प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर 5 अप्रैल को रात 9 बजे देश भर में जले दियों से दीपावली जैसा नजारा दिखायी दिया| प्रधानमन्त्री जी ने तो मात्र एक दिया जलाने की अपील की थी| परन्तु लोगों ने उत्साह में आकर अपनी-अपनी बालकनियों और दरवाजों को दीप मालाओं से सजा दिया| आम से लेकर खास तक, मन्त्री से लेकर सन्तरी तक, राज्यपाल से लेकर राष्ट्रपति तक हर किसी ने मोदी जी की अपील पर अमल करने का पूर्ण प्रयास किया| अनेक लोगों ने तो पटाखे भी जमकर फोड़े| लगा जैसे पूरा देश दोबारा दीवाली मना रहा हो| लेकिन दियों की जगमगाहट के बीच शायद ही किसी ने यह विचार किया हो कि देश के उन 89 परिवारों पर क्या बीत रही होगी जिनके चिराग कोविड-19 की महामारी ने बुझा दिये हैं और उन 3900 लोगों की मनः स्थिति क्या होगी जो इस महामारी की चपेट में आकर जिन्दगी और मौत के बीच झूल रहे हैं| दियों की जगमगाहट से प्रसन्न सत्ता पक्ष जहाँ अन्तर्मन से प्रधानमन्त्री की बढ़ती लोकप्रियता का दर्शन करते हुए भविष्य के परिणामों का सुखद आभास कर रहा है वहीँ बहिर्मन से इसे देश की एक जुटता का द्योतक बताते हुए नहीं थक रहा है| विपक्षी दल इसे भाजपा के स्थापना दिवस 6 अप्रैल की पूर्व सन्ध्या पर अघोषित जश्न की संज्ञा दे रहे हैं तो अन्ध भक्त और स्वयंभू विद्वान इसे सनातन धर्म के पौराणिक विज्ञान से जोड़कर कोरोना के विरुद्ध लड़ाई का एक बड़ा हथियार बता रहे हैं|
लेख/विचार
किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा
“मानव ही मानव का दुश्मन बन जाएगा
किसने सोचा था ऐसा दौर भी आएगा।
जो धर्म मनुष्य को मानवता की राह दिखाता था
उसकी आड़ में ही मनुष्य को हैवान बनाया जाएगा।
इंसानियत को शर्मशार करने खुद इन्सान ही आगे आएगा
किसने सोचा था कि वक्त इतना बदल जाएगा”
शक्ति कोई भी हो दिशाहीन हो जाए तो विनाशकारी ही होती है लेकिन यदि उसे सही दिशा दी जाए तो सृजनकारी सिद्ध होती है। शायद इसीलिए प्रधानमंत्री ने 5 अप्रैलको सभी देशवासियों से एकसाथ दीपक जलाने का आह्वन किया जिसे पूरे देशवासियों का भरपूर समर्थन भी मिला। जो लोग कोरोना से भारत की लड़ाई में प्रधानमंत्री के इस कदम का वैज्ञानिक उत्तर खोजने में लगे हैं वे निराश होसकते हैं क्योंकि विज्ञान के पास आज भी अनेक प्रश्नों के उत्तर नहीं हैं। हाँ लेकिन संभव है किदीपक की लौ से निकलने वाली ऊर्जा देश के 130 करोड़ लोगों की ऊर्जा को एक सकारात्मक शक्ति का वो आध्यात्मिक बल प्रदान करे जो इस वैश्विक आपदा से निकलने में भारत को संबल दे। क्योंकि संकट के इस समयभारत जैसे अपार जनसंख्या लेकिन सीमित संसाधनों वाले देश की अगर कोई सबसेबड़ी शक्ति, सबसे बड़ा हथियार है जो कोरोना जैसी महामारी से लड़ सकता है तो वो है हमारी “एकता”। और इसी एकता के दम पर हम जीत भी रहे थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेष दूत डॉ डेविड नाबरो ने भी अपने ताज़ा बयान में कहा कि भारत में लॉक डाउन को जल्दी लागू करना एक दूरदर्शी सोच थी,साथ ही यह सरकार का एकसाहसिक फैसला था। इस फैसले से भारत को कोरोना वायरस के खिलाफ मजबूती से लड़ाई लड़ने का मौका मिला।
बच्चों के सीखने में स्कूल की भूमिका : स्मृति चौधरी
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गम्भीर चुनौती बनता जा रहा है कोविड-19
चीन के बुहान शहर से शरू हुई कोरोना संक्रमण की बीमारी आज वैश्विक महामारी का रूप ले चुकी है| पूरे विश्व में कोरोना वायरस से संक्रमित हुए लोगों की संख्या छै लाख के ऊपर पहुँच गई है| जबकि इस संक्रमण से मरने वालों का आंकड़ा 28 हजार के पार हो चुका है| भारत में भी यह बीमारी धीरे-धीरे अपने पांव पसार रही है| देश भर में 900 से भी अधिक लोग कोरोना के शिकार हो चुके हैं| जिनमें से डेढ़ दर्जन से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है| दुनिया भर के तमाम चिकित्सक इस विषाणु का तोड़ निकालने के लिए रात-दिन एक किये हुए हैं| परन्तु दुर्भाग्य से अभी तक इसका कोई इलाज नहीं खोजा जा सका है| ऐसे में इस संक्रमण से बचाव ही इसका सबसे बड़ा इलाज है| अतः हर किसी को स्वयं तथा अपने परिजनों का चिकित्सकों के निर्देशानुसार बचाव करना चाहिए| इस महामारी को फैलने से रोकने का सबसे कारगर तरीका सामाजिक दूरी तथा स्वच्छता को ही बताया गया है| इसी के चलते भारत सहित दुनियां के लगभग सभी देशों ने अपने यहाँ लॉकडाउन अर्थात नागरिकों की आवाजाही पर पूरी तरह से प्रतिबन्ध लगा दिया है| इसके बावजूद कोरोना के बढ़ते संक्रमण पर विराम नहीं लग पा रहा है| जिसका प्रमुख कारण लोगों द्वारा लॉकडाउन का गम्भीरता से पालन न करना ही बताया जा रहा है|
Read More »सावधानी ही बेहतर उपाय
फरमान–ए–साहब
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ऑनलाइन रिश्ते….
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कोरोना एक अदृश्य सेना के खिलाफ लड़ाई है
कोरोना से विश्व पर क्या असर हुआ है इसकी बानगी अमरीकी राष्ट्रपति का यह बयान है कि, “विश्व कोरोना वायरस की एक अदृश्य सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है।” चीन के वुहान से शुरू होने वाली कोरोना नामक यह बीमारी जो अब महामारी का रूप ले चुकी है आज अकेले चीन ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के लिए परेशानी का सबब बन गई है। लेकिन इसका सबसे अधिक चिंताजनक पहलू यह है कि वैश्वीकरण की वर्तमान परिस्थितियों में यह बीमारी समूची दुनिया के सामने केवल स्वास्थ्य ही नहीं बल्कि आर्थिक चुनौतियाँ भी लेकर आई है। सबसे पहले 31 दिसंबर को चीन ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को वुहान में न्यूमोनिया जैसी किसी बीमारी के पाए जाने की जानकारी दी। देखते ही देखते यह चीन से दूसरे देशों में फैलने लगी और परिस्थितियों को देखते हुए एक माह के भीतर यानी 30 जनवरी 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे विश्व के लिए एक महामारी घोषित कर दिया।
दूरदर्शी बजट का निकट दर्शन
2020-21 का आम बजट पारित हो चुका है| सरकार इस बजट को दूरदर्शी बता रही है तो विपक्ष इसे दिशाहीन बजट बताते हुए नहीं थक रहा है| सवाल उठता है कि सरकार के दावे को यदि सही मान लिया जाये तो क्या आम आदमी के दिन बहुरने वाले हैं? क्या बुनियादी सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करते देश के नागरिकों का जीवन स्तर बदलने वाला है? क्या बेरोजगारी के लिए दर-दर भटकते युवाओं के सपने साकार होने वाले हैं? क्या देश के किसानों की दशा सुधरने वाली है, जो कभी अतिवृष्टि, कभी अनावृष्टि तो कभी ओलावृष्टि से बेहाल होते रहते हैं? क्या दिन प्रतिदिन बदहाल होती शिक्षा व्यवस्था में कोई आमूल चूल परिवर्तन देखने को मिलेगा? ऐसे अनेक सवालों के जवाब तलाशने के लिए आइये करते हैं सरकार के दूरदर्शी बजट का निकट से दर्शन|
वित्तमन्त्री सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा था कि यह बजट आकांक्षा, आर्थिक विकास और सर्वसमावेशी है| इससे लोगों की क्रय शक्ति बढ़ेगी| उन्होंने यह भी कहा कि इस बजट के बाद हमारे अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद में 10 फीसदी की वृद्धि होगी| वित्तमन्त्री के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था बहुत मजबूत है और सरकार मंहगाई को रोकने में कामयाब हुई है| 2020-21 के बजट की प्रमुख बातें निम्न प्रकार हैं:
सरकार और प्रशासन की नाकामी है दिल्ली दंगे
शाहीनबाग़ संयोग या प्रयोग हो सकता है लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति की भारत यात्रा के दौरान देश की राजधानी में होने वाले दंगे संयोग कतई नहीं हो सकते। अब तक इन दंगों में एक पुलिसकर्मी और एक इंटेलीजेंस कर्मी समेत लगभग 42 से अधिक लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। नागरिकता कानून बनने के बाद 15 दिसंबर से दिल्ली समेत पूरे देश में होने वाला इसका विरोध इस कदर हिंसक रूप भी ले सकता है इसे भांपने में निश्चित ही सरकार और प्रशासन दोनों ही नाकाम रहे। इससे भी चिंताजनक बात यह है कि सांप्रदायिक हिंसा की इन संवेदनशील परिस्थितियों में भी भारत ही नहीं विश्व भर के मीडिया में इसके पक्षपातपूर्ण विश्लेषणात्मक विवरण की भरमार है जबकि इस समय सख्त जरूरत निष्पक्षता और संयम की होती है। देश में अराजकता की ऐसी किसी घटना के बाद सरकार की नाकामी, पुलिस की निष्क्रियता, सत्ता पक्ष का विपक्ष को या विपक्ष का सरकार को दोष देने की राजनीति इस देश के लिए कोई नई नहीं है। परिस्थिति तब और भी विकट हो जाती है जब शाहीनबाग़ में महिलाओं को कैसे सवाल पूछने हैं और किन सवालों के कैसे जवाब देने हैं, कुछ लोगों द्वारा यह समझाने का वीडियो सामने आता है। लेकिन फिर भी ऐसे गंभीर मुद्दे पर न्यायपालिका भी कोई निर्णय लेने के बजाए सरकार और पुलिस पर कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी डाल कर निश्चिंत हो जाती है।