Sunday, June 2, 2024
Breaking News
Home » लेख/विचार (page 78)

लेख/विचार

मैं, मेरा बचपन और किताबों से दोस्ती – प्रमोद दीक्षित

बुंदेलखंड के बांदा जिले के एक पिछडे़ गांव ‘बल्लान’ में 1973 में जन्म हुआ और 1998 में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में सहायक अध्यापक के रूप में जुड़ना हुआ। एक शिक्षक के रूप में काम करते हुए पूरे बीस साल हो गये हैं। अपनी पढ़ाई, शिक्षक बनने की प्रक्रिया, शिक्षक रूप में अनुभव और इस दौरान मिली बाधाएं एवं चुनौतियां, समाधान के रास्ते और उपलब्धियों की ओर देखता हूं तो कुछ ऐसा चित्र उभरता है।
पढ़ने के साथ लिखना भी प्राथमिक कक्षाओं में रहते हुए ही शुरु हो गया था। हालांकि तब यह बिल्कुल नहीं मालूम था कि पढ़ना-लिखना क्या है? लेकिन स्कूली किताबों के अलावा जो कुछ भी पढ़ पाया उसने मुझे एक बेहतर नागरिक बनने या होने में मेरी भरपूर मदद की। एक शिक्षक के रूप में अपने स्कूल में आज जो भी नया कर पा रहा हूं उसमें बालपन से अब तक पढ़ी गई किताबों से उपजी साझी समझ का बहुत बड़ा योगदान है। पढ़ने ने मुझे शब्द-सम्पदा का धनी बनाया, लेखन में एक अपनी शैली विकसित करने में सहारा दिया और चीजों को समझने की दृष्टि भी भेंट की। मेरा भाषा और गणित का आरम्भ एक साथ हुआ बल्कि यह कहना कहीं अधिक ठीक रहेगा कि दोनों प्रत्येक व्यक्ति के शुरुआती सीखने में साथ-साथ चलते हैं। शब्द राह दिखाते हैं, अक्षर लुकाछिपी का खेल खेलते-खेलते नये शब्द रचवा लेते हैं। आज जब पीछे मुड़कर देखता और विचार करता हूं कि पढ़ने-लिखने की शुरुआत कब, कैसे, कहां हुई तो तीन छोर नजर आते हैं।

Read More »

मीना कुमारी: पहली फिल्म फेयर एवार्ड पाने वाली अभिनेत्री

मायानगरी मुम्बई, प्रमोद दीक्षित। यह युवाओं के सपनों का शहर है। यहां रातें भी सितारों की झिलमिलाहट से रोशन रहती हैं। यहां गिरने वालों को कोई उठाने वाला नहीं होता उसे स्वयं ही उठकर अपनी धूल झाड खड़ा होना पड़ता है। यह उगते सूरज को वंदन करने वालों की जगह है। यहां उल्लास है, उमंग है, जिजीविषा और आनन्द भी तो वहीं पीड़ा है, बेबसी है और हताशा भी। बेशुमार धन-दौलत है और धन से बने नीरस एवं बेजान सम्बंध भी। सफलता का अट्टहास करती अट्टालिकाएं हैं तो असफलता का रुदन करती चाल-झोंपड़ी भी। फलक पर खुशियों की धारा का सरस प्रवाह है तो तल पर जीवन की विकृति और विषाद का जमाव एवं ठहराव भी। सफलता के भोजपत्र में इंद्रधनुषी रंग और हास-परिहास की मधुर ध्वनि है तो असफलता के स्याह पृष्ठ पर कराहता मूक स्वर और हताश मन की इबारत भी। हंसते-मुस्काते चेहरों के पीछे दर्द से तड़पते मन हैं और सूखे आंसू भी। पर कलाकार अपने दुःखों और पीड़ा को सीने में दफन किए दर्शकों के लिए अभिनय करते हैं ताकि उन्हें रसानुभूति करा सकें। ऐसे सिने कलाकरों की एक लम्बी सूची है जो निजी जीवन के कष्टों को भूल बस कला के लिए जीये। मीना कुमारी निजी जीवन के दर्द और पीड़ा के घूंट को पल-पल पीने वाली भावप्रवण एवं संवेदनशील अदाकरा हैं जिन्हें 1954 में ‘बैजू बावरा’ के लिए पहला फिल्म फेयर एवार्ड प्रदान किया गया था। 38 वर्ष की अल्पायु में ही दुनिया छोड़ देने वाली मीना कुमारी कभी सुख-संतुष्टि का जीवन नहीं जी पायीं। दर्द एवं पीड़ा के अनुभव नज्मों के शेर बन ढलते रहे। उनकी गजलों का संग्रह गुलजार के संपादन में मृत्यु के बाद ‘तन्हां चांद’ के नाम से छपा।

Read More »

सियासी जामा पहनता.. मिशन शक्ति

“मिशन शक्ति” सभी को जानकारी को चुकी है इस बारे में कि अंतरिक्ष में उपग्रह को मार गिराने की क्षमता हासिल हो गई है, लेकिन इस चुनावी दौर में इसे भी भुनाया जा रहा ह। “मिशन शक्ति” मोदी या कांग्रेस की सफलता नहीं है, यह भारत की सफलता है। आज भारत इस उपलब्धि के कारण एक महाशक्ति के रूप में उभरा है। किसी भी कार्य में सफलता सरलता से हासिल नहीं होती, वर्षो की मेहनत, लगन और संघर्ष के बाद जीत की ओर कदम बढ़ते है। आज हमारे वैज्ञानिक सबसे ज्यादा बधाई के हकदार है जिन्होंने ये उपलब्धि हासिल करके देश का मान बढ़ाया है। ये मिशन किस समय शुरू हुआ यह महत्व की बात नहीं है बल्कि हमने एक चुनौती को पूर्ण करके सफलता हासिल की है ये ज्यादा महत्वपूर्ण है।
अहमद पटेल का बयान कि “यूपीए सरकार ने ए एस ए टी प्रोग्राम की शुरुआत की थी, जो आज सफल हुआ है। मैं भारत के वैज्ञानिकों और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व को बधाई देता हूं।” यह मिशन किसी भी सरकार के कार्यकाल में पूरा हुआ हो मगर डीआरडीओ के वैज्ञानिकों की 9 सालों की मेहनत रंग लाई है तो सियासी रंग में नहीं रंगना चाहिए मोदी अभी भी प्रधानमंत्री है और उनका फर्ज बनता है कि देश के वैज्ञानिकों की हौसला अफजाई करें लेकिन मोदी को राष्ट्र के नाम संबोधन करने से बचना चाहिए था । देश की यह सफलता मीडिया वैसे भी बखानता पर मोदी सेना, न्यायपालिका और अब वैज्ञानिकों की सफलता भुना रहे। तो राजनीति कौन कर रहा ? इस मुद्दे पर ममता बनर्जी की नाराजगी सिर्फ एक चुनावी ड्रामा भर है। प्रियंका माहेश्वरी।

Read More »

कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है

दिन की शुरुआत अखबार में छपी खबरों से करना आज लगभग हर व्यक्ति की दिनचर्या का हिस्सा है। लेकिन कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर जाती हैं कि क्या आज के इस तथाकथित सभ्य समाज में भी मनुष्य इतना बेबस हो सकता है? क्या हमने कभी खबर के पार जाकर यह सोचने की कोशिश की है कि क्या बीती होगी उस 12 साल की बच्ची पर जो हर रोज़ बेफिक्र होकर अपने घर के आंगन में खेलती थी लेकिन एक रोज़ उसका अपना ही आंगन उसके लिए महफूज़ नहीं रह जाता? आखिर क्यों उस आंगन में एक दिन यकायक एक तूफान आता है और उसका जीवन बदल जाता है? वो बच्ची जो अपने माता पिता के द्वारा दिए नाम से खुद को पहचानती थी आज वो नाम ही उसके लिए बेगाना हो गया। सिर्फ नाम ही नहीं पहचान भी पराई हो गई। कल तक वो रीना थी लेकिन आज “रेहाना” है। सिर्फ पहचान ही नहीं उसकी जिंदगी भी बदल गई। कल तक उसके सिर पर पिता का साया था और भाई का प्यार था लेकिन आज उसके पास एक “शौहर” है। कल तक वो एक बेटी थी एक बहन थी लेकिन आज वो एक “शरीके हयात” है।

Read More »

लोकसभा चुनाव… भाजपा की सत्ता में वापसी ?

आखिर 2019 आ ही गया… मतलब सत्ता के 5 साल की अवधि पूरी होने को आई। 2014 में पूर्ण बहुमत के साथ वर्तमान सरकार बहुत सारे वादों के साथ सत्ता में आई थी। काले धन की वापसी,नोटबंदी, भ्रष्टाचार का खात्मा, बेरोजगारी, जीएसटी, किसान, शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से भाजपा सरकार ने जनता को लुभाया। वर्तमान सरकार ने 700 से अधिक योजनाएं शुरू की लेकिन सिर्फ आंकड़ों में ही योजनाएं सफल दिख रही हैं, जमीनी स्तर पर नहीं।
काला धन वापस आया? नोट बंदी से भ्रष्टाचार में कमी आई? दो करोड़ रोजगार देने का वादा पूरा हुआ? किसानों की आत्महत्या रुकी? बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान कितना सफल रहा?महिला सुरक्षा कितनी कारगर? नमामि गंगे परियोजना कितनी सफल? आदर्श ग्राम योजना कितनी सफल? जवान कितने सुरक्षित? अभी हालिया घटना पर ही ध्यान दें। नक्सली हमलों में कितनी कमी? राम मंदिर मुद्दा इन 5 सालों में कितना सुलझा? यह सिर्फ भाजपा सरकार की बात नहीं है पिछली सरकार में भी यही समस्यायें मुंह बाए खड़ी थी। लोगों की बात सही है जो काम 70सालों में नहीं हुआ वह 5 साल में कैसे पूरा होगा लेकिन फिर एक सवाल कि कहीं तो आंशिक सफलता दिखाई देती इन मुद्दों में? सवर्ण नाराज, दलित नाराज और अल्पसंख्यक नाखुश, धर्म के नाम पर सियासत, सांप्रदायिकता को बढ़ावा, आम आदमी डर कर जी रहा।

Read More »

संकट में है गौरैया का जीवन

आज से एक डेढ़-दो दशक पूर्व तक हमारे घरों में एक नन्ही प्यारी चिड़िया की खूब आवाजाही हुआ करती थी। वह बच्चों की मीत थी तो महिलाओं की चिर सखी भी। उसकी चहचहाहट में संगीत के सुरों की मिठास थी और हवा की ताजगी का सुवासित झोंका भी। नित्यप्रति प्रातः उसके कलरव से लोकजीवन को सूर्योदय का संदेश मिलता और वह अपने नेत्र खोल दैनन्दिन जीवनचर्या में सक्रिय हो उठता। विद्याथियों के बस्ते खुलते और किताबें बोलने लगतीं। कोयले से पुती काठ की पाटियों में सफेद खड़िया से सजे अक्षर उभरने लगते। बैलों के गले में बंधी घंटियों की रूनझुन के साथ कंधे पर हल रखे किसानों के पग खेतों की ओर चलने को मचल पड़ते और महिलाएं गीत गाती हुई जुट जातीं द्वार-आँगन बुहारने में। और तभी आँगन में उतर आता कलरव करता चिड़ियों का झुण्ड। रसोई राँधने के लिए अनाज पछोरते समय सूप के सामने वह फुदकती रहती। सूप से गिरे चावल के दाने चुगती चिड़ियाँ लोक से प्रीति के भाव में बँधी निर्भय हो सूप में भी बैठ सहजता से अपना भाग ले जाती। इतना ही नहीं, वह रसोई में भी निर्बाध आती-जाती और पके चावल की बटलोई में बैठ करछुल में चिपका भात साधिकार ले उड़ती।

Read More »

महिला किसान.. महिला सम्मान की हकदार..?

यूं तो महिला दिवस 8 मार्च को मनाया जाता है और बड़े बड़े आयोजन भी होते हैं उस दिन लेकिन फिर भी कहीं न कहीं लोग मूल मुद्दे से भटक जाते हैं। महिला दिवस मेरी समझ से मूल्यों, स्त्री हकों और उनके उत्थान के लिए प्रयासरत और जो आवाज उठाती हैं, जागरूकता पैदा करती हैं वो ही महिला दिवस को सार्थक करते हैं। आज एक पिछड़े तबके की ओर ध्यान ले जाना चाहूंगी जो समाज में कार्य की दृष्टि से पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य कर रहीं हैं और कहीं ज्यादा मेहनती भी हैं लेकिन उनका दर्जा दोयम है। मैं बात कर रही हूं महिला किसानों की।
महिला किसान दिवस 15 अक्टूबर को मनाया जाता है। महिला किसान दिवस जिसका उद्देश्य महिलाओं में खेती किसानी में भागीदारी को बढ़ावा देना है। मेरी नजर में महिला दिवस के दिन महिला किसान की बात ना करके उनके साथ अन्याय करना होगा। महिला किसान जो बीजारोपण, रोपाई, उर्वरक वीटा, फसल कटाई और भंडारण वगैरह में पुरुषों के साथ बराबरी में काम करती है और एक बात स्पष्ट कर देना चाहूंगी कि किसान महिला खेतों में काम करने के बाद घर भी संभालती है और वहीं पुरुष अपना समय में मनोरंजन में व्यतीत करता है। पुरुषों के मुकाबले में महिला किसान ज्यादा काम करती है तो उसे भेदभाव का सामना क्यों करना पड़ता है? क्यों उन्हें किसान का दर्जा नहीं मिल पाता है? किसान की पत्नी के रूप में ही क्यों पहचानी जाती हैं? सबसे बड़ा भेदभाव उनकी मजदूरी को लेकर होता है।

Read More »

वैश्विक राजनीति में भारत की बदलती भूमिका

ये वो नया भारत है जो पुराने मिथक तोड़ रहा है,
ये वो भारत है जो नई परिभाषाएं गढ़ रहा है,
ये वो भारत है जो आत्मरक्षा में जवाब दे रहा है
ये वो भारत है जिसके जवाब पर विश्व सवाल नहीं उठा रहा है ।
पुलवामा हमले के जवाब में पाक स्थित आतंकी ठिकानों पर एयर स्ट्राइक करने के बाद अब भारतीय सेना का कहना है की आतंकवाद के खिलाफ अभी ऑपरेशन पूरा नहीं हुआ है। ये नया भारत है जिसने एक कायराना हमले में अपने 44 वीर जवानों को खो देने के बाद केवल उसकी कड़ी निंदा करने के बजाए उस की प्रतिक्रिया की और आज इस नए भारत की ताकत को विश्व महसूस कर रहा है।
आज विश्व इस न्यू इंडिया को केवल महसूस ही नहीं कर रहा बल्कि स्वीकार भी कर रहा है। ये वो न्यू इंडिया है जिसने विश्व को आतंकवाद की परिभाषा बदलने के लिए मजबूर कर दिया। जो भारत अब से कुछ समय पहले तक आतंकवाद के मुद्दे पर विश्व में अलग थलग था आज पूरी दुनिया उसके साथ है। क्योंकि 2008 के मुंबई हमले के दौरान विश्व के जो देश इस साजिश में पाक का नाम लेने बच रहे थे आज पुलवामा के लिए सीधे सीधे पाक को दोषी ठहरा रहे है। अमेरिका से लेकर ब्रिटेन तक हर देश आतंकवाद को लेकर पकिस्तान के रुख की भर्त्सना कर रहा है।

Read More »

सरोजिनी नायडू का भारतीय राजनीति में अवदान प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

भारत भूमि कर्म की पुण्य धरा है। यह साहित्य, शिक्षा, संस्कृति, संगीत, कला, ज्ञान-विज्ञान की जननी है और पोषक भी। यहां जीवन के विविध क्षेत्रों में जहां पुरुषों ने विश्व-गगन में अपनी सामथ्र्य की गौरव पताका फहराई है तो महिलाओं ने भी सफलता के शिखर पर अपने पदचिह्न अंकित किए हैं। सरोजिनी नायडू भारतीय राजनीति और काव्य कानन की एक ऐसी ही महाविभूति हैं जिनके कृतित्व और व्यक्तित्व की सुवास से विश्व महमहा रहा है। जिनकी आभा से जग चमत्कृत हैं। लोक ने ‘दि नाईटिंगेल ऑफ इंडिया’ कह उनकी प्रशस्ति की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली महिला अध्यक्ष होने का गौरव हासिल किया तो भारत के किसी राज्य की सर्वप्रथम राज्यपाल बनने का कीर्तिमान भी रचा। कविताओं में प्रेम और मृत्यु के गीत गाये तो प्रकृति के कोमल उदात्त मनोहारी चित्रों में लेखनी से इंद्रधनुषी रंग भरे। किसान-कामगारों के श्रम के प्रति निष्ठा व्यक्त की तो देशराग को क्रान्ति स्वर भी दिया। उनका जीवन प्रेरक है और अनुकरणीय भी। भारत कोकिला सरोजनी नायडू का जन्म 13 फरवरी 1879 को हैदराबाद में एक शिक्षित बंगाली परिवार में हुआ था। पिता अघोरनाथ चट्टोपाध्याय एक वैज्ञानिक और शिक्षाशास्त्री थे जिन्होंने हैदराबाद में निजाम कॉलेज की स्थापना की थी। माता श्रीमती वरद सुंदरी गृहिणी थी और बांग्ला भाषा में कविताएं लिखती थीं। परिवार के शैक्षिक एवं साहित्यिक परिवेश का प्रभाव सरोजिनी के बालमन पर पड़ना ही था।

Read More »

राष्ट्रीय विज्ञान दिवसः ‘रमन प्रभाव’ की खोज के स्मरण का दिन- प्रमोद दीक्षित ‘मलय’

राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद् एवं विज्ञान मंत्रालय द्वारा विज्ञान से लाभों, युवाओं एवं बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं विज्ञान अध्ययन के प्रति रुचि उत्पन्न करने तथा आमजन में जागरूकता लाने के उद्देश्य से 1986 से प्रत्येक वर्ष 28 फरवरी को राष्ट्रीय विज्ञान दिवस मनाया जाता है। उल्लेखनीय है 28 फरवरी 1928 को ही सीवी रमन ने लोक सम्मुख अपनी विश्व प्रसिद्ध खोज ‘रमन प्रभाव’ की घोषणा की थी। ‘रमन प्रभाव’ के लिए ही 1930 में सीवी रमन को नोबेल पुरस्कार मिला था। रमन अपनी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्रदान किए जाने के प्रति पूर्ण आश्वस्त थे क्योंकि आपने 6 महीने पहले ही स्टॉकहोम जाने का टिकट बुक करा लिया था। सीवी रमन एशिया के पहले भौतिक शास्त्री थे जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। सात साल की साधना के फल ‘रमन प्रभाव’ पर आधारित शोध पत्र ‘नेचर’ पत्रिका में सर्वप्रथम छपा था। अमेरिकन केमिकल सोसायटी ने 1998 में ‘रमन प्रभाव’ को अन्तरराष्ट्रीय विज्ञान के इतिहास की एक युगान्तकारी घटना के रूप में स्वीकार किया। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस वास्तव में ‘रमन प्रभाव’ के समरण का दिन है। विज्ञान दिवस के अवसर पर स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती है जिनमें विज्ञान विषयक निबंध लेखन, विज्ञान मॉडल निर्माण, प्रोजेक्ट वर्क, विज्ञान प्रदर्शनी, क्विज काम्पटीशन, भाषण एवं वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से विभिन्न स्तर पर विद्यार्थियो में वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं रुचि को परखा और प्रोत्साहित किया जाता है। विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिषद् 1999 से थीम आधारित आयोजन करता है। 1999 में विषय था ‘हमारी बदलती धरती’। जबकि 2018 के आयोजन का थीम विषय था एक ‘सतत् भविष्य के लिए विज्ञान’। इसी कड़ी में 2019 का विषय है ‘जनमानस के लिए विज्ञान और विज्ञान के लिए जनमानस’। रमन की यह खोज आज तमाम नवीन खोजों का आधार है।

Read More »