Saturday, June 1, 2024
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अब घर पर ही करें वट सावित्री व्रत की पूजा, ऊंचाई में छोटे मगर हूबहू बरगद(बोनसाइ) पेड़

कानपुर नगर। वट सावित्री व्रत को उत्तर भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। लेकिन शहरों में अब गली-मोहल्लों में रहने वाले दूर कॉलोनियों में जाकर बस गए है। जो महिलाएं फ्लैटों में रहने चली गई हैं वे भी कई किलोमीटर दूर वापस अपने पुराने इलाके में पूजा करने जाती है। पहले पूरे परिवार और पड़ोसी, परिचितों के साथ जिस वटवृक्ष की पूजा करते थे, लेकिन घर बदल जाने से आज भी उसी इलाके में पूजा करने के लिए जाने को मजबूर हो रहे हैं। कारण नई जगह, नई कॉलोनी में वटवृक्ष ही नहीं है, आखिर पूजा करें तो कहां करें। एक ओर जहां महिलाएं दूर-दूर से पुरानी बस्ती के वटवृक्ष की पूजा करने जाती हैं वहीं कुछ महिलाओं ने गमले में लगे वटवृक्ष (बोनसाई) को विकल्प के रूप में अपना लिया है।
मेहरबान सिंह का पुरवा कानपुर निवासी गृहणी महिला निशा राठौर ने बताया वह पिछले 05 वर्ष से ऊंचाई में छोटे मगर हूबहू बरगद(बोनसाइ) के पेड़ की पूजा कर रही है। 10 जून गुरुवार को भी कोविड-19 कोरोना प्रोटोकाॅल के तहत घर पर ही रहकर पूजा की तैयारी करके विधिवत पूजा की। उन्होंने इसके साथ यह भी बताया कि बोनसाई कला विशेषज्ञ के माध्यम से उन्होंने अनेक प्रजाति के पेड़ों को गमले में भी उगाया है। जब महिलाओं ने यह देखा कि एक गमले में बरगद, पीपल, फायकस पांडा, फायकस लिपस्टिक, सायकस जैसे पेड़ आसानी से फल फूल रहे हैं। ऊंचाई में भले ही छोटे हैं लेकिन हूबहू वैसे ही हैं तो उनमें से कुछ महिलाओं ने वटवृक्ष को लगाने की गुजारिश की। साथ ही बताया कि धार्मिक मान्यता के चलते उन्हें पूजा करने के लिए दूर जाना पड़ता है। यदि गमले में वट वृक्ष उग जाए तो वे घर पर ही पूजा कर सकती हैं।
क्यों की जाती है बरगद के वृक्ष की पूजा?
कथा व्यास पंडित पवन शास्त्री अयोध्या वाले ने बरगद के वृक्ष की पूजा के बारे में बताया कि हिंदू धर्म में बरगद का वृक्ष पूजनीय माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास होता है। इस वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा शुभ मानी जाती है। वट पूजन का महत्व अपने आप में अतुलनीय है वट एक विशाल वृक्ष और दीर्घायु वाला होता है वट वृक्ष का पूजन करते समय पति व परिवार के लिए समृद्धि विशालता दीर्घायु की कामना करते हुए माताएं वटवृक्ष में एक विशेष प्रकार का धागा मूली को लपेटते हैं और भावना करते हैं कि जिस तरीके से यह वटवृक्ष विशाल और दीर्घायु है उसी तरीके से हमारे घर परिवार में विशाल और समृद्धि की कामना करते हैं। वट अमावस्या पूजन के दिन चना, रोली, मोली, पकवान इत्यादि वट वृक्ष का पूजन किया जाता है। जेष्ठ मास की कृष्ण पक्ष अमावस्या को यह व्रत संपन्न पूर्ण होता है उस समय गर्मी का प्रभाव सबसे ज्यादा होता है। वट वृक्ष हमें शीतलता को प्रदान करता है वही शीतलता की कामना करते हुए अपने घर में प्रसन्नता और आनंद समृद्धि के लिए इसका पूजन का विशेष महत्व है। लोक कथा के अनुसार सावित्री ने अपने मृतक पति सत्यवान को इसी पेड़ की छाया के नीचे छोड़कर के यमराज का पीछा किया यमराज के समझाने पर भी जो सावित्री वापस नहीं आई तो यमराज ने तीन वरदान दिए उसमें से संतान होने का वरदान मांगा तो सावित्री ने कहा बिना पति के संतान तो हो नहीं सकती तो चना के रूप में सत्यवान के प्राण को यमराज जी ने वापस किया तब से आज तक सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति के दीर्घायु के लिए उस वट वृक्ष का पूजन करते चली आ रही है। साइंस के अनुसार भी वट वृक्ष है सर्वाधिक प्राण ऊर्जा को प्रदान करने वाला वृक्ष है। हमारे समाज में जिन वृक्षों का पूजन किया जाता है पूजन के बहाने से उनकी देखरेख रखरखाव में सहयोग प्राप्त होता है।