Thursday, July 4, 2024
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कोरोना की भयावहता—

लगातार फैलते हुए करोना ने इस बार भयावह स्थिति के साथ फिर से वापसी की है। लोगों में फिर से डर, तनाव और चिंता के साथ लॉकडाउन का तनाव भी हावी हो गया है। पिछले एक साल से इस महामारी से जूझ रहे लोगों को अब लॉकडाउन झेलने की ताकत नहीं बची है। यह अभी भूला नहीं जा सका है कि पिछले साल जनता कर्फ्यू और फिर संपूर्ण लॉकडाउन के चलते साधारण और निम्न स्तर के लोगों की स्थिति काफी खराब हो गई थी। अपने घर की ओर पलायन करते मजदूर सड़क पर आ गए थे और रोजी रोटी के लिए मोहताज हो गए थे। इस बार भी परिस्थितियां पहले जैसी और कई जगह तो पहले से भी खराब हैं। जब लोगों ने अपनी सामान्य दिनचर्या शुरू कर दी थी और कोविड 19 के केस काफी कम हो गए थे तब अचानक इसतरह कोविड.19 के बढ़ते हुए आंकड़ों ने फिर से सबको चिंता में डाल दिया है।तो क्या फिर से एक बार संपूर्ण लॉकडाउन विकल्प बचा हैघ् मगर संपूर्ण लाकडाउन कोई नहीं चाहता है। आर्थिक परेशानियों से जूझ रहे व्यक्ति की कमर टूट जायेगी इस लाकडाउन से। इसी लाकडाउन मे बहुतों की नौकरियां चली गई। मजदूरों की दिहाड़ी खत्म हो गई, लोग पैदल ही घर की ओर पलायन कर गए। भूख प्यास से बेहाल मजदूर मृत्यु के ग्रास बन गए। ऐसी विपदा के समय सरकार को जागरूक होकर एक ठोस व्यवस्था करनी चाहिए। कोविड.19 पर लगाम कसने के लिए कोविड स्वास्थ्य केंद्रों, बेड और कोविड संसाधनों को बढ़ाने पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए। मास्क ना पहनने पर दंड का प्रावधान सख्त होना चाहिए। सर्वजनिक समारोह को अनुमति नहीं दी जानी चाहिए और यदि महत्वपूर्ण हो तो कम से कम लोगों को जुटने की अनुमति दी जानी चाहिए। पूर्ण लॉक डाउन विकल्प नहीं है लेकिन बिना बजह घर से बाहर निकलने पर प्रतिबंध होना चाहिए।
अभी होली में मथुरा में बड़ी भीड़ जमा हुई और कुछ समय पहले मुंगेर मे भीड़ जमा हुई। क्या ये जरूरी था। क्यों नहीं सख्ती से इन्हें रोका गया।अब कुंभ की तैयारी में भीड़ जमा हो रही है क्या यह सही है। क्या ऐसे वक्त में इस भीड़ का जमा होना जरूरी है। इससे इतर एक पहलू और भी है कि क्या चुनावी रैलियों में कोरोना का डर नहीं है।जहां लोग बिना मास्क के प्रचार कर रहे हैं। सोशल डिस्टेंसिंग नाम की कोई चीज नहीं दिखाई देती। क्या वहां कोरोना का असर नहीं होगाघ् जहाँ एक आम आदमी को मास्क ना पहनने पर बेरहमी से पीटा जाता है तो वहीं इन चुनावी रैलियों में और बिना मास्क के घूमते लोगों पर कार्यवाही क्यों नहीं,यह तो ऐसी बात हो गई कि आम जनता कैदी की तरह घर में रहे और नेता, कार्यकर्ता रैली में बिना किसी डर और भेद के अपनी राजनीतिक रोटियां सेकते रहे। जनता के लिए नियम कानून कि मास्क पहनो, दो गज की दूरी रखो, घर से मत निकलो सेनिटाइजर यूज करो और नेतागण बिना किसी सुरक्षित विकल्प के नियम कानून को ताक पर रखकर घूमते रहे। किस तरह के नियम कानून है जो सिर्फ जनता पर ही लागू होते हैं नेताओं पर नहीं। इस समय सबसे ज्यादा जरूरत है कोविड.19 से लड़ने की ना कि चुनावी रैलियों द्वाराअपनी सत्ता बनाए रखने की। जब मौत के आंकड़े लगातार बढ़ते जा रहे हैं और बीमारी बुरी तरह से फैल रही है तो सबसे पहले इससे निपटने का प्रयास किया जाना चाहिए।