घाटमपुर/कानपुर, शिराजी। समाज व पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए अदालतों में घंटों बहस कर पसीना बहाने वाला वकील प्रदेश सरकार द्वारा नजरअंदाज किए जाने से आहत है। और उसने चेतावनी दी है, कि अगर उसकी बात शालीनता से नहीं मानी जाएगी तो वह संघर्ष करने को विवश होगा। गैर जनपद, लिंक अदालतों एवं जिला न्यायालयो में प्रैक्टिस करने वाले अधिवक्ताओं को प्रतिदिन आवागमन में नई-नई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। निजी वाहन का इस्तेमाल ना करने वाले वकील बसों में खड़े-खड़े यात्रा करने के लिए मजबूर है। पूर्व लायर्स एसोसिएशन अध्यक्ष एवं वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष कुमार श्रीवास्तव बताते हैं। कि घाटमपुर से माती, कानपुर नगर, फतेहपुर आदि जिलों के न्यायालयों में आने जाने के लिए रोडवेज बसों में सफर करना दु:खद अनुभव बनता है। अक्सर रोडवेज बस की सीटें भरी होने के कारण बुजुर्ग, वरिष्ठ एवं महिला अधिवक्ता बस में खड़े-खड़े सफर करने को मजबूर होते हैं। जब की वकालत एक सम्मानित पेशा है। समाज वकीलों को बुद्धिजीवी मानते हुए सम्मान करता है। वकील भी अपने मुवक्किल को न्याय दिलाने के लिए जी जान लगा देते हैं। वकील समाज में कानून व्यवस्था को बनाए रखने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसके बावजूद भी, सरकारों ने कभी वकीलों के स्वाभिमान सम्मान के लिए कुछ नहीं किया। उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार से समाचार पत्र के माध्यम से मांग की है। कि वह अधिवक्ताओं के सम्मान के लिए रोडवेज बसों में अधिवक्ता सीट का आरक्षण करें। जिससे वकील कम से कम बैठकर अपनी यात्रा पूरी कर सकें। घाटमपुर बार एसोसिएशन अध्यक्ष रमाकांत तिवारी एवं पूर्व उपाध्यक्ष नाजरीन एडवोकेट का कहना है, कि रोडवेज बसें अक्सर जाम में फंस जाती हैं। जिससे यात्रा घंटों लंबी हो जाती है। रोडवेज बस में अधिवक्ताओं के लिए कोई सीट आरक्षित ना होने के चलते खड़े-खड़े यात्रा करना मजबूरी बन जाता है। जब थका हुआ वकील कोर्ट पहुंचता है, तो इसका असर उसके काम में भी दिखता है। उत्तर प्रदेश सरकार को चाहिए कि रोडवेज बसों में रियायती दरों पर अधिवक्ताओं को आरक्षित सीट उपलब्ध करवाएं।