डिग्री है और अपनी शादी के पहले से ही वह दुबई में अच्छी कमाई कर रही थी।
यह कानून शक्ति के दुरुपयोग का ताजा उदाहरण है कि मात्र डेढ़ साल साथ रहने के बावजूद वह पति से जिंदगी भर के लिए गुजारा भत्ता चाहती थी।
ऐसे अनेक मामले पहले भी आज हैं, जिनमें सक्षम होने के बावजूद महिला के पक्ष में फैसला सुनाया गया। इसी तरह दहेज प्रताड़ना कानून का दुरूपयोग भी जमकर होता है। अदालतों में अनेक बार यह प्रमाणित हो चुका है कि कुछ महिलाएं केवल इसीलिए दहेज प्रताड़ना का केस कर देती है, क्योंकि पति उनकी मनमानी पूरी नहीं करता।
शाश्वत तिवारी
(लेखकः स्वतंत्र पत्रकार एवं साइबर जर्नलिस्ट एसोसिएशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)