Saturday, May 4, 2024
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संकीर्ण विचारधारा का बोझ

पार्वती की शिक्षा ग्रहण करने और दायित्वों के निर्वहन के साथ नौकरी पाने में अत्यधिक विलंब हुआ, पर जीवन की अभिलाषाओं का कोई अंत नहीं। शिक्षा, कैरियर और अब विवाह की बारी। पार्वती की अत्यधिक उम्र होने के कारण अब उसे विवाह में आने वाली कठिनाइयों से जूझना पड़ रहा था। परिवार को पैसो की अत्यधिक आवश्यकता थी इसलिए पार्वती ने नौकरी को पहले प्राथमिकता दी और विवाह को बाद में। अब सरकारी नौकरी के बाद शुरू हुआ विवाह तय करने का सिलसिला। पार्वती नौकरी के चलते ही ट्रान्सफर के बारे में भी सोचा करती थी। इसी कारण उसने यह प्रक्रिया भी शुरू कर रखी थी।
रिश्तों के कार्यक्रम में एक लड़के के साथ बात बनती सी नजर आई, पर समस्या उसमें आजीवन ननद को साथ रखने की थी। पर शायद ज्यादा उम्र में सामंजस्य के अलावा कोई रास्ता नहीं बचता, यह भी सच है। अगले रिश्ते के क्रम में ऐसे रिश्ते वाले आए जोकि पार्वती की तनख्वाह में रुचि रखते थे। उनके प्रश्नों की श्रंखला में यह प्रश्न था की पार्वती अपनी तनख्वाह किसे देती है, विवाह के पश्चात किसे देगी वगैरह-वगैरह। उनका पूरा ध्यान केवल रुपए-पैसे के बहीखाते में था। उनका लालची स्वभाव पार्वती भाप गई। अगले रिश्ते का क्रम सुकून भरा था। सारी बातें अनुकूल बैठ रही थी। विवाह की तारीख भी तय होने वाली थी, पर यह क्या था लड़के वालों ने रिश्तेदारों के कहने में आकार रिश्ता तोड़ दिया। उन्हें लगा की पार्वती ने ट्रान्सफर के लिए आवेदन दे रखा है। कुछ समय बाद वह लड़के को लेकर माता-पिता के साथ रहने लगेगी। एक और रिश्ते की श्रंखला में उसकी शारीरिक बनावट का माखौल बनाया गया। कहा गया की दोनों की जोड़ी सही से मेल नहीं खा रही है। लड़के की भी अत्यधिक उम्र होने के बावजूद उनको जोड़ी नंबर वन चाहिए थी। एक रिश्ते में लड़के द्वारा पार्वती के दुबले होने की बात सामने रखी गई। तब पार्वती ने यह कहकर इन्कार कर दिया कि यदि विवाह के पश्चात मेरा वजन बढ़ जाता तो क्या आप मुझे अस्वीकार कर देते।
इन रिश्तों का सामना करते-करते पार्वती का मन अंदर से बहुत व्यथित हुआ। वह सोच रही थी कि समाज अभी भी संकीर्ण विचारधारा के बोझ में दबा हुआ है। हम आधुनिकता की बड़ी-बड़ी बातें करते है पर वस्तुस्थिति को समझने और उसे अपनाने के लिए हम आज भी तैयार नहीं है। इस संकीर्ण विचारधारा के साथ हम समाज को उन्नति के नवीन आयाम नहीं दे सकते। इस लघुकथा से यह शिक्षा मिलती है कि स्थितियों के अनुरूप हमें चीजे अनुकूल बनानी होगी। बेवजह की मीन-मेख से हम अनायास ही किसी के मन को आहत करते है। कई बार केवल अपनी उदार सोच के साथ ही हम नवीन खुशियों का संचार और स्वागत कर सकते है।
डॉ. रीना रवि मालपानी (कवयित्री एवं लेखिका)