वैक्सिनेशन शिविर में बिना मास्क,बिना ग्लब्स और बिना सेनेटाइजर के दिखे चिकित्सक
रायबरेली, पवन कुमार गुप्ता। गांवों में चल रहे टीकाकरण अभियान में लोगों को लाने की जिम्मेदारी आशा और एएनएम की है, लेकिन उनकी तमाम कोशिशों के बाद भी वैक्सीन कैंप में लोग क्यों नहीं आ रहे हैं, आखिर उन्हें झिझक क्यों है?
कोरोना महामारी की दूसरी लहर में वायरस ग्रामीण भारत में फैल गया था और गांवों में कोविड के कई मामले सामने आ रहे थे।ग्रामीण आबादी का टीकाकरण करने के लिए सरकार गांवों में नि:शुल्क टीकाकरण शिविर लगा रही है, कई गांवों में तो दूसरी, तीसरी बार भी शिविर लगाया गया लेकिन फिर भी लगभग 200 की ही संख्या पहुंचती हैं वैक्सिनेशन के लिए।
जब गांव के स्थानीय लोगों से बात की गई तो उन्होंने कहा कि जब हमने वैक्सीन की पहली खुराक ली थी उसके बाद उन्हें बुखार का अनुभव हुआ था। हालांकि उस समय शिविर में वैक्सीनेट हुए लोगों को बुखार की कारगर दवा पैरासीटामोल टेबलेट दी गई थी। फिर भी उनके मन में टीके के प्रति में संदेह पैदा हो गया था। परंतु अब तो वैक्सिनेशन के बाद शिविर दवा भी नहीं दी जाती है। अब संदेह होना तो लाजमी है।इसके पहले मैं टीका लगवाने के बाद बीमार हो गया था। तेज बुखार था और कमजोरी के कारण काम भी नहीं कर सका।
पिछली बार नगर पंचायत कार्यालय के टीकाकरण शिविर में भी वैक्सीनेट हुए लोगों को बुखार की दवा नहीं दी गई थी और इस बारे में सीएचसी अधीक्षक डॉक्टर एम.के. शर्मा ने बताया था कि इस समय सीएचसी में पेरासिटामोल टेबलेट की शॉर्टेज चल रही है। फिलहाल अब अधिकतर मरीजों को इस दवा की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। वहीं आज ऊंचाहार क्षेत्र के मनीरामपुर प्राइमरी स्कूल में सीएचसी द्वारा वैक्सीनेशन कैंप लगाया गया था जिसमें लगभग 117 लोग वैक्सिनेट हुए। कैंप में आए हुए सीएचसी के सहायको ने अधिक जानकारी देने से मना किया और कहा गया कि सीएचसी अधीक्षक से ही अधिक जानकारी प्राप्त करें।