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आखिर कब तक…??
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एमपी में कोविड़-19 नहीं निशाने पर शिवराज
राजनीति का भी अपना एक अलग ही चरित्र होता है। इसमें कभी-कभी ऐसा भी होता है कि हम जो न चाहे वह भी मजबूरी में करना पड़ जाता है। ये बात विपक्ष के संबंध में नही कही जा रही है। ये बात पक्ष या सत्ता पर बैठे दलों या नेताओं के संदर्भ में कही जा रही है।
दरअसल मसला ये है कि देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर दास मोदी व गृहमंत्री अमित शाह अपनी ही पार्टी के वरिष्ठ नेता व मध्यप्रदेश में चौथी बार बने नए नवेले मुख्यमंत्री को शिवराज सिंह चौहान को कोरोना महामारी के बहाने निपटाने की चाल चल रहे है। बता दे कि इस समय गुजरात में कोरोना की स्थिति एमपी से भी गंभीर स्थिति में है लेकिन वहां केन्द्रीय जांच दल को न भेज कर एमपी की घेराबंदी की है क्यों?
कोरोना के खिलाफ अपनी लड़ाई में भारत धीरे धीरे लेकिन मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है। स्वास्थ्य मंत्रालय के ताज़ा आंकड़े बताते हैं कि देश मेंकोरोना मरीजों की संख्या में वृद्धि होने की गति कम हुई है। यह संख्या अब 7.5 दिनों में दुगुनी हो रही है। लेकिन इस बात को नकारा नहीं जा सकता कि कोरोना से इस लड़ाई के दौरान निजामुद्दीन में तब्लीगी जमात का मारकज़ सबसे कमजोर कड़ी साबित हुआ। और शायद इसी वजह से यह संगठन जिसके नाम और गतिविधियों से अब तक देश के अधिकतर लोग अनजान थे आज उसका नाम और उसकी करतूतें देश की सुरक्षा एजेंसियों से लेकर आम आदमी की जुबां पर है। लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं निकाला जाए कि तब्लीगी जमात के अस्तित्व से दुनिया अनजान थी। विश्व के अनेक देशों की खुफिया एजेंसियों की नज़र काफी पहले से इन पर थीं। काफी पहले से ही इन पर विभिन्न देशों में होने वाली आतंकवादी गतिविधियों में परोक्ष रूप से शामिल होने के आरोप लगते रहे हैं।
पूरे विश्व को कोरोना महामारी की सौगात देने वाले चीन की काली करतूतों पर से धीरे-धीरे पर्दा उठने लगा है| पूंजीवादी संस्कृति किसी देश को नैतिक रूप से कितना दीवालिया कर सकती है, चीन इसका जीता जागता उदाहरण है| कहने को तो चीन में कम्यूनिस्ट पार्टी की सत्ता है| परन्तु उसकी संस्कृति घनघोर पूंजीवादी है| ऐसे देश के नेतृत्व की दृष्टि में न तो दूसरे देश के नागरिकों की जान का कोई मूल्य होता है और न ही अपने देश के नागरिकों के प्राणों की कोई कीमत होती है| उनकी सारी शक्ति स्वयं के पूंजी विस्तार पर ही केन्द्रित रहती है| जनवरी माह में जब चीन में मृत्यु का ताण्डव शुरू हुआ तब पूरा विश्व चीन को संवेदनशील दृष्टि से देख रहा था| उसकी मदद के लिए हर तरफ से हाँथ उठ रहे थे| लेकिन कोविड-19 नामक महामारी के पीछे छुपा चीन का कलुषित चेहरा जैसे-जैसे उजागर हो रहा है, वैसे-वैसे विश्व का प्रत्येक देश चीन को हिकारत भरी निगाहों से देखने लगा है| अमेरिका सहित विश्व के कई देश लामबन्द होकर न केवल चीन के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी कर रहे हैं बल्कि दूसरे तरीकों से भी चीन को सबक सिखाने की योजना बना रहे हैं| सम्भवता इसका आभास चीन को भी हो चुका है| शायद तभी उसने गोपनीय तरीके से अपने परमाणु अस्त्रों का परीक्षण शुरू कर दिया है| उधर अमेरिकी सेनाओं ने भी चीन के विरुद्ध मोर्चा सम्भाल लिया है|
आज पूरा विश्व संकट के दौर से गुज़र रहा है। कोरोना नामक महामारी से दुनिया भर के विकसित कहे जाने वाले देशों तक में होने वाले त्राहिमाम को देखकर आशंका होती है कि कहीं ये एक युग के अंत की शुरुआत तो नहीं। क्योंकि जैसी वर्तमान स्थिति है, इसमें इस महामारी का अगर कोई एकमात्र इलाज है तो वो है स्वयं को इससे बचाना। तो जब तक लॉक डाउन है तबतक हम घरों में सुरक्षित हैं लेकिन जीवन भर न तो आप लॉक डाउन में रह सकते हैं और ना हो कोई देश। इसलिए आवश्यक हो जाता है कि हम पूरे विश्व पर आई इस विपत्ति से कुछ सबक सीखें।
अगर मानव सभ्यता के इतिहास पर नज़र डालें तो मानव ने शुरुआत से ही अनेक चुनौतियों का सामना करके अपने बाहुबल और बौद्धिक क्षमता के सहारे ही वर्तमान मुकाम को हासिल किया है। इस पूरे सफर में अगर उसका कोई सबसे बड़ा मित्र था, तो वो था उसका आत्म विश्लेषणात्मक स्वभाव जो उसे अपनी गलतियों से सीखने के लिए प्रोत्साहित करता था। भारत की सनातन संस्कृति के स्वाभानुसार यह विश्लेषणात्मक विवेचन आत्मकेंद्रित ना होकर इसमें सम्पूर्ण प्रकृति एवं मानवता का भी कुशलक्षेम शामिल होता था। और यह संभव होता था उन नैतिक मूल्यों से जो उसे सही और गलत का भेद कराते थे। किंतु समय के प्रवाह के साथ परिभाषाएं बदलीं तो नैतिक मूल्य कहीं पीछे छूटते गए।
कोरोना की महामारी के चलते आज पूरा संसार दहशत में है। आमजन को एक तरफ इससे होने वाली मौत का डऱ सता रहा है तो दूसरी तरफ भूखमरी की चिंता भी परेशान करने लगी है। इन सबके अलावा इसकी दवा न होना सबसे बड़ी परेशानी का सबब बन गई है। मतलब यह भी कह सकते है कि इसकी दवा का न होना आज विश्व के सामने बड़ी चुनौती के रूप में उभरी है। अब वक्त रहते इसके उपचार के लिए दवा और इलाज के सही तरीके खोजना बेहद जरूरी हो गया है। हालाकि कई देश इसकी दवा खोजने के काम में जुटे है।
देश में लाॅकडाउन है और मैं भी तमाम देशवासियों की तरह घर में रहने को मजबूर हूं। हालांकि लाॅकडाडन घोषित होते समय अन्दर से बहुत खुश था कि विद्यालय बंद हो जाने से इस अवधि में लेखन के शौक के चलते कुछ लिखने-पढ़ने का सार्थक काम हो जायेगा। और तदनुरूप योजना भी बना ली थी कि कम से कम तीन कहानी, चार-पांच लेख, एक दर्जन कवितएं और मन भर हाईकू तो रच ही डालूंगा। पेन, पैड, लैपटाप सब तैयार कर लिया था। अखबार कोरोना समाचार और चित्रों से भरे हैं। रेहड़ी, ठेला और पटरी पर दो जून की रोटी तलाशने वाले छोटे-मोटे व्यापारी-कामगार रोजगार बंद होने से पेट की आग में झुलस रहे हैं। कल-कारखानों से भगाये गये मजदूर डे-नाईट वाॅकिंग करते हुए किसी तरह अपने गांव-घर पहुंचे तो प्रशासन ने उन्हें घरबदर कर स्कूलों में बने आइसोलेशन वार्ड में पटक दिया है। जहां दीवारों में अंकित सद्वाक्य ‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेसु कदाचन’ का अर्थ समझते उनका समय बीत रहा है। सोचा कि एक लेखक होने के नाते उनके दर्द को स्वर देना भी मेरा दायित्व है तो उन पर भी कुछ कालजयी लेखन कर डालूं। पर होनी को कुछ और ही मंजूर था। घर पर दो दिन तो आराम से कटे। समय से चाय नाश्ता, लंच-डिनर, रात को सोते समय केशर-शहद मिला दूध और साथ में एक चम्मच स्वर्णभस्म युक्त च्यवनप्रास भी। तो इतना सब खाने-पीने के बाद रचनाएं भी मक्खन की मानिन्द दिमाग में उतराने लगी थीं। पर हाय रे मुआ कोरोना, चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात, बकरे की मां कब तक खैर मनायेगी, काम का न काज का दुश्मन अनाज का जैसे मुहावरे अब वास्तविक अर्थ के साथ साक्षात थे। तीसरे दिन की सुबह से आज की सुबह है, मैं बस मुआ कोरोना को कोस रहा हूं। कोरोना मिल जाये तो बिना नमक, मिर्च-मसाले के कच्चा ही चबा जाऊं। आप पूछ रहे हैं हुआ क्या, अरे जनाब यह पूछिए कि क्या नहीं हुआ।
इस समय विश्व के सभी देशो में कोरोना वायरस की महामारी से हर देश अपने अपने तरीके से जंग लड रहा है जिसमें हमारा देश भी इस महामारी से एक अनोखे तरीके जैसे प्रधानमंत्री के आवाहन पर पहले थाली, घंटी, शंख बजाकर एक जुट होने का हिन्दुस्तानियों ने परिचय दिया दूसरी बार प्रधानमंत्री के आवाहन के बताए हुए समय पर पूरे हिन्दुस्तान की जनता ने अपने-अपने घरों कि लाईट बन्द करके दीपक, दीया, मोमबत्ती, मोबाईल की टार्च जलाकर हिन्दुस्तान की एकता का परिचय दिया। लेकिन हमारे देश में ऐसी महामारी से हमें हमेशा बचाते चले आ रहे वहां लोग है जो सफाई कर्मचारी कहलाते है उनके विषय में सरकारो को हमारे देश की जनता को सोचना चाहिए क्योंकि हमें जब उनकी आवश्यकता होती है तो हमारे देश के प्रधानमंत्री पैर धोकर यहां संदेश देते है कि यहां लोग भी इंसान है जैसे की इस समय कोरोना वायरस महामारी को देखते हुए हर शहर, हर गांव हर कसवे में कही नोटों फूलों की माला पहनकर हर हिन्दुस्तानी सम्मान कर रहा है लेकिन सोचने की यहां बात है कि जब डरकर घबराकर मौत को सामने देखकर किसी का सम्मान किया तो क्या किया यहां वो सैनिक है जो कोरोना वायरस महामारी जैसी बिमारियों से पहले से ही हम सब लोगों की सुरक्षा करते चले आ रहे है सरकारो को हमारे देश की जनता को पहले से ही इन लोगो को सम्मान देते चले आना चाहिए था अगर यहां लोग सफाई का कार्य बन्द कर दे तो ना जाने कितनी बीमारियां फैल जायेगी और हमारा देश अन्धकार में चला जायेगा।
देश में कोरोना वायरस के संकट से बाहर निकलने के लिए जो तालाबंदी की गई और उसके बाद जिस तरह की दिक्कतें व परेशानियां सामने आई उसे देख कर हम जैसे तमाम भारतीयों के मन में एक सवाल उठने लगा कि- क्या इस वायरस पर विजयी पाने का एकमात्र हल तालाबंदी ही था। देश का अवाम इस समय कोरोना वायरस जैसे संकट से काफी जूझ रहा है। ऐसे समय में ये सवाल तकलीफ देह भी साबित हो सकता है लेकिन सवाल तो बनता है। और शायद इसीलिए पूछा भी जा रहा है।
हालाकि इसका जवाब बेहद सरल और आसान है – और वो है हां। हां तालाबंदी ही इस वायरस पर काबू पाने का एकमात्र विकल्प या रास्ता था।
पर तालाबंदी के कुछ दिनों बाद ही देश भर में जिस तरह से अफरा-तफरी मची, लोग दो वक्त की रोटी को महरूम हो गए उसी के चलत दिलों-दिमाग में यह सवाल खड़ा हुआ कि क्या अचानक से पूरी तरह देश भर में तालाबंदी किया जाना ही एकमात्र विकल्प था?