Saturday, June 29, 2024
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लेख/विचार

हमारे समाज की सोच बनाम स्त्री का अस्तित्व

ज़माना बेशक आज बहुत आगे बढ़ चूका हो, मगर स्त्रियों के बारे में पुरुषों के द्वारा कुछ जुमले आज भी बेहद प्रचलित हैं, जिनमें से एक है स्त्रियों की बुद्धि उसके घुटने में होना… “क्या तुम्हारी बुद्धि घुटने में है”
ऐसी बातें आज भी हम आये दिन, बल्कि रोज ही सुनते हैं…. और स्त्रियाँ भी इसे सुनती हुई ऐसी “जुमला-प्रूफ” हो गयीं हैं कि उन्हें जैसे कोई फर्क ही नहीं पड़ता इस जुमले से।
हम कहते हैं कि हिंदुस्तान पहले से बहुत बदल गया है। आज महिलाओं की स्थिति सुदृढ़ है मगर है कहां सुदृढ़ स्थिति है यदि सुदृढ़ स्थिति है तो आए दिन किसी भी लड़की के साथ बलात्कार जैसी घटनाएं क्यों घटित होती है…?
क्यों कहीं पर मार कर फेंक दी जाती है ? चाहे फिर वह जवान हो या 6 महीने की बच्ची ही क्यों ना हो क्यूँ नहीं सुरक्षित है वह आज भी जबकि वर्तमान समय तो पूरा का पूरा नियम कानून संविधान से भरा पूरा है फिर ऐसी स्थितियां समाज में वरिष्ठ जनों और विद्वानों के रहते हुए कैसे उत्पन्न होती है …?
फिर कहते हैं कि पुरातन से आधुनिकता की ओर रुख कर रहे हैं मगर आज यथा स्थिति को देखते हुए बड़े ही सोचनीय दयनीय शब्दों में कहना पड़ता है कि आखिर किस समाज में जी रहे हैं हम, भले ही पाश्चात्य सभ्यता में हम लिप पुत चुके हैं और निरंतर इस ओर अग्रसर है, मगर हम अपने संस्कारों की रवायत भूलते जा रहे हैं। अपनी मां बहन बेटियों के प्रति सम्मान का भाव कहीं पर खोते जा रहे हैं आखिर किस के मद में चूर हो गए।

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विश्व महासागर दिवस- जीने के लिए महासागरों को बचाना होगा

जीवन में महासागरों के महत्व को समझते हुए पर हम पृथ्वी वासियों का ध्यान महासागरों के अस्तित्व को अक्षुण्ण रखने की ओर अवश्य ही जाना चाहिए। वर्तमान में मानवीय गतिविधियों का असर समुद्रों पर भी दिखने लगा है। समुद्र में ऑक्सीजन का स्तर लगातार घटता जा रहा है और तटीय क्षेत्रों में समुद्री जल में भारी मात्रा में प्रदूषणकारी तत्वों के मिलने से जीवन संकट में हैं। तेलवाहक जहाजों से तेल के रिसाव के कारण समुद्री जल के मटमैला होने पर उसमें सूर्य का प्रकाश गहराई तक नहीं पहुँच पाता, जिससे वहाँ जीवन को पनपने में परेशानी होती है और उन स्थानों पर जैव-विविधता भी प्रभावित हो रही है। महासागरों के तटीय क्षेत्रों में भी दिनों-दिन प्रदूषण का बढ़ता स्तर चिंताजनक है।

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मैंने तुम पर भरोसा किया, तुमने किया विश्वासघात

आदमी अपने जीवन काल में क‍िसी न क‍िसी जानवर को पानी प‍िलाता ही है या क‍िसी न क‍िसी रूप में उसे खाना देता ही है। ऐसे में मनुष्‍य और इन जानवरों के बीच कम से कम एक भरोसे का रिश्‍ता तो रहा ही है। बेशक कोई व्‍यक्‍त‍ि हाथी को अपने घर में नहीं पालता, लेक‍िन जब आदमी हाथी को छूता है तो दोनों के बीच एक भरोसा तो होता ही है क‍ि दोनों में से कोई भी क‍िसी को नुकसान नहीं पहुंचाएगा।
देश में गजानन के स्‍वरुप की प्रतीक एक गर्भवती हथि‍नी को भोजन के रूप में पटाखे खिलाकर उसके पेट में पल रहे भ्रुण के साथ उसके जीवन को बेहद ही बेरहमी के साथ ध्‍वस्‍त करने की हदृयव‍िदारक घटना उसी देश में होती है, जहां पुण्‍य-प्रताप के ल‍िए पक्षि‍यों को दाना-पानी और चींटी को आटा खि‍लाया जाता है। गाय और कुत्‍तों को रसोई घर में बनी पहली रोटी खि‍लाई जाती है।

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आत्मनिर्भरता से पहले जागरूकता की जरूरत

आज देश में आत्मनिर्भरता की मुहिम जो चल रही है वह अपने आप में एक उत्कृष्ट पहल है जिसे बहुत पहले ही चलाया जाना चाहिए था। जब स्थितियां सामान्य थीं लोगों का अर्थतंत्र गतिशील था लोग आत्मनिर्भरता को हासिल करने में सक्षम थे तब यह मुहिम शायद काफी ज्यादा प्रभावी होती मगर आज देश ही नहीं बल्कि पूरा विश्व इस कोरोना महामारी की चपेट में है और सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था चरमाराई हुई है लोगों के रोजगार छिन गए हैं लोग भूखे-प्यासे दर-दर भटक रहे हैं निम्न व मध्यमवर्गीय लोगों में तो इतनी भी क्षमता नहीं कि वो खुद को ही संभाल सकें ऐसे में आत्मनिर्भरता की बात तो बेमानी होगी।
इस आत्मनिर्भरता की रोटी को थाली में परोसने से पहले उसे इस रोटी को खाने के तरीके से अवगत कराया जाना चाहिए था क्योंकि बिना जागरूकता के कोई भी अभियान का सफल होना नामुमकिन है। जागरूकता किसी भी अभियान के लिए वह संजीवनी बूटी है जो शून्यावस्था के अभियान को एकजुट होकर शिखर पर पहुंचा देती है।

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विकास का आधार स्तंभ प्रवासी श्रमिकों का पलायन

कोरोना का कहर पूरे विश्व में छाया है कोरोना को फैलाव को रोकने के लिए सरकार सम्पूर्ण भारत मे लॉकडाउन कर रखा है जिससें पूरा देश
थम गया है सभी गतिविधियां बंद है हवाई, रेलवें, सड़क यातायात बंद है सभी शहरों व गांवों की सड़कें और गलियां सुनी पड़ी हैं। जो जहाँ है वो वही ठहर गया सभी देशवासी अपने घरों में कैद जीवन को जी रहे है सरकार ने मुलभूत आवश्यकओं के लिए राशन, दवाई आदि की दुकानों को सोसल डिसटेंस के साथ खोलने और होम डिलीवरी की सुविधा दी है।
लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है जो शहरों में दिहाड़ी कर शाम को अपने तथा अपने परिवार की रोटी का जुगाड़ करता था वह कहां? जाए। इन प्रवासी मजदूरों की जेब में न तो पैसे हैं और न ही खाने के लिए घर में राशन घर में बैठकर कोरोना वायरस से जंग जीतने के लिए कोई विकल्प नहीं है। लॉकडाउन के कारण सारा कामकाज ठप है। व्यवस्था अस्त-व्यस्त है। दिहाड़ीदार मजदूर जो छोटे-मोटे उद्योगों, दुकानों व ढाबों पर कार्य करते थे उनके पास भी कुछ करने को नहीं है। उनके पास काम नहीं तो पैसा नही खाने के लाले उपर कमरे के किराए के लिए प्रेशर भूखे और बदहाली में कोरोना, संक्रमण और जमा पूंजी के खत्म होने के साथ मौत के काउंडाउन के बीच अपने भूख प्यास से बिलखते परिवार की जान की सुरक्षा और भविष्य की चिंता और हालात से मजबूर जाएं तो जाएं कहां! चूंकि लॉकडाउन की अवधि धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है इससे प्रवासी मजदूरों मे अनिश्चितता के डर और घबराहट की स्थिति में शहरों से पलायन कर अपने घर-गांव वापस जाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं है।

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उत्तर प्रदेश के गुणवत्तापूर्ण शिक्षक चयन में अराजक तत्वों का अड़ंगा

जैसा कि हम जानते हैं उत्तर प्रदेश की ६९००० शिक्षक भर्ती आज करीब दो सालों से किसी न किसी विवाद को लेकर अधर में लटकी हुई है। आज ट्विटर के ट्रेंड में यह मुद्दा जोर-शोर से उठ रहा है और कुछ नकारात्मक लोगों के बीच बहुतायत सकारात्मक जवाब भी देखने को मिल रहा है। आज जहाँ कोरोना वायरस के चलते लॉकडाउन ने बहुतों को बेरोजगार बना दिया ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार का बेरोजगारों को नौकरी देने का फैसला वैश्विक स्तर पर उत्तर प्रदेश सरकार के सकारात्मक दृष्टिकोण एक अहम चर्चा का विषय बन चुका है जिसकी मिसाल पूरी दुनिया में दी जा रही है। वहीं इस गुणवत्तापूर्ण भर्ती से नाखुश कुछ अराजक तत्व व चंदाखोरों की वजह से इस भर्ती में लगातार बाधा भी उत्पन्न की जा रही है जबकि भर्ती की पूरी प्रक्रिया नियमावली व न्यायालय के आदेशानुसार ही चल रही है।
भर्ती में असफल हुए छात्र तथा चंदाखोरों की मिलीभगत से इस ६९००० शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में गलत नियमावली का हवाला देते हुए सोशल मीडिया पर बेतुकी बयानबाजी व नोंक-झोंक देखने को मिल रही है। जबकि न्यायालय के आदेशानुसार ही जिला आवंटन सूची को जारी करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार ने काउंसलिंग की प्रक्रिया जैसे ही शुरू की कुछ अराजक तत्वों ने भर्ती पर फिर से स्टे लेकर भर्ती प्रक्रिया को रोक दिया। ऐसे में आप ही बताएं कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षक चयन करना गलत है क्या? जबकि शिक्षा ही मानव को असल मानव बनाने का कार्य करती है अगर हमारे पास योग्य शिक्षक ही नहीं होंगे तो एक सुदृढ़ व सुयोग्य समाज की स्थापना कैसे होगी।

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डरिये मत, हर ब्रेन ट्यूमर कैंसर नहीं होता -डॉo सत्यवान सौरभ

विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस प्रतिवर्ष ‘8 जून’ को मनाया जाता है। विश्व भर में हर दिन एक लाख में से दस लोग ब्रेन ट्यूमर के कारण मरते हैं। ‘विश्व ब्रेन ट्यूमर दिवस’ वर्ष 2000 से प्रतिवर्ष 8 जून को मनाया जाता है। इस दिवस को सबसे पहले जर्मन ब्रेन ट्यूमर एसोसिएशन द्वारा मनाया गया था। यह ब्रेन ट्यूमर के बारे में लोगों के बीच शिक्षा और जन-जागरूकता प्रसारित करने वाला एक गैर लाभकारी संगठन है।
भारत में ब्रेन ट्यूमर की व्यापकता और प्रसार बढ़ता जा रहा है। कैंसर के अध्ययन के अनुसार, ब्रेन ट्यूमर लड़कियों में सामान्यत: पाया जाता है। हालांकि स्थितियों के बीच कुछ भिन्नता हो सकती है। भारत सरकार ने ब्रेन ट्यूमर की रोकथाम, स्क्रीनिंग, रोग का जल्दी पता लगाने, निदान और देखभाल उपचार प्रदान करने के लिए अनेक उद्देश्यों की पूर्ति के साथ ‘राष्ट्रीय कैंसर नियंत्रण कार्यक्रम’ शुरुआत की है।

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छू लेने दो अब मुझे शिखर

रिश्तों का जंजाल हटा, हो जाऊं मुखर, हो जाऊं प्रखर,
अनुबंधों के कटिबन्ध हिले, छू लेने दो अब मुझे शिखर।
सम्बन्धों के लिए समर्पण ही, कर गया छलावा संग मेरे,
मैं रही सरलऔर सहज सदा, बिछे कपट जाल सम्मुख मेरे।
सम्बन्धों पर विश्वास सुदृढ, मेरी आँखों को भिगो गया,
नित धूल झौकता आंखों में, जीवन कटुता में डुबो गया।
अब सम्बंध सुहाते नहीं मुझे, हो गयी वितृष्णा इन सबसे,
अपनों ने ही किये प्रपंच, तो करूं शिकायत अब किससे।
खुद से ना कोई उपालम्भ, हर फर्ज निभाया शिद्दत से,
अपने ही छलते रहे सदा, खुद अपनी अपनी फितरत से।
रही अडिग जीवन पथ पर, बाधाएं विचलित कर न सकी,
हर मार्ग मिला, हर लक्ष्य मिला, सफलता ने मानों राह तकी।
कुसुम सिंह अविचल

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खाद्य सुरक्षा अब और भी ज्यादा जरूरी -प्रियंका सौरभ

रोटी, कपड़ा और मकान को मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं कहा जाता है। इन मूलभूत आवश्यकताओं की आवश्यकता को पूरा करने के लिए इंसान बहुत मेहनत करता है। भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियां आम जनता को सुरक्षित भोजन के महत्व के बारे में पर्याप्त जानकारी प्रदान करने के लिए कड़ी मेहनत कर रही हैं। संयुक्त राष्ट्र (यूएन) ने अपनी दो एजेंसियों, खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के प्रयासों का नेतृत्व करने के लिए सौंपा है। दूसरा विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस (डब्ल्यूएफएसडी) 7 जून 2020 को मनाया जाएगा, ताकि खाद्य सुरक्षा, मानव स्वास्थ्य, आर्थिक समृद्धि, कृषि, बाजार पहुंच, पर्यटन में योगदान को रोकने, पता लगाने और प्रबंधन करने में मदद करने के लिए ध्यान आकर्षित किया जा सके।

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क्या वर्तमान हालातों से जीत पाएंगे ट्रम्प ? डॉo सत्यवान सौरभ

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक अश्वेत व्यक्ति जॉर्ज फ्लॉयड की पुलिस हिरासत में मौत के खिलाफ हिंसक विरोध प्रदर्शन संयुक्त राज्य अमेरिका सहित विश्व भर के कई अन्य देशों में भी देखने को मिले हैं। दुनिया में लोकतांत्रिक मूल्यों का डंका पीटने वाला संयुक्त राज्य अमेरिका अपने ही आंगन में गोरे पुलिसकर्मी के घुटने तले दम घुटने से अफ्रीकी अमेरिकी नागरिक जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के बाद समता, सामाजिक न्याय एवं मानवाधिकारों की रक्षा में नाकामी के कारण कठघरे में है।
क्षेत्रफल के हिसाब से महादेश कहलाने वाले तमाम जनसंस्कृतियों से युक्त इस देश के आधे से ज्यादा राज्य आजकल नस्लीय नफरत के विरोध की आग में जल रहे हैं। इस विरोध प्रदर्शन को अलग-थलग करने के लिये अमेरिकी सरकार ने भीड़ के ऊपर आँसू गैस के गोले, रबड़ की गोलियों का इस्तेमाल किया और अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रदर्शनकारियों को ‘ठग’ कहा एवं उन्हें गोली मारने और उनके खिलाफ सेना के इस्तेमाल करने की धमकी दी।

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