Saturday, May 18, 2024
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लेख/विचार

कृषि को आधुनिक और स्मार्ट बनाने बजट 2022 के प्रभावोत्पादक प्रस्तावों को 1 अप्रैल से लागू 

कृषि क्षेत्र को आधुनिक, डिजिटल और स्मार्ट कृषि बनाने बजट 2022 में सुझाए गए सात रास्ते सराहनीय कदम- एड किशन भावनानी

गोंदिया। भारत में कृषि क्षेत्र में पुराने साधनों, संसाधनों, लकड़ी का हल, बैल द्वारा जुताई, खार रोपाई, धान कटाई, भराई इत्यादि अनेक प्रक्रियाएं आदिकाल से ही पौराणिक प्रथाओं के रूप में होती थी। परंतु बड़े बुजुर्गों का कहना है कि समय का चक्र घूमते रहता है और पलों का घेरा, सुख-दुख, पुराना नया, ऊंचा नीचा सभी को घेरे में लेते हुए चलता है!!! ठीक उसी प्रकार यह चक्र आज कृषि क्षेत्र में भी पुरानी आदिलोक से चली आ रही कृषि प्रक्रियाओ को बदलकर आज के नए भारत डिजिटल भारत में स्मार्ट कृषि, डिजिटल कृषि के रूप में लाकर खड़ा कर दिया है!!!

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डिजिटल प्रौद्योगिकियों के विकास ने हमें अपनी भाषाओं और संस्कृति विरासत को संरक्षण और विकास के नए अवसर प्रदान किए

भारत सॉफ्टवेयर की एक महाशक्ति के रूप में जाना जाता है। अगर हम वैश्विक विकसित देशों की सॉफ्टवेयर कंपनियों के कर्मचारियों पर अनुमान लगाएं तो मेरा मानना है कि हमें कई भारतीय मूल के डेवलपर, प्रोग्रामर सॉफ्टवेयर, विशेषज्ञ मिलेंगे जो बड़े-बड़े पैकेजों से अपनी सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। परंतु अगर हम कृषि और गांव प्रधान देश में जीरो ग्राउंड पर जाकर विश्लेषण करेंगे तो अभी भी डिजिटल विकास का जनसैलाब हमारे ग्रामीण व कृषि भाइयों तक अपेक्षाकृत कम पहुंचा है। हालांकि केंद्र और राज्य सरकारें भरपूर प्रयत्न कर रहे हैं कि कृषि और ग्रामीण इलाकों में डिजिटलाइजेशन की क्रांति तेजी से पहुंचे हालांकि अनेक शासकीय कार्य आसानी से शीघ्र हो सके तथा उनको मिलने वाली सहायता राशि, पैकेज, उनके मेहनत और कृषि वस्तुओं का पैसा, उनके अकाउंट में सीधे ट्रांसफर हो सके ताकि बिचौलिए, रिश्वतखोरी और अवैध वसूली करने वालों का आंकड़ा जीरो हो जाए और ग्रामीण किसानों के जीवन समृद्धि में वृद्धि हो सके।
साथियों बात अगर हम विभिन्न डिजिटल प्रौद्योगिकियों से हमारे जीवन, जीवनस्तर, हमारी विरासत के संरक्षण, विकास के अवसर की करें तो हमारी डिजिटल प्रौद्योगिकी ने हमारी जीवनशैली ही बदल कर रख दी है। अधिकतम सकारात्मक दिशा में तो कुछ हद तक नकारात्मक दिशा में भी हुई है जिस तरह सिक्के के दो पहलू होते हैं उसी तरह हर आयाम के भी कुछ नकारात्मक पहलू होते हैं। पर हमें कोशिश करके नकारात्मक पहलू छोड़कर सकारात्मकता की ओर बढ़ कर डिजिटल प्रौद्योगिकी के विभिन्न सुविधाओं का लाभ उठाने की ज़रूरत है।
साथियों बात अगर हम अपनी भाषा और संस्कृति विरासत हजारों वर्ष पूर्व इतिहास के उन संदर्भित पन्नों की बात करें तो उन्हें संजोकर रखने का महत्वपूर्ण और काम इस डिजिटल प्रौद्योगिकी की तकनीकी के कारण हो सकता है। आज हजारों लाखों पृष्ठों की हमारी विरासत, संस्कृति, भाषाओं नीतियों का संरक्षण हम डिजिटल प्रौद्योगिकी की विभिन्न तकनीकों से करने में सफल हुए हैं। नहीं तो आगे चलकर हमारी अगली पीढ़ियों तक यह स्वर्ण पन्नों की लिखित विरासत पहुंचती या नहीं इसका जवाब समय के गर्भ में छिपा था। परंतु अभी हम डिजिटल प्रौद्योगिकी के ऐप के भरोसे कह सकते हैं कि यह विरासत मानव प्रजाति होने तक सुरक्षित रहेगी, यह उसका सकारात्मक उपयोग और संरक्षण योग्य और सुरक्षित हाथों में रहने पर निर्भर है।

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लड़कियों को तंदुरुस्त बनाईये

माँ जो जगदाधार है, माँ जो परिवार की नींव है उसे खुद को स्वस्थ और तंदुरुस्त रहने पर विशेष ध्यान देना चाहिए। स्त्री को ममता की मूरत माना जाता है, माँ बनना हर औरत का सपना होता है। लड़की की शादी के बाद कुछ ही समय में परिवार और रिश्तेदार वाले पूछते रहते है, खुश ख़बर कब सुना रही हो? लेकिन आजकल देखा जा रहा है की कई महिलाएं मां नहीं बन पा रही है। या तो गर्भ ठहरता भी है तो दो ढ़ाई महीने बाद बच्चे का विकास अटक जाता है, और अबोर्शन करके अविकसित गर्भ निकलवाना पड़ता है। हर माता-पिता का फ़र्ज़ है की अपनी बच्ची को बचपन से ही हैल्दी खानपान से तंदुरुस्त बनाईये, क्यूँकि बेटी को अपने अंदर एक जीव को पालना है, जिसके लिए उसका खुद का शरीर स्वस्थ होना बहुत जरूरी है। आजकल हर पाँचवी लड़की को माँ बनने में कोई न कोई दिक्कत आती है। महिलाओं के मां न बन पाने के कई कारण हो सकते है। जिसमें काफ़ी हद तक उनकी लाइफस्टाइल ज़िम्मेदार होती है। खासकर खान-पान बाहर का खाना जिसमें प्रिज़र्वेटिव और फूड़ कलर की मात्रा अधिक होती है। मैदे से बने जंक फूड का अधिक सेवन, ओवर ईटिंग, मोटापा, ज़रूरत से ज़्यादा डायटिंग, अचानक वज़न बढ़ना या बहुत ज़्यादा वज़न घटना, एक्सरसाइज़ बिल्कुल न करना या ज़रूरत से ज्यादा एक्सरसाइज़ करना भी मां बनने में बाधक होता है। चरबी युक्त खाना खाकर जब मोटापा बढ़ जाता है, तो क्रैश डायटिंग करना शुरू कर देती है। इन सबके चलते शरीर में इतनी तेज़ी से हार्माेनल बदलाव होता है कि शरीर का हार्माेनल बैलेंस ही बिगड़ जाता है, जो माँ नहीं बन पाने का कारण बन जाता है।
आजकल लड़कियों में बहुत कम उम्र में ही पीसीओएस की समस्या भी देखी जा रही है। इसका कारण उनका ग़लत खानपान और स्ट्रेस है। पीसीओएस/पीसीओडी के कारण महिलाओं में ओवेल्यूशन नहीं होता, महिलाओं के शरीर में सामान्य की तुलना में बहुत अधिक हार्माेन्स बनते है। हार्माेन में इस असंतुलन की वजह से पीरियड्स नियमित नहीं रहते है ,आगे चलकर इससे प्रेग्नेंसी में समस्या आ जाती है।

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दुनिया के बेहतरीन फाइटर जेट्स में से एक है ‘तेजस’

पिछले दिनों सिंगापुर में आयोजित सिंगापुर एयर शो के दौरान स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू विमान एलसीए तेजस ने लो-लेवल एयरोबैटिक्स डिस्प्ले में हिस्सा लेकर सिंगापुर के आसमान में गर्जना करते हुए अपनी कलाबाजियों से न सिर्फ तमाम लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया बल्कि अपने पराक्रम और मारक क्षमता की पूरी दुनिया के समक्ष अद्भुत मिसाल भी पेश की। सिंगापुर के आसमान में कलाबाजियां करते तेजस की तस्वीरें भारतीय वायुसेना द्वारा ‘लाइक ए डायमंड इन द स्काई’ लिखकर ट्वीट की गई। गौरतलब है कि सिंगापुर एयरशो हर दो साल में एक बार आयोजित होता है, जिसमें दुनियाभर के फाइटर जेट्स हिस्सा लेते हैं। यह एयर शो एविएशन इंडस्ट्री के लिए पूरी दुनिया को अपने एयरक्राफ्ट दिखाने का बेहतरीन अवसर होता है और विश्वभर की विमानन कम्पनियां इसके जरिये अपने उत्पादों की मार्केटिंग करती हैं। एयर शो में भारत द्वारा भी हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा निर्मित स्वदेशी ‘तेजस’ की मार्केटिंग पर जोर दिया गया। इस एयर शो में भारतीय वायुसेना के तेजस के अलावा यूनाइटेड स्टेट्स एयरफोर्स, यूनाइटेड स्टेट्स मरीन कॉर्प्स, इंडोनेशियाई वायुसेना की जुपिटर एयरोबैटिक टीम, रिपब्लिक ऑफ सिंगापुर एयरफोर्स इत्यादि की विशेष भागीदारी रही। सिंगापुर एयरशो 2022 में शामिल होने के लिए वायुसेना का 44 सदस्यों का एक दल 12 फरवरी को ही स्वदेशी फाइटर जेट, लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट, एलसीए तेजस मार्क-वन के साथ सिंगापुर पहुंच गया था। एयरोबैटिक्स में हिस्सा लेकर एलसीए तेजस ने अपनी संचालन से जुड़ी विशेषताओं तथा गतिशीलता को प्रदर्शित किया और पूरी दुनिया को दिखाया कि आखिर तेजस कितना ताकतवर लड़ाकू विमान है। सिंगापुर एयर शो से पहले भारतीय वायुसेना 2021 में दुबई एयर शो और 2019 में मलेशिया में लिमा एयर शो में भी हिस्सा ले चुकी है।

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जिम्मेदार नागरिक बनों

सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहाँ पर लोग अच्छी बातों को अपनाते कम है, हर घटना का प्रचार करने में माहिर बनते जा रहे है। कुछ वीडियो को देखकर मन में कई सवाल उठते है की क्या हम कायर है, या विडियो बनाने के शौक़ीन है, या समाज में जो अवैधानिक घटनाएं होती है उनको नज़र अंदाज़ करने में माहिर है? हम सच में डरपोक होते जा रहे है। कुछ दिन पहले गुजरात के सूरत शहर में एक पागल आशिक लड़के ने ग्रीष्मा नाम की लड़की का सरेआम कत्ल कर दिया। उस वक्त वहाँ पर बहुत सारे लोग मौजूद थे और आराम से उस घिनौनी घटना का विडियो बनाने में व्यस्त थे। पर किसीको भी ये खयाल नहीं आया की पीछे से जाकर उस लड़के को पकड़ ले और कम से कम उस लड़की को बचाने की कोशिश तो करें। माना उसके पास चाकू था पर अगर सारे लोगों ने मिलकर हिम्मत की होती तो शायद वो लड़की आज ज़िंदा होती। खैर अब उन सारी बातों का कोई मतलब नहीं रहा। शायद उस किस्से को देखकर ये सोचा होता की आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए, तो वापस ऐसा ही हादसा न हुआ होता। पर लोगों ने ग्रीष्मा वाली विडियो को इतना वायरल किया की इस विडियो ने ऐसी घटिया मानसिकता वाले लड़कों को उकसाने का काम किया और सौराष्ट्र के वेरावल शहर में ऐसी ही एक ओर घटना ने जन्म लिया। खैर इसमें तो लड़की बच गई। कहने का मतलब ये है की हम किसी भी गलत घटना से सीख नहीं लेते, बल्कि उसे बढ़ावा देने का काम करते है। ऐसी विडियो बनाकर फेसबुक वाट्सएप पर धड़ाधड़ अपलोड कर देने से लोगों पर अच्छा-बुरा हर तरह का प्रभाव पड़ता है। घटिया मानसिकता वाले लोगों को ऐसी विडियो से किसीके साथ गलत करने की प्रेरणा मिलती है। पर हम तो ऐसी विडियो बनाकर खुद को महान समझ लेते है। सोचो विडियो बनाने से ज्यादा जरूरी उस वक्त क्या होता है? काश की वही उर्जा हम उस हादसे को रोकने में खर्च करते। माना की सब डर की वजह से ऐसी बातों में पड़ना नहीं चाहते, पर सोचिए इस लड़की की जगह आपका अपना कोई होता तब भी क्या आप विडियो बनाने पर ज़्यादा ज़ोर देते, उसे बचाने की कोशिश तक नहीं करते?

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युवा पीढ़ी देश के नेशन बिल्डर्स

युवा पीढ़ी को शिक्षाए कौशलता विकास अस्त्र से सशक्त करना भारत के भविष्य को सशक्त करना है

शिक्षा की बेहतर गुणवत्ता के साथ युवाओं की क्षमता का विस्तार वैश्विक स्तर की उच्च शिक्षा के अनुरूप करना वर्तमान नए डिजिटल भारत की ज़रूरतः किशन भावनानी

गोंदियाः वैश्विक स्तरपर किसी भी देश की संपन्नता, सफलता, उच्चस्तरीय अर्थव्यवस्था और हर क्षेत्र में मज़बूत पकड़ रखने की नींव के पहियों में से एक सबसे मज़बूत और महत्वपूर्ण आधारस्तंभ शिक्षा व कौशलता विकास है। क्योंकि शिक्षा और कौशलता विकास सफलता, संपन्नता सहित सभी क्षेत्रों की एक ऐसी चाबी है। जिससे सफलता के द्वार खुलते हैं क्योंकि शिक्षा व कौशलता ग्रहण करने के बाद ही वैज्ञानिक, डॉक्टर, इंजीनियर, अविष्कारक सहित नवोन्मेष, नवाचारों के प्रणेता बनने की और देश सेवा कर अपने देश के विकास करने का अवसर मिलता है।

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“आज भी बेटियाँ अनमनी क्यूँ”

स्त्री संसार रथ की धुरी और परिवार की नींव है कल्पना करके देखो बिना स्त्री के संसार की, रौनक और रोशनाई विहीन पूरी कायनात दिखेगी। फिर क्यूँ बेटीयाँ अनमनी होती है जब की स्त्री के बिना संसार ही अधूरा है। जब कुदरत ने संसार रथ के दो पहिये में एक पहिया स्त्री को निर्मित किया है तो ये भेदभाव क्यूँ ? बेटा-बेटी में सदियों से हो रहा फ़र्क कब मिटेगा।आज भी हर इंसान के भीतर एक चाह पल रही होती है कि एक बेटा तो चाहिए ही, पुरुष प्रधान समाज में अवधारणा बनी हुई है कि वंश बेटों से ही चलता है। लेकिन सच्चाई यह है कि यह मानसिकता बिलकुल गलत है। वंश तो बेटियां चलाती है, और वे एक नहीं, बल्कि दो-दो परिवारों का वंश चलाती है।

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“सुरक्षित हो आराम से रहो”

हिजाब विवाद हाई कोर्ट के फैसले के बावजूद थमने का नाम नहीं ले रहा। ऐसे में असदुद्दीन ओवैसी ने कहा की पीएम मोदी कहते हैं कि मुस्लिम महिलाएं उन्हें आशीर्वाद दे रही हैं तो बीजेपी मुस्लिम लड़कियों से हिजाब पहनने का अधिकार क्यों छीन रही है? अधिकार छीनना क्या होता है? जब महिलाओं के साथ अठारहवीं सदियों वाला व्यवहार किया जाए, बेटियों को न पढ़ने-लिखने की आज़ादी, न कहीं बाहर जाने की या घूमने फिरने की आज़ादी, न मुँह दिखाने की आज़ादी, न काम करने की या आगे बढ़ने की आज़ादी न दी जाए इसे कहते है अधिकार छीनना। भारत में अल्पसंख्यक जितने सुखी और खुशहाल है उतने शायद कुछ इस्लामिक देशों में भी नहीं होंगे। भारत लोकतांत्रिक देश है यहाँ सबको अपने तौर तरीकों से जीने की पूरी आज़ादी है। पर स्कूल कालेजों के अपने कुछ नियम होते है उसे फ़ोलौ करना हर नागरिक की ज़िम्मेदारी और कर्तव्य है। कितनी नफ़रत फैला रखी है इन धर्माधिकारीयों ने, भड़काऊँ भाषणों से देश को बांट रहे है।

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बच्चों पर चढ़ा फ़िल्मी गुब्बार कितना जायज़

आजकल लोगों के दिमाग पर पर फ़िल्मों का ख़ुमार छाया हुआ है। पुष्पा दि राइज़ के गानें बलम सामी और पुष्पा के स्टेप्स और स्टाइल की नकल करते लोग विडियो पर विडियो बनाए जा रहे है। इस गुब्बार ने छोटे बच्चों को भी नहीं बख़्शा है।
सोशल मीडिया एक ऐसा प्लेटफॉर्म बन गया है जहाँ फ़ेमश होने के लिए हर कोई अपनी कला का, अपने हुनर का विडियो बनाकर अपलोड कर देता है। किस्मत चमकी तो कई लोग ज़ीरो से हीरो भी बन जाते है, जैसे “रानू मंडल” और “बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना” वाला लड़का। आजकल आलिया भट्ट की फ़िल्म गंगुबाई काठियावाड़ी की नकल करती एक छोटी बच्ची का विडियो खूब वायरल हो रहा है। मुँह में बीड़ी दबाए अश्लील डायलाॅग और कामुक अदाओं के साथ वह बच्ची अद्दल गंगुबाई की नकल उतारती है।
उसकी बॉडी लैंग्वेज देखिए, क्या इस उम्र में बच्ची को इस तरह कामुक दिखाना ठीक है? सैकड़ों अन्य बच्चे हैं जिनका इसी तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।
सरकार को उन बच्चों के पैरंट्स के खिलाफ सख्त ऐक्शन लेना चाहिए, जो एक ऐसी फिल्म के प्रमोशन से पैसा कमाने के लिए नाबालिग बच्चों का यौन उत्पीड़न कर रहे हैं, जो एक मशहूर वेश्या और उसके दलाल की बायॉपिक है। बच्ची अकेली नहीं है सोशल मीडिया पर इन रील्स और डायलॉग्स पर बच्चों के वीडियोज़ की भरमार है।
कंगना राणावत से लेकर बहुत सारे लोगों ने अपनी राय देते टिप्पणी की है। नो डाउट बच्ची की ऐक्टिंग और स्टाइल सुपर्ब है, पर यहाँ हमें कंगना की बात का सपोर्ट करना चाहिए की इतनी कम उम्र में बच्चों से ये सब करवाना और सोशल मीडिया पर सुर्खियां बटोरना बच्चों के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है। बच्चें इतनी सी उम्र में सेलिब्रिटी बनने के ख़्वाब देखने लगते है, जिनका असर उनकी निज़ी ज़िंदगी पर विपरीत पड़ सकता है। कौन बनेगा करोड़पति में बच्चों वाले एपिसोड में एक बच्चा अरुणोदय आया था, जो खुद को अमिताभ बच्चन के आगे प्रस्थापित करना चाहता था। वो भी माना की ऑवर स्मार्ट था, पर ऐसी चीज़ें बच्चों की मासूमियत और बचपना छीन लेती है। उस बच्चे की बातों से साफ़ ज़ाहिर होता है की उसकी अपेक्षाएं कितनी ऊँची है।  उस बच्चे के भी कई सारे विडियोज़ वायरल हुए जिसमें उसके सपने छलक रहे थे, पर मासूमियत गायब थी। ईश्वर करें उस बच्चे के सारे सपने सच हो, पर मानों जो वह सोच रहा है ऐसा कोई प्लेटफॉर्म उसे नहीं मिला, तो उसके नाजुक मन पर क्या बितेगी। हर चीज़ की एक उम्र होती है, वक्त आने पर बच्चों की रुचि समझकर उस क्षेत्र में आगे बढ़ाना चाहिए जिसमें वो माहिर हो।
सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने भी इस बच्ची के वायरल वीडियो पर अपनी आपत्ति जताते हुए कहा की कमाठीपुरा के रेड लाइट एरिया में गंगूबाई काठियावाड़ी वेश्यालय की मैनेजर थीं। वीडियो में दिखने वाली बच्ची को बेशक इस बात की जानकारी नहीं होगी कि उसे क्या पेश करने के लिए कहा जा रहा है।
प्रियंका चतुर्वेदी ने अपने एक अन्य ट्वीट में कहा की मैं फिल्मफेयर से आग्रह करती हूं कि आप बच्चों को जो दिखा रहे हैं और जिस तरह के दर्शकों को आप छोटे बच्चों का उपयोग करके आकर्षित कर रहे हो उसके प्रति थोड़ा संवेदनशील रहें। बच्चों के माता-पिता को ये बात समझनी चाहिए की बच्चों को किसी चीज़ का ऑवर डोज़ न दें, जिनके वो तलबगार बन जाए। पोप्यूलारिटी ऐसा नशा है की एक बार लत लग जाए तो छूटती नहीं। ऐसी चीज़ों से बच्चों को दूर रखना चाहिए। दुनिया में सीखने लायक और बहुत कुछ है, फ़िल्मी माहौल से दूर रखकर उस पर फोकस करवा कर बच्चों का जीवन संवारिए।
भावना ठाकर ‘भावु’ (बेंगलोर, कर्नाटक)

 

 

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दाता भिखारी क्यों?

कहां रह गई हैं कमी? क्यों मतदाता ही सरकारों के सामने भिखारी बने हुए हैं।
क्या और कौन हैं हम?राजा महाराजा थे तब हम प्रजा थे,उनकी सभी बातें मानना,सख्त से सख्त कायदों को भी बिना आवाज किए मानना पड़ता था।बहुत सी कहानियां थी जब राजा महाराजा के प्रजालक्षी कामों का भी उल्लेख हैं और उनके द्वारा किये गये जुल्मों सितम का भी इतिहास के पन्नों में उल्लेख हैं।लेकिन आज हम स्वतंत्र हैं,लोकतंत्र में जी रहे हैं तब हम क्यों खरीदे और बेचे जाते हैं।एक बात आजकल बहुत प्रचलित हैं।कोई नेता एक गांव में गया और किसी अक्लमंद आदमी के घर पहुंचे ,बहुत ही चिकनी चुपड़ी बातें कर के उनको मत देने की बात कर १००० रूपिए दिए।उस सयाने आदमी ने कहा कि वह उन्हें जरूर मत देगा लेकिन उसे १००० रुपिए नहीं एक गधा चाहिए।नेताजी ने सोचा वह काफी मशहूर था गांव वालों के बीच में तो उसकी वजह से और भी मत मिल सकते थे।नेताजी ने अपने गुर्गों को १००० रुपए दिए दूडवाया और गधा लाने के लिए।कुछ देर बाद वे वापस आए और नेताजी से बोले कि गधा तो ५००० रूपियों का आता हैं न कि १००० रुपए का।अब उस सयाने बंदे ने नेताजी के सामने देख मूंछों में ही मुस्कुराया और बोला कि क्या मतदार गधे से भी गए गुजरे थे जो १००० रुपए में बिक जाएं ।
क्यों ये जो खुद दलबदल को अपना धर्म समझ ने वाले क्यों हमारी कीमत क्यों लगा लें? क्यों हमे बोले कि तुम इस धर्म के हो तो तुम्हे उस दल को मत देना होगा या तुम उस जाति वालों को के साथ मिल कर इस दल को जिताओगे।तुम्हारा एनालिसिस किया जाता हैं,राज्य के किस हिस्से में तुम्हारी संख्या ज्यादा हैं और तुम्हे पटाने के लिए कौनसे हथकंडे अपनाने हैं ये तय किया जाता हैं और वो भी कोई दफ्तर या मीटिंग में नहीं खुल्लेआम सोश्यल मीडिया में ,अनेक चर्चा प्रविणों के बीच में आपके सामने चर्चा भी होती हैं और छीछालेदर भी आपके सामने होती हैं।और वोही हम देख भी लेते हैं और सह भी लेते हैं। वहीं जूठे वचन , वादे पर एतबार भी कर लेते हैं।क्यों होता हैं ऐसा ,कहां से हम इतनी ताकत लाएं कि इन सब को हम समझें भी और इनका विरोध भी करें।ये तो सरेबाजार हम से ही हमारी कीमत लगाई जाती हैं जो कभी भी हमको मिलने वाली हैं ही नहीं।
कैसी हैं ये चुनाव प्रणाली जिस में मतदाताओं का चीर हरण होता हैं।एक मुर्गे या बकरे को कुर्बानी से पहले जांचा या देखा जाता हैं ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं।
तुम जाट हो ,तुम्हारे इस गांव में कितने घर ,घर में कितने सदस्य और कुल मिलाकर राज्य में तुम्हारी कितनी बस्ती उस हिसाब से तुम्हारी जात वालों को चुनावी टिकिट मिलेगा।तुम ब्राह्मण हो तो भी यही अनुपात रहेगा ।ऐसे ही धर्मनिरपेक्षता का खेल खेलने वाले ही धर्म धर्म का खेल खेल जायेंगे और फिर एकबार तुम को अपने ही देश,राज्य शहर,गांव और मोहल्लों में बांट जायेंगे।
गिनती तो तुम्हारी आर्थिक तरीके से भी होगी,तुम गरीब हो तो तुम्हे मत किसको देना हैं ये तुम्हारे मोहल्ले वाले छोटे से नेता तय करेगा जिसे कट मिला हैं तुम्हे छोटी से कोई भेंट रुपए,कंबल या दारु की बॉटल देने के लिए।पैसे वालें तो वैसे ही बड़े ठाठ से मतदान उन्हे करते हैं जिनकी वजह से उनके धंधे या काम में फायदा हुआ हो,चाहे वह दल देश के लिए हितकारी हो या न हो।और सब से ज्यादा वंछित हैं मध्यम वर्ग जो सिर्फ मतदाता की दुनियां का ४% ही हैं।उन्हे कम ही नापा तोला जाता हैं।क्योंकि वे दारु,कंबल आदि लेने के लिए शर्म करेंगे और उन्हों ने किसी भी सहाय दे सरकार ने कोई विशेष काम नहीं किया होता हैं।वहीं हैं जिसे नियम से आयकर देना पड़ता हैं।सब कुछ ही जिन्हे करना ही पड़ता हैं वह हैं मध्यम वर्ग।
अब समय आ गया हैं कि हम अपने मत के आयुध से अपनी लड़ाइयां लड़े और अपने हक की प्राप्ति करें।जो हमें विभाजित कर अपने राजकीय ध्येयों को हासिल कर अपनी दुकानें चलाते हैं उन्हे जवाब देने का।क्यों बीके या टूटे हम? जो भी धर्म हैं सबका अपना अपना उसीके सिद्धांतों पर चले,दूसरे के धर्म के प्रति मान रखें ,समभाव रखे,देश हित में सोचे तभी तो देश उन्नति करेगा।

जयश्री बिरमी

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