Wednesday, June 26, 2024
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शाकाहार क्यों?

कुछ लोग के मन में हमेशा एक द्वंद होता रहता हैं कि क्या खाया जाए, शाकाहार या मांसाहर इनका हल ये पढ़ने के बाद अपने आप समझ आ जायेगा। ग्लोबल शाकाहार दिन के उपलक्ष में ये तथ्य समझना जरूरी हैं।
मांसाहारी कभी कभी शाकाहारी लोगो को घासफूस खाने वाला कहते हैं, उसके विपरीत शाकाहारी लोग मांसाहारी लोगो को प्राणियों के प्रति क्रूर कहते हैं। लेकिन सब को अपने आहार का चयन करने का हक हैं लेकिन शाकाहार के फायदों को जानना भी आवश्यक हैं। दुनिया की 740 करोड़ की जनसंख्या में 50 करोड़ लोग ही पूरी तरह से शाकाहारी हैं ऐसा फ्रेंड्स ऑफ अर्थ संस्था का कहना हैं।संस्था के मुताबिक शाकाहारियों को अल्प संख्यक कह सकते हैं। इसी संस्था के मुताबिक 2014 में किए गए मीट एटलस की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में सबसे ज्यादा शाकाहारी बसते हैं। भारत में 31% लोग शाकाहारी हैं। अमेरिका की नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के नए रिसर्च के मुताबिक अगर शाकाहार को बढ़ावा मिले तो धरती को ज्यादा स्वस्थ, ज्यादा ठंडा और ज्यादा दौलतमंद बनाया जा सकता हैं।
दुनिया में तीन तरह के आहार करने वाले लोग हैं। पहला सम्पूर्ण शाकाहारी जिसमे प्राणियों की प्रोडक्ट्स भी खाई जाती हैं जैसे दूध आदि।दूसरे मांसाहारी जो प्राणियों की बनी बानगी खाते हैं और तीसरे वेगन जो प्राणियों की प्रोडक्ट भी नहीं खाते जैसे दूध और उसमें से बनी चीजें।एकेडमी ऑफ़ साइंसेज के मुताबिक अगर शाकाहार को ज्यादा जगह दी जाएं तो दुनियां में हर साल होने वाली 50 लाख मृत्यु को टाला जा सकता हैं,अगर वेगन आहार से तो हर साल करीब 80 लाख लोगो को बचाया जा सकता हैं।
वैसे ऐसा करना मुश्किल तो हैं ही। भोजन में मांसाहार की कमी करने से दुनिया भर में हर साल ६६७३००० करोड़ रुपए बचाए जा सकते हैं।ग्रीन हाउस गैसेस एमिशन में कमी आने से ३३३६००० करोड़ रूप्ए की बचत होगी।ऐसे हालात में विकासशील एशियाई देशों को,जो इन खेत उत्पादकों की फसलें लेते हैं उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो जायेगी।फल और सब्जियों के उत्पादन बढ़ने से हमारे देश को भी आर्थिक लाभ होगा।स्टडी के मुताबिक शाकाहारी आहार से कम कैलरी वाले आहार से मोटापे की समस्या भी कम होगी, जिससे लेटिन अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की पब्लिक हेल्थ के उपर होते खर्च में कमी आयेगी।
ये इतना भी आसान नहीं हैं,इसमें फल और सब्जियों का प्रमाण 25% बढ़ाना होगा और रेड मीट की आहार में 56% कमी लानी पड़ेगी।हर इंसान को 15% कैलोरी कम लेनी पड़ेगी।अगर एकदीन में 2000 के बदले 1700 कैलोरी लेनी होगी।
मांसाहार अपने लिए फायदे मंद हो सकता हैं लेकिन प्रकृति के लिए नहीं। मीट प्रोडक्शन के द्वारा होता एमिशन वो दुनिया में होने वाले एमिशन का 20% से भी ज्यादा हैं। दुनिया भर के वाहन, विमान, ट्रेन और दूसरे वाहनों से भी ज्यादा हैं।एक अनुमान के मुताबिक जानवरों को पालने में जो भोजन दिया जाता हैं वही मनुष्यों को दिया जाए तो दुगुने लोगो को मिल सकेगा। एक किलो पोर्क पाने के लिए करीब 8 किलो भोजन जानवरों को दिया जाता हैं। जब कि एक किलो चिकन पाने के लिए एक मुर्गे को 3.5 किलो दाने मुर्गे को खिलाया जाता हैं। इसी तरह मीट प्रोडक्ट को टेबल पर लाने के लिए सब्जियों के मुकाबले 100 गुना ज्यादा पानी का इस्तमाल किया जाता हैं। आधा किलो आलू उगने के लिए 127 लीटर पानी का इस्तमाल होता हैं जब की आधा किलो मांस के उत्पादन में 1000 लीटर से ज्यादा पानी का उपयोग होता हैं। जबकि आधा किलो गेहूं का आटा बनाने में 581 लीटर पानी का उपयोग होता हैं। 1 किलो मांस के उत्पादन से जो एमिशन होता हैं वह तीन घंटे कार चलाने के एमिशन के बराबर हैं।
मीट प्रोडक्शन के लिए पाले जाने वाले बड़ी संख्या में प्राणियों को पालने के लिए जो जगह वह जंगलों को काटके बनाई जाति हैं। ऐसे जंगल भी कम होते जा रहे हैं। जब मांसाहार की जरूरत बढ़ेगी वैसे वैसे उसे बड़े पैमाने में उत्पाद करना पड़ेगा, उसके लिए और बड़ी जगहें चाहिए होगी।ऐसे ही जंगल कम होने से ग्रीनहाउस के ज्यादा असर तले पृथ्वी आती जायेगी और ऐसे ही ये विषचक्र चलता जायेगा जिस की दूरगामी असर देखने को मिलेगी।
अब हमे खुद ही तय करना हैं अपने आहार के बारे में
जयश्री बिरमी, अहमदाबाद